प्रदोष व्रत: जानिये व्रत समय, पूजा विधि और क्या करें व क्या न करें

सनातन धर्म में कई ऐसे व्रत हैं जिनके करने से व्यक्ति अपने जीवन में लाभ प्राप्त कर सकता है, किन्तु प्रदोष-व्रत का सनातन धर्म में अति-महत्त्वपूर्ण स्थान है। माना जाता है कि प्रदोष-व्रत चन्द्रमौलेश्वर भगवान शिव की प्रसन्नता व आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

भगवान शिव को आशुतोष भी कहा गया है, जिसका आशय है-शीघ्र प्रसन्न होकर आशीष देने वाले। प्रदोष-व्रत को श्रद्धा व भक्तिपूर्वक करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

प्रदोष व्रत (शुक्ल) : 2 जुलाई 2020
वहीं इस बार 02 जुलाई 2020 को गुरुप्रदोष पड़ रहा है। ऐसे में 2 जुलाई को शुक्ल प्रदोष व्रत रखा जाएगा। प्रदोष व्रत भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए रखा जाता है। यह व्रत प्रति माह में दो बार त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है। एक शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी में और दूसरा कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी में।

गुरुवार के दिन होने वाले प्रदोष को गुरु-प्रदोष कहा जाता है। गुरु प्रदोष व्रत विशेषकर स्त्रियों के लिए होता है। गुरु प्रदोष व्रत दांपत्य सुख, पति सुख व सौभाग्य प्राप्ति के लिए किया जाता है।

सप्ताह के वार के अनुसार प्रदोष व्रत के प्रकार और उनके लाभ…

1. सोमवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोषम या चंद्र प्रदोषम कहते हैं।
: सोमवार का प्रदोष व्रत मनुष्य की मनोकामना की पूर्ति करता है और उसे निरोगी रखता है।

2. मंगलवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष कहते हैं।
: मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत करने से स्वास्थ लाभ होता है। अगर आप किसी बीमारी से परेशान हैं तो उससे भी छुटकारा मिलता है।

3. बुधवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को बुध प्रदोष या सौम्यवारा प्रदोष कहते हैं।
: बुधवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से मनुष्य की इच्छा पूर्ति होती है।

4. बृहस्पतिवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोषम कहते हैं।
: गुरुवार का प्रदोष व्रत करने से उपासक के शत्रुओं का नाश होता है और उसके जीवन में आने वाली बाधाएं भी दूर होती हैं।

5. शुक्रवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शुक्र प्रदोषम कहते हैं।
: शुक्रवार का प्रदोष व्रत सुहागनों के लिए बहुत ही लाभकारी होता है। इस दिन व्रत और पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है और दांपत्य जीवन सदैव के लिए खुशहाल और सुखमय हो जाता है।

6. शनिवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोषम कहते हैं।
: शनिवार का प्रदोष व्रत संतान प्राप्ति के इच्छुक भक्तों के लिए फलदायक है। अगर आप संतान प्राप्ति की कामना कर रहे हैं तो यह व्रत जरूर करें।

7. रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को भानु प्रदोष या रवि प्रदोष कहते हैं।
: रविवार का प्रदोष व्रत व्यक्ति को अच्छा स्वास्थ्य और लंबी आयु प्रदान करता है।

प्रदोषकाल क्या है-
प्रदोष-व्रत में प्रदोषकाल का बहुत महत्व होता है। प्रदोष वाले दिन प्रदोषकाल में ही भगवान शिव की पूजन संपन्न होना आवश्यक है। शास्त्रानुसार प्रदोषकाल सूर्यास्त से 2 घड़ी (48 मिनट) तक रहता है। कुछ विद्वान मतांतर से इसे सूर्यास्त से 2 घड़ी पूर्व व सूर्यास्त से 2 घड़ी पश्चात् तक भी मान्यता देते हैं। किन्तु प्रामाणिक शास्त्र व व्रतादि ग्रंथों में प्रदोषकाल सूर्यास्त से 2 घड़ी (48 मिनिट) तक ही माना गया है।

प्रदोष-व्रत कैसे करें-
प्रदोष-व्रत प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को होता है। सभी पंचागों में प्रदोष-व्रत की तिथि का विशेष उल्लेख दिया गया होता है। दिन के अनुसार प्रदोष-व्रत के महत्त्व में और भी अधिक वृद्धि हो जाती है। जैसे सोमवार दिन होने वाला प्रदोष-व्रत सोम प्रदोष, मंगलवार के दिन होने वाला प्रदोष-व्रत भौम-प्रदोष के नाम से जाना जाता है। इन दिनों में आने वाला प्रदोष विशेष लाभदायी होता है। प्रदोष वाले दिन प्रात:काल स्नान करने के पश्चात भगवान शिव का षोडषोपचार पूजन करना चाहिए। दिन में केवल फलाहार ग्रहण कर प्रदोषकाल में भगवान शिव का अभिषेक पूजन कर व्रत का पारण करना चाहिए।

