NAI SUBEH
‘जी हाँ भाइयों और बहनों, मैं हूँ आपका दोस्त अमीन सयानी और आप सुन रहे हैं बिनाका गीतमाला’
सालों पहले दूरदर्शन के लोकप्रिय शो रामायण, महाभारत, बुनियाद, हमलोग और मुंगेरी लाल के हसीन सपने लोगों के मनोरंजन के सबसे प्रचलित माध्यम थे। लेकिन यह भी सच है कि उस दौर में टीवी सेट ज्यादातर मध्यम वर्गीय परिवारों के पहुंच से बाहर था। ऐसे में रेडियो ही मनोरंजन का एकमात्र साधन होता था।
वैसे देखा जाए तो रेडियो का अपना एक इतिहास रहा है जिसके बारे में आज के लोगों को बहुत कम ही पता है। जब बात रेडियो के इतिहास की हो तो बिनाका गीतमाला का ज़िक्र ज़रूर किया जाता है। इस रेडियो शो ने 40 साल से भी अधिक समय तक रेडियो के जरिए न सिर्फ भारत में लाखों श्रोताओं के दिलों पर राज किया बल्कि बिनाका ब्रांड को घर-घर तक पहुँचा दिया। इतना ही नहीं इस शो के प्रशंसक दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व, पूर्वी एशिया और यूरोप के कुछ हिस्सों में भी थे। हफ्ते में एक बार बुधवार के दिन पूरा परिवार साथ बैठता था और घर का एक सदस्य शाम 8 बजे रेडियो सिलोन ट्यून करता था। रेडियो चालू होते ही हम बिनाका टूथपेस्ट जिंगल के अंत की लाइन सुनते थे, जो हमारे सबसे लोकप्रिय कार्यक्रम का प्रायोजक था।
कुछ ऐसी है बिनाका गीतमाला के प्रायोजक बिनाका ब्रांड की कहानी
आप शो के प्रायोजक बिनाका ब्रांड के बारे में जानना चाहेंगे? आइए, हम आपको बताते हैं कि इस ब्रांड को लोकप्रियता कैसे मिली। बिनाका, ओरल हाइजीन एफएमसीजी ब्रांड रेकिट बेंकिसर द्वारा 1951 में लॉन्च किया गया था। 1970 के दशक में पेप्सोडेंट या कोलगेट जैसे ब्रांड एक घरेलू नाम बन गए जबकि बिनाका देश के पसंदीदा टूथपेस्ट में से एक था। कंपनी ने टूथपेस्ट और टूथब्रश पैक्स के साथ मुफ्त में खिलौने और वाटरप्रूफ स्टिकर भी दिए। जिससे वह बच्चों के बीच काफी पसंद किए जाने वाला उत्पाद बन गया। साथ ही ब्रांड की एक और मार्केटिंग स्ट्रैटजी थी। जब मार्केट में स्टिकर या अपने आप चिपकने वाले टेप नहीं आए थे तब ब्रांड ने वाटर पिक्चर स्टिकर उतारा था। सबसे ज्यादा याद किए जाने वाले प्रिंट विज्ञापनों में से एक बहादुर नीरजा भनोट का विज्ञापन है।
और जब बिनाका ब्रांड को मिल गई अमीन सयानी की आवाज़
भारत में बिनाका ब्रांड की सफलता में सबसे बड़ा हाथ था अमीन सयानी का। उनकी आवाज ऑल इंडिया रेडियो के अन्य एनाउंसर से काफी अलग होती थी। जैसे ही रेडियो से यह आवाज आती- “जी हाँ भाइयों और बहनों। मैं आपका दोस्त अमीन सयानी बोल रहा हूँ और आप सुन रहे हैं बिनाका गीतमाला” लोग रेडियो सुनने बैठ जाते थे। रेडियो सिलोन पर 1952 से 1989 तक 30 मिनट का एक कार्यक्रम बिनाका गीतमाला प्रसारित हुआ और फिर 1989 से 1994 तक यह आकाशवाणी के विविध भारती नेटवर्क पर प्रसारित किया गया। हालांकि डेंटल हाइजीन के प्रतिस्पर्धा भरे क्षेत्र में यह ब्रांड अपनी जगह नहीं बना पाया और 1996 में भारतीय FMCG कंपनी डाबर ने इसे 12 मिलियन में खरीद लिया। अब 86 साल के हो चुके अमीन सयानी ने रजत जयंती पर इसकी स्थापना का इतिहास सुनाया।
