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भ्रामरी प्राणायाम
भ्रामरी प्राणायाम
ध्यान के किसी सुविधाजनक आसन में बैठ जायें। मेरुदण्ड सीधा, सिर सीधा और दोनों हाथ घुटनों पर चिन् या ज्ञान-मुद्रा में रहें।
इस अभ्यास के लिए पद्मासन या सिद्धासन/ सिद्धयोनि आसन उत्तम है।
आँखें बन्द कर लें और कुछ समय के लिए पूरे शरीर को विश्रान्त करें। पूरे अभ्यास के दौरान होठों को हल्के से बन्द रखें और दाँतों की पंक्तियों
को एक-दूसरे से थोड़ा अलग रखें। इससे मस्तिष्क में ध्वनि-स्पन्दन अधिक स्पष्टता से सुनाई देता और अनुभव होता है।
भुजाओं को बगल में उठाकर, कोहनियों को मोड़ लें और हाथों को कानों के निकट लें आयें। तर्जनी या मध्यमा उँगलियों से कानों को बन्द कर लें। उंगलियों को बिना अन्दर घुसाये कानों के पल्लों को भी दबाया जा सकता है।
अपनी सजगता को सिर के बीचों-बीच ले आयें, जहाँ आज्ञा-चक्र स्थित है, और शरीर को एकदम स्थिर रखें।
नासिका से श्वास लें। भौरे के गुंजन की तरह गहरी और मन्द ध्वनि उत्पन्न करते हुए नियन्त्रित ढंग से धीरे-धीरे श्वास छोड़ें।
श्वास छोड़ते समय गुंजन की ध्वनि मधुर, सम और अखण्ड होनी चाहिए। ध्वनि इतनी मृदुल और मधुर हो कि कपाल के अग्र भाग में उसकी प्रतिध्वनि गूंजने लगे। रेचक के पश्चात् हाथों को स्थिर रखा जा सकता है अथवा वापस घुटनों पर ला कर दूसरे चक्र के लिये पुनः उठाया जा सकता है। पूरक और रेचक सम और नियन्त्रित होने चाहिए।
यह एक चक्र हुआ।
प्रकारान्तरः नादानुसन्धान आसन
एड़ियों को नितम्बों के पास रखकर एक तह किये हुए कम्बल पर बैठ जायें। घुटनों को ऊपर उठा कर कोहनियों को घुटनों पर और तलवों को जमीन पर रखें। कानों को अँगूठों से बन्द करें और बाकी चारों उँगलियों को सिर पर रखें। यह स्थिति उस समय बिना कठिनाई के अधिक स्थिरता प्रदान करती है जब नाद योग के अभ्यास की तैयारी के लिये लम्बे समय तक इसका अभ्यास किया जाता है , जिसमें साधकों को अपनी वास्तविक प्रकृति से जोड़ने के लिए सूक्ष्म ध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है।
सजगता-शारीरिक-मस्तिष्क के भीतर गुंजन जैसी ध्वनि तथा श्वास को स्थिर और सम बनाने पर।आध्यात्मिक-आज्ञा चक्र पर।
अवधि-प्रारम्भ में 5 से 10 चक्र पर्याप्त है। धीर-धीरे समय बढ़ाते हुए 10 से 15 मिनट तक अभ्यास करें। बहुत अधिक मानसिक तनाव या चिन्ता होने पर या उपचारात्मक उपयोग हेतु इसका अभ्यास 30 मिनट तक करें।
अभ्यास का समय – अभ्यास के लिए सबसे उपयुक्त समय देर रात्रि या उषाकाल है,जब आंतरिक बोध में बाधक बाहरी कोलाहल न्यूनतम रहता है। इस समय अभ्यास करने से अतीन्द्रिय सम्वेदनशीलता जाग्रत होती है। मानसिक तनाव से मुक्ति के लिए किसी भी समय भ्रामरी का अभ्यास किया जा सकता है।
सीमायें – भ्रामरी प्राणायाम लेट कर कभी नहीं करना चाहिए। जिन्हे कान का गंभीर संक्रमण हो, उन्हें भ्रामरी का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
लाभ – भ्रामरी, परेशानी और प्रमस्तिष्कीय तनाव से मुक्ति दिलाता है। इससे क्रोध, चिंता और अनिद्रा भी दूर होती है और शरीर की आरोग्यकर क्षमता बढ़ती है। यह वाणीको सुधारकर सशक्त बनता है। भ्रामरी का अभ्यास मन को शांत और सजगता को अंतर्मुखी बनाकर ध्यान की स्थिति में पहुंचाता है। गुंजन की ध्वनि का मन और तंत्रिका तंत्र पर शांतिकारक प्रभाव पड़ता है।