गुरु प्रदोष व्रत की महिमा : गुरु प्रदोष व्रत कथा…
गुरु प्रदोष व्रत कथा के अनुसार एक बार इंद्र और वृत्तासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ। देवताओं ने दैत्य सेना को पूरी तरह नष्ट कर दिया। यह देख वृत्तासुर अत्यंत क्रोधित हो गया और स्वयं युद्ध के मैदान में उतर आया। उसके भयानक स्वरूप को देखकर देवता भयभीत हो गए और प्राण बचाने के लिए अपने गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहुंचे। बृहस्पति बोले -पहले मैं तुम्हें वृत्तासुर का वास्तविक परिचय दे दूं।

वृत्तासुर: तपस्वी और कर्मनिष्ठ
वृत्तासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है। उसने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न् किया है। पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था। एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया था। वहां शिवजी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहासपूर्वक बोला- ‘हे प्रभो! मोह माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं, किंतु देवलोक में ऐसा कभी दिखाई नहीं दिया कि स्त्री सभा में समीप बैठे।”

माता पार्वती क्रोधित होकर ये बोलीं
इस पर शिवजी तो कुछ नहीं बोले, लेकिन माता पार्वती ने क्रोधित होकर चित्ररथ से कहा- ‘अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है। अत: मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे सर्वव्यापी के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा- अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं।” जगदंबा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न् हो वृत्तासुर बना।

‘वृत्तासुर : बाल्यकाल से ही शिवभक्त’
देव गुरु बृहस्पति आगे बोले- ‘वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है। अत: हे इंद्र! तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न् करो।” देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इंद्र ने शीघ्र ही वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शांति छा गई।

अत: प्रदोष व्रत हर शिव भक्त को अवश्य करना चाहिए। इसके बाद स्वयं शिवजी ने प्रकट होकर देवराज को इंद्र को कहा कि गुरु प्रदोष व्रत के प्रभाव से तुम वृत्तासुर नामक राक्षस का अंत करने में सफल हुए हो। ऐसे ही जो मनुष्य इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा के साथ संपन्न् करेगा, उसके सारे मनोरथ पूर्ण होंगे।

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प्रदोष व्रत-1

प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) : प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने और आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए रखा जाता है. चातुर्मास में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व माना गया है. प्रदोष व्रत समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला व्रत माना गया है. इस व्रत को रखने से अच्छी सेहत और लम्बी आयु प्राप्त होती है. प्रदोष व्रत महीने में दो बार आता है. यह व्रत प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष को त्रयोदशी को आता है. दक्षिण भारत में इसे प्रदोषम के नाम से जाना जाता है.

प्रदोष व्रत में प्रदोष काल का महत्व
प्रदोष व्रत में प्रदोष काल का विशेष महत्व है. सूर्यास्त के बाद और रात्रि के आने से पहले का समय प्रदोष काल कहा जाता है. प्रदोष काल को लेकर मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव त्रयोदशी तिथि में शाम के समय कैलाश पर्वत पर स्थित अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं.

प्रदोष व्रत की कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक वृद्ध महिला अपने एक पुत्र के साथ रहती थी. महिला हनुमान जी की नित्य पूजा और उपासना किया करती थी. प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी की विशेष आराधना करती. एक बार हनुमान जी ने महिला की परीक्षा लेने की सोची. हनुमान जी ने एक सन्यासी का रूप रखकर महिला के घर पहुंच गए और पुकारने लगे. सन्यासी की आवाज सुनकर महिला बाहर आ गई और आज्ञा करने के लिए कहा.

सन्यासी बनकर आए हनुमान जी ने महिला से कहा वे बहुत भूखें हैं. भोजन करेंगे, भूमि को लीप दें. इस पर महिला दुविधा में पड़ गई और हाथ जोड़कर बोली महाराज इस कार्य के अतिरिक्त कोई अन्य कार्य बताएं. वह जरुर पूरा करेगी. सन्यासी ने बुजूर्ग महिला से तीन बार वचन लिए और कहा कि अम्मा मैं तेरे बेटे की पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा. महिला घबरा गई लेकिन क्या करती सन्यासी को वचन दे चुकी थी. उसने अपने पुत्र को बुलाया और सन्यासी के सम्मुख कर दिया. सन्यासी ने बुजुर्ग महिला के हाथों से ही उसके पुत्र को पेट के बल लिटवाया. फिर पीठ पर अग्नि जलवाई.

महिला अग्नि जलाकर दुखी होकर घर में चली गई और रोने लगी. खाना पक जाने के बाद सन्यासी ने महिला को आवाज दी कहा खाना पक गया है अपने पुत्र को भी बुला ले वह भी आकर भोजन कर ले. महिला ने महाराज और कष्ट न दें. जब सन्यासी नहीं माना तो कहने पर पुत्र के लिए आवाज लगा दी. पुत्र को जीवित देख महिला के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. तब हनुमान जी अवने असली रूप में प्रकट हुए और आर्शीवाद दिया.

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प्रदोष व्रत-2

रवि प्रदोष व्रत (Ravi Pradosh Vrat): रविवार को प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) है. रविवार को पड़ने के कारण इस व्रत को रवि प्रदोष व्रत कहा जा रहा है. सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का महत्त्व वार के हिसाब से अलग-अलग होता है. प्रदोष व्रत कैलाश निवासी भगवान शिव को समर्पित माना जाता है. आज प्रदोष व्रत में महिलाओं ने भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना की. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रवि प्रदोष व्रत करने से जीवन निरोगी रहता है और मनुष्य का स्वास्थ्य बेहतर रहता है. आइए जानते हैं रवि प्रदोष व्रत की कथा…

रवि प्रदोष व्रत की प्राचीन कथा:

एक गांव में अति दीन ब्राह्मण निवास करता था. उसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया करती थी. उसे एक ही पुत्ररत्न था. एक समय की बात है, वह पुत्र गंगा स्नान करने के लिए गया. दुर्भाग्यवश मार्ग में चोरों ने उसे घेर लिया और वे कहने लगे कि हम तुम्हें मारेंगे नहीं, तुम अपने पिता के गुप्त धन के बारे में हमें बतला दो.
बालक दीनभाव से कहने लगा कि बंधुओं! हम अत्यंत दु:खी दीन हैं. हमारे पास धन कहां है?
तब चोरों ने कहा कि तेरे इस पोटली में क्या बंधा है?
बालक ने नि:संकोच कहा कि मेरी मां ने मेरे लिए रोटियां दी हैं.

यह सुनकर चोरों ने अपने साथियों से कहा कि साथियों! यह बहुत ही दीन-दु:खी मनुष्य है अत: हम किसी और को लूटेंगे. इतना कहकर चोरों ने उस बालक को जाने दिया. बालक वहां से चलते हुए एक नगर में पहुंचा. नगर के पास एक बरगद का पेड़ था. वह बालक उसी बरगद के वृक्ष की छाया में सो गया. उसी समय उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उस बरगद के वृक्ष के पास पहुंचे और बालक को चोर समझकर बंदी बना राजा के पास ले गए. राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दिया. ब्राह्मणी का लड़का जब घर नहीं लौटा, तब उसे अपने पुत्र की बड़ी चिंता हुई. अगले दिन प्रदोष व्रत था. ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और भगवान शंकर से मन-ही-मन अपने पुत्र की कुशलता की प्रार्थना करने लगी. भगवान शंकर ने उस ब्राह्मणी की प्रार्थना स्वीकार कर ली. उसी रात भगवान शंकर ने उस राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है, उसे प्रात:काल छोड़ दें अन्यथा उसका सारा राज्य-वैभव नष्ट हो जाएगा.

प्रात:काल राजा ने शिवजी की आज्ञानुसार उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया. बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई. सारा वृत्तांत सुनकर राजा ने अपने सिपाहियों को उस बालक के घर भेजा और उसके माता-पिता को राजदरबार में बुलाया. उसके माता-पिता बहुत ही भयभीत थे. राजा ने उन्हें भयभीत देखकर कहा कि आप भयभीत न हो. आपका बालक निर्दोष है. राजा ने ब्राह्मण को 5 गांव दान में दिए जिससे कि वे सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकें. भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मण परिवार आनंद से रहने लगा. अत: जो भी मनुष्य रवि प्रदोष व्रत को करता है, वह सुखपूर्वक और निरोगी होकर अपना पूर्ण जीवन व्यतीत करता है. 