अमीन सयानी के पिता पेशे से डॉक्टर थे जो मुफ्त में मरीजों का इलाज करते और उन्हें दवाइयाँ देते थे। उनकी माँ गाँधी के विचारों को फैलाने के लिए रहबर नामक एक साहित्य पत्रिका निकालती थीं। अमीन ने 1950 के दशक से ही रेडियो जॉकी बनने की कोशिश शुरू कर दी। उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज से डिग्री हासिल की और ऑल इंडिया रेडियो में हिंदी ब्रॉडकास्टर के लिए आवेदन किया। उनके ज्यादातर प्रशंसकों को शायद यकीन न हो लेकिन उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया था। अमीन ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए गए एक इंटरव्यू में बताया कि उन्हें यह कहकर रिजेक्ट कर दिया गया, “स्क्रिप्ट पढ़ने का आपका कौशल अच्छा है लेकिन मिस्टर सयानी आपके उच्चारण में बहुत ज्यादा गुजराती और अंग्रेजी का मिश्रण है, जो रेडियो के लिए अच्छा नहीं है।”
इससे वह काफी टूट गए और फिर अपने गाइड और गुरु बड़े भाई हामिद सयानी के पास गए। हामिद रेडियो सिलोन के प्रोड्यूसर थे। उन्होंने अमीन से रिकॉर्डिंग के दौरान स्टेशन के हिंदी कार्यक्रमों को सुनने के लिए कहा। संयोग से यह रिकॉर्डिंग सेंट जेवियर्स के टेक्निकल इंस्टीट्यूट के एक स्टूडियो में हुई। कहने की जरूरत नहीं है कि युवा अमीन ने ब्रॉडकास्टिंग की कला सीखने और उसे फॉलो करने में जी जान लगा दिया। यही वह समय था कि जब रेडियो पर प्रायोजित रेडियो कार्यक्रमों की शुरुआत हुई।
सबसे पहले रेडियो सिलोन के शो ओवल्टीन फुलवारी के प्रोड्यूसर बालगोविंद श्रीवास्तव ने अमीन सयानी को नोटिस किया। ओवल्टीन विज्ञापन के लिए रिकॉर्ड की गई आवाज से नाखुश श्रीवास्तव मंच पर आए और उन्होंने स्टूडियो में जमा दर्शकों से पूछा कि क्या आप में से कोई इस स्क्रिप्ट को पढ़ने की कोशिश कर सकता है। अमीन ने हाथ ऊपर किया। जब उस युवा ने बुलंद आवाज में स्क्रिप्ट पढ़ी तो श्रीवास्तव ने अपने कान बंद कर लिए। “यह कोई युद्ध नहीं है,” उन्होंने कड़े शब्दों में कहा।
फिर अमीन ने दूसरी बार कोशिश की, जिससे वह काफी प्रभावित हुए। यहीं से युवा अमीन की यात्रा शुरू हुई। वह हर हफ्ते विज्ञापन पढ़ते थे। क्या उन्हें पैसे मिलते थे? खैर, अगर ओवल्टीन के छोटे से पैकेट को ही भुगतान माना जाये तो ज़रूर मिलते थे। वास्तव में ऑल इंडिया रेडियो पर भारतीय फिल्म संगीत का प्रसारण न होने के कारण उन्हें कमर्शियल रेडियो में प्रसिद्धि मिली और यह काम 1951 में रेडियो सिलोन ने शुरू किया। पश्चिमी गीतों पर आधारित अपने पहले से प्रसारित हो रहे द बिनाका हिट पैरेड शो के कॉन्सेप्ट पर ब्रांड ने आम जनता तक इसका हिंदी वर्जन पहुँचाने का फैसला किया। प्रायोजकों ने एक कम अनुभवी व्यक्ति की तलाश शुरू की, जिसे स्क्रिप्ट लिखना, प्रस्तुत करना और शो का निर्माण करना था। इसके अलावा उसे श्रोताओं के पत्र पढ़ना, फरमाइश की सूची बनाना और श्रोताओं के फीडबैक के आधार पर हर गाने की लोकप्रियता का विश्लेषण करना था। काम बहुत ज्यादा था और एक हफ्ते की तनख्वाह मात्र 25 रुपए थी। यह बहुत ज्यादा नहीं था लेकिन निश्चित रुप से ओवल्टीन के छोटे पैकेट की कीमत से ज्यादा ही थी। उन्होंने अपने आप पर यकीन किया और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
