अश्वमेध यज्ञ क्या होता है, जानिए 6 खास बातें

अश्‍वमेध या अश्वमेघ यज्ञ के बारे में कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं। आखिर जानते हैं कि यह यज्ञ क्या होता है और क्यों इसके अश्‍व अर्थात घोड़े को छोड़ा जाता है राज्य की सीमाओं के बाहर। यहां प्रस्तुत है अश्वमेघ यज्ञ के बारे में संक्षिप्त और सामान्य जानकारी।
 
1.अश्वमेध यज्ञ को कुछ विद्वान एक राजनीतिक और कुछ विद्वान इसे आध्यात्मिक प्रयोग मानते हैं। कहा जाता है कि इसे वही सम्राट कर सकता था, जिसका अधिपत्य अन्य सभी नरेश मानते थे।

 
2. कालांतर में यह यज्ञ जो नरेश जिस समाज से संबंध रखता था उस समाज की रीति के अनुसार करता था। इसके कारण इस यज्ञ को करने में कई बुरी परंपराएं भी जुड़ गई। वैदिक रीति से किया गया यज्ञ ही धर्मसम्मत माना गया है।
 
2. यज्ञ का प्रारम्भ बसन्त अथवा ग्रीष्म ॠतु में होता था तथा इसके पूर्व प्रारम्भिक अनुष्ठानों में प्राय: एक वर्ष का समय लगता था। इस बीच नगर में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम और उत्सव होते थे।
 
3. यज्ञ करने के बाद अश्व को स्वतन्त्र विचरण करने के लिए छोड़ दिया जाता था। जिसके पीछे यज्ञकर्ता राजा की सेना होती थी। जब यह अश्व दिग्विजय यात्रा पर जाता था तो स्थानीय लोग इसके पुनरागमन की प्रतिक्षा करते थे।
 
4. इस अश्व के चुराने या इसे रोकने वाले नरेश से युद्ध होता था। यदि यह अश्व खो जाता तो दूसरे अश्व से यह क्रिया पुन: आरम्भ की जाती थी।
 
5. कहते हैं कि अश्वमेध यज्ञ ब्रह्म हत्या आदि पापक्षय, स्वर्ग प्राप्ति एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए भी किया जाता था।
 
6. कुछ विद्वान मानते हैं कि अश्वमेध यज्ञ एक आध्यात्मिक यज्ञ है जिसका संबंध गायत्री मंत्र से जुड़ा हुआ है। श्रीराम शर्मा आचार्य कहते हैं कि ‘अश्व’ समाज में बड़े पैमाने पर बुराइयों का प्रतीक है और ‘मेधा’ सभी बुराइयों और अपनी जड़ों से दोष के उन्मूलन का संकेत है। जहां भी इन अश्वमेध यज्ञ का प्रदर्शन किया गया है, उन क्षेत्रों में अपराधों और आक्रामकता की दर में कमी का अनुभव किया है। अश्वमेध यज्ञ पारिस्थितिकी संतुलन के लिए और आध्यात्मिक वातावरण की शुद्धि के लिए गायत्री मंत्र से जुड़ा है।
 
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद अश्वमेध प्राय: बन्द ही हो गया।