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प्रदोष व्रत-3

प्राचीनकाल में एक गरीब पुजारी हुआ करता था। उस पुजारी की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी अपने भरण-पोषण के लिए पुत्र को साथ लेकर भीख मांगती हुई शाम तक घर वापस आती थी। एक दिन उसकी मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई, जो कि अपने पिता की मृत्यु के बाद दर-दर भटकने लगा था। उसकी यह हालत पुजारी की पत्नी से देखी नहीं गई, वह उस राजकुमार को अपने साथ अपने घर ले आई और पुत्र जैसा रखने लगी। एक दिन पुजारी की पत्नी अपने साथ दोनों पुत्रों को शांडिल्य ऋषि के आश्रम ले गई। वहां उसने ऋषि से शिव जी के प्रदोष व्रत की कथा एवं विधि सुनी तथा घर जाकर अब वह भी प्रदोष व्रत करने लगी।

एक बार दोनों बालक वन में घूम रहे थे। उनमें से पुजारी का बेटा तो घर लौट गया, परंतु राजकुमार वन में ही रह गया। उस राजकुमार ने गंधर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते हुए देखा तो उनसे बात करने लगा। उस कन्या का नाम अंशुमती था। उस दिन वह राजकुमार घर देरी से लौटा। राजकुमार दूसरे दिन फिर से उसी जगह पहुंचा, जहां अंशुमती अपने माता-पिता से बात कर रही थी। तभी अंशुमती के माता-पिता ने उस राजकुमार को पहचान लिया तथा उससे कहा कि आप तो विदर्भ नगर के राजकुमार हो ना, आपका नाम धर्मगुप्त है। अंशुमती के माता-पिता को वह राजकुमार पसंद आया और उन्होंने कहा कि शिवजी की कृपा से हम अपनी पुत्री का विवाह आपसे करना चाहते है, क्या आप इस विवाह के लिए तैयार हैं?

राजकुमार ने अपनी स्वीकृति दे दी तो उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ। बाद में राजकुमार ने गंधर्व की विशाल सेना के साथ विदर्भ पर हमला किया और घमासान युद्ध कर विजय प्राप्त की तथा पत्नी के साथ राज्य करने लगा। वहां उस महल में वह पुजारी की पत्नी और पुत्र को आदर के साथ ले आया तथा साथ रखने लगा। पुजारी की पत्नी तथा पुत्र के सभी दुःख व दरिद्रता दूर हो गई और वे सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगे। एक दिन अंशुमती ने राजकुमार से इन सभी बातों के पीछे का कारण और रहस्य पूछा, तब राजकुमार ने अंशुमती को अपने जीवन की पूरी बात बताई और साथ ही प्रदोष व्रत का महत्व और व्रत से प्राप्त फल से भी अवगत कराया।

उसी दिन से प्रदोष व्रत की प्रतिष्ठा व महत्व बढ़ गया तथा मान्यतानुसार लोग यह व्रत करने लगे। कई जगहों पर अपनी श्रद्धा के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों ही यह व्रत करते हैं। इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी कष्ट और पाप नष्ट होते हैं एवं मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होती है।

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प्रदोष व्रत-4

हिंदू कैलेंडर (पंचांग) के अनुसार हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। पौष के महीने में त्रयोदशी तिथि बुधवार, 08 जनवरी को है। वार के अनुसार हर प्रदोष व्रत का अपना अलग महत्व होता है। इस बार प्रदोष व्रत बुधवार के दिन है जिस वजह से इसे बुध प्रदोष व्रत कहते हैं। इस तिथि पर भगवान शिव की पूजा करने का विधान है। 

बुध प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा से सभी तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं। यह व्रत सभी मनोकामनाएं को पूर्ण करने वाला है। भोले शंकर की कृपा से व्यक्ति के जीवन से सभी तरह के कष्ट और संकटों का निवारण हो जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बुधवार का दिन भगवान गणेश का होता है, इस तिथि पर उनके पिताजी भगवान शिव की पूजा करने से गणपति भी खुश होते हैं और अपना आशीर्वाद देते हैं।

प्रदोष व्रत पूजा विधि
प्रदोष व्रत के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होने के बाद शिव जी को ध्यान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
इस व्रत में  शुभ मुहूर्त में भगवान शिव की विधि विधान से पूजा करें।   
अगर संभव हो तो प्रदोष व्रत में दिन भर निराहार रहें। अगर आप निराहार नहीं रह सकते हैं तो आप फल का सेवन कर सकते हैं।
पूजा के समय उत्तर या पूर्व की दिशा में मुंह होना चाहिए। 
भगवान शिव का गंगाजल से  जलाभिषेक करें और अपनी इच्छानुसार पुष्प, अक्षत्, भांग, धतूरा, सफेद चंदन, गाय का दूध, धूप आदि अर्पित करें।  
इस दिन ऊं नम: शिवाय: मंत्र का जाप अवश्य करें।
भोले शंकर को इच्छानुसार भोग लगाएं और बाद में उसे प्रसाद के रूप में बांट दें।

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