कार्तिक स्त्री प्रसूता शान्ति

पुण्यदिन में स्नान किये सपत्नीक सुपुत्र यजमान पूर्वाभिमुख बैठकर ब्राह्मण द्वारा किये गये स्वस्तिवाचन के पश्चात् प्रतिज्ञा करे। तद्यथा-ॐ तत्सदद्येत्याद्युक्त्वा ज्ञाताज्ञातकायवाङ्मनस्कृतसकलपापक्षयपूर्वक-श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्तिकामः सौरकार्तिकमासाधिकरणकैतत्स्वीयस्त्राीप्रसव-संसूचितैतत्कुमारै- तत्पित्राद्यरिष्टोपशमनपूर्वक-श्रीब्रह्मप्रभृतिदेवताप्रसादाऽव्यवहितोत्तरकालिकैतद्वाल-

कैतत्पित्रादिजना धिकