जीवन में दोनों आवश्यक हैं। कभी मौन रहना, और कभी मुस्कुराना

कभी हमें अपने से छोटे लोगों के साथ व्यवहार करना पड़ता है, और कभी बड़े लोगों के साथ। जिन जिन लोगों के साथ हम व्यवहार करते हैं, वे लोग कभी हमारे साथ न्याय पूर्ण व्यवहार करते हैं और कभी अन्याय पूर्ण भी। जब न्याय पूर्ण व्यवहार करते हैं तब तो कोई समस्या नहीं है। परंतु जब अन्याय पूर्ण व्यवहार करते हैं, तब हमारे सामने अनेक विकल्प होते हैं। या तो हम वहां मौन रहें; या हंसकर टाल दें; या लड़ाई-झगड़ा करें। वे अन्याय भी छोटे बड़े स्तर के अनेक प्रकार के होते हैं। तो ऐसी स्थितियों में हमें बहुत सोच समझकर व्यवहार करना चाहिए, जिससे हमारा स्तर भी न बिगड़े और दूसरों का भी।


उदाहरण के लिए मान लेते हैं, किसी छोटे व्यक्ति ने आपके साथ कुछ दुर्व्यवहार कर दिया। पहले आपको यह देखना होगा कि वह आपके घर का ही सदस्य है अथवा दूर का कोई व्यक्ति है? संबंधी है या अपरिचित है। यदि घर का ही सदस्य है, तो वहां उस अन्याय वाली घटना को हंसकर टाल देना चाहिए। वहां झगड़ा नहीं करना चाहिए। आरंभ में ऐसी छोटी-छोटी कुछ घटनाओं को सहन कर लेना चाहिए। परंतु अपने से छोटे उस व्यक्ति को समझाना अवश्य चाहिए, कि आपने ठीक व्यवहार नहीं किया। जब कभी उचित अवसर मिले, वह व्यक्ति आपकी बात को सुनना समझना चाहता हो, अच्छे मूड में हो, तब उसे अवश्य इस प्रकार से बताएं। पहले 8 / 10 बार तो उसकी छोटी-छोटी गलतियां आपको सहन करनी होंगी। और उसे गलतियां बताते समझाते रहना होगा। फिर भी यदि वह अपना सुधार न करे, तब कुछ अगला कदम उठाना चाहिए। उसे डांटना, धमकी देना, थप्पड़ मारना या आर्थिक दंड, किसी भी प्रकार का जो उचित लगे, वैसा उसे दंड देकर सुधार करना चाहिए। यदि वह फिर भी न सुधरे, अब मौन रहना अच्छा है, अभी संबंध तोड़ना अच्छा नहीं है। आपके मौन रहने से, उसकी उपेक्षा करने से, अब उसके सुधरने की संभावना रखनी चाहिए। यदि दो चार बार उपेक्षा करने, मौन रहने से भी न सुधरे, तो फिर अंतिम स्थिति में उसे चेतावनी देकर, उस से संबंध तोड़ने की बात सोचनी चाहिए।


दूसरा उदाहरण — यदि वह व्यक्ति आपके ही घर का सदस्य है, और आप से बड़ा है। यदि वह आपके साथ अन्याय करे, तब भी झगड़ा तो नहीं करना चाहिए, परंतु बड़े व्यक्ति से प्रश्न अवश्य पूछना चाहिए, कि आपने जो व्यवहार किया है, मुझे यह ठीक नहीं लगा। कृपया मुझे समझाएं, कि क्या आपका व्यवहार उचित है? दो चार बार इस प्रकार से करने पर बड़ा व्यक्ति अपनी गलती समझ जाएगा, और वह अपना सुधार कर लेगा। यदि वह इतना लापरवाह हो, या दुष्ट प्रवृत्ति का हो, कि अपना सुधार न करे, और अन्याय जारी रखे, तो कुछ 4/5 अगली घटनाओं में भी मौन रहना चाहिए, और उस की उपेक्षा करनी चाहिए। और कुछ घटनाओं के बाद जब आप की सहनशक्ति पूरी हो जाए, तब फिर उसे भी चेतावनी देनी चाहिए, कि बहुत अन्याय हो गया, अब ऐसे और नहीं चल पाएगा। फिर यदि भविष्य में ऐसी आपकी ओर से अन्याय की घटनाएं हुई, तो मैं परिवार से अलग हो जाऊंगा।


इन दो उदाहरणों से आप बाकी दूर के लोगों के साथ किए जाने वाले व्यवहारों को भी समझ लीजिएगा, कि परिस्थिति के अनुरूप कुछ कम अधिक, ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए। जहां मौन रहना उचित लगे, वहां मौन रहें। जहां प्रेम से समझाना उचित लगे, वहां समझा दें। और जहां हंसकर टाल देना उचित लगे, वहां हंसकर टाल दें। परिस्थिति के अनुसार आपको स्वयं ही निर्णय करना होगा, कि कब कहां कैसा व्यवहार किया जाए। इस प्रकार से व्यवहार करने से आपका और दूसरों का जीवन सुरक्षित, झगड़े से रहित और आनंदित बनेगा।