तुलसीदास जी ने हनुमान चलीसा को अकबर के जेल में बंद थे तब लिखी थी

ये माना जाता था की तुलसीदास जी के पास बहुत सी चमत्कारी शक्तियां थीं । एक बार एक मरे हुए ब्राह्मण को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा था और उसी रास्ते से तुलसीदास जी भी जा रहे थे तभी विधवा औरत ने तुलसीदास जी के पैरों पे गिर पड़ी और प्रणाम किया, तुलसीदास जी ने उस औरत को “सदासौभाग्यावती ” होने का आशीर्वाद दिया, औरत ने कहा मैं सदासौभाग्यावती कैसे हो सकती है मेरे पति अभी मर गए हैं, तुलसीदास ने कहा ये शब्द तो निकल चुके हैं अब इसे जीवित करना पड़ेगा। तुलसीदास जी ने फिर सबसे अपनी आँखे बंद करने को कहा और राम नाम जपने लगे, जिससे वो ब्राह्मण फिर से जी गया।

तुलसीदास की ख्याति से अभिभूत होकर अकबर ने तुलसीदास को अपने दरबार में बुलाया और अपने किसी मरे आदमी को ज़िंदा करने को कहा, परन्तु यह प्रदर्शन-प्रियता तुलसीदास की प्रकृति और प्रवृत्ति के प्रतिकूल थी, अकबर ने उनसे जबरदस्ती चमत्कार दिखाने पर विवश किया, लेकिन ऐसा करने से उन्होंने इनकार कर दिया, फलस्वरूप अकबर ने तुलसीदास को फतेहपुर सिकरी जेल में कैद करवा दिया।

अकबर के समक्ष झुकने के विपरीत तुलसीदास जी ने हनुमान जी का नाम लिया और हनुमान चालीसा जेल में ही 40 दिनों में लिख दिया। तदुपरांत बंदरों की सेना ने किले पे चढ़ाई कर दी, राजधानी और राजमहल में अभूतपूर्व एवं अद्भुत उपद्रव शुरु हो गया। घरों में घुसकर सबको मरने लगे, सैनिकों और द्वारपालों को नोचने लगे, ईंटों को तोड़ने लगे, और सबको उसी ईंट से मारते थे, भयंकर उपद्रव देखने को मिला, सभी बुरी तरह भयभीत हो गए। अकबर को बताया गया कि यह हनुमान जी का क्रोध है, अकबर को विवश होकर तुलसीदास जी को मुक्त कर देना पड़ा, उनसे माफ़ी मांगी और आग्रह किया के किले और राजधानी को बंदरों से मुक्त कराएं।

इसके बाद अकबर तुलसीदास जी के मित्र बन गए और फरमान दिया की उनके राज में राम – हनुमान भक्तों, और दूसरे हिन्दुओं को परेशान नहीं किया जायेगा।