अगर हम भागेंगे तो विपत्तियां और ज्यादा बढ़ेंगी

स्वामी विवेकानंद काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिए पहुंचे थे। उस समय मंदिर में कई बंदर थे। जब स्वामीजी मंदिर से बाहर निकल रहे थे, तब उनके पीछे बहुत सारे बंदर लग गए। स्वामीजी बंदरों से डरकर तेजी से आगे बढ़ने लगे।

स्वामीजी के सिर पर पगड़ी थी। उन्होंने लंबे-लंबे कपड़े पहने थे। हाथ में कुछ किताबें भी थीं। बंदरों को लग रहा था कि इस व्यक्ति के पास खाने की चीजें मिल सकती हैं। इसीलिए वे स्वामीजी का पीछा कर रहे थे, उनके कपड़ों पर झपट रहे थे।

बंदरों को देखकर स्वामीजी घबरा गए। उन्होंने सोचा कि अगर मैं यहां रुका तो बंदर मुझे नुकसान पहुंचा देंगे। जितना स्वामीजी भागते, बंदर भी उनके पीछे-पीछे लग जाते। बंदर उन्हें छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं थे। स्वामीजी पसीने से बेहाल हो गए। वहां कई लोग थे, लेकिन सभी ये तमाशा देख रहे थे, कोई भी मदद करने को तैयार नहीं था।

उसी समय एक बूढ़ा व्यक्ति जोर से बोला, ‘भागो मत और डरो मत, रुक जाओ।’

स्वामीजी चिंतनशील थे, उन्होंने जैसे ही ये शब्द सुने, वे तुरंत रुक गए। उन्होंने बंदरों को देखते हुए दोनों हाथ ऊपर उठाए तो सभी बंदर धीरे-धीरे वहां से चले गए।

इसके बाद स्वामीजी ने कई बार अपने प्रवचनों में इस घटना का जिक्र किया था।

सीख – स्वामीजी कहते थे, ‘मैंने उस अनजान आवाज और बंदरों से एक महत्वपूर्ण शिक्षा ली थी। अगर हम भागेंगे तो विपत्तियां और ज्यादा बढ़ेंगी। इसीलिए भागो मत, रुको, समझो और मुसीबतों का सामना करो। तब ही हम अपने लक्ष्य पर पहुंच सकते हैं।’