पहले शो के प्रसारण के बाद उन्हें 200 चिट्ठियाँ मिली। लेकिन दूसरे हफ्ते चिट्ठियों की संख्या 9000 और अगले एक हफ्ते में 60,000 पहुँच गई। वर्ष 2000 में इसने सेंचुरी का सबसे उत्कृष्ट रेडियो अभियान होने के लिए विज्ञापन क्लब का गोल्डन एब्बी अवार्ड भी जीता। बिनाका गीतमाला में बिना किसी खास क्रम के सात आधुनिक गाने बजाए जाते थे। लेकिन जल्द ही लोकप्रियता और श्रोताओं के फीडबैक के आधार पर गानों का क्रम निर्धारित कर दिया गया। श्रोताओं की संख्या एक बार में 9,00,000 से 20,00,000 तक पहुंच गई। बाद के सालों में ब्रांड टेकओवर और प्रायोजक बदलने के कारण शो का नाम बिनाका गीतमाला से बदलकर सिबाका गीतमाला और बाद में कोलगेट-सिबाका गीतमाला कर दिया गया।
लेकिन एक चीज नहीं बदली और वह थी अमीन सयानी की आवाज। लाखों श्रोताओं के लिए अमीन सयानी सिर्फ एक रेडियो जॉकी नहीं थे बल्कि वह एक दोस्त थे जो श्रोताओं के पसंदीदा गानों को बजाते थे, पूरे मन से चिट्ठियां पढ़ते और उनकी दिल को छू लेने वाली कहानियों को सुनाते थे। वह संगीत की बातों से अपने श्रोताओं का मनोरंजन भी करते थे। इस दौरान यह शर्त भी लगती थी कि कौन सा गाना इस हफ्ते सबसे ऊपर रहेगा। अमीन हर रैंक को पायदान कहते थे, जिससे बिनाका गीतमाला टॉप पर पहुंच जाता था। एक गाना दूसरे से या तो एक पायदान ऊपर होता था या नए गाने से पीछे होकर इसकी रैंक नीचे चली जाती थी। जब वह एनाउंस करते कि, “बिनाका गीतमाला के पायदान की चोटी पर है,” तब बिगुल की आवाज के साथ एक सस्पेंस बनाया जाता था। बिनाका की सूची में पहले नंबर पर के गाने पर संगीत निर्माताओं और निर्देशकों को गर्व महूसस होता था। शो की लोकप्रियता के कारण रेडियो सिलोन ने इसका समय आधे घंटे से बढ़ाकर एक घंटा कर दिया। यदि किसी पार्क या ट्रैफिक जाम में रेडियो पर यह आवाज सुनायी देती तो सुनने वालों की भीड़ जमा हो जाती थी।
यूट्यूब पर इस शो के एक प्रशंसक ने लिखा कि “बचपन में रेडियो पर इस साप्ताहिक कार्यक्रम को भूल जाना असंभव है। यहाँ तक कि जब मैं घर के बाहर भी चलते समय यह कार्यक्रम सुन लेता था तो टॉप वाला गाना बजने से पहले मुझे घर पहुंचने की काफी हड़बड़ी होती थी। दुनिया में कोई दूसरा रेडियो या टीवी कार्यक्रम इतने लंबे समय (चार दशकों!) और इतने सारे देशों (भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका और इतने सारे एशियाई देशों) में लोकप्रिय नहीं रहा। यह जादू भारतीय संगीत में था, दिल को छूने वाली साधारण पंक्तियाँ, अमीन सयानी की शानदार प्रस्तुति और कई कलाकारों की मधुर यादगार आवाज़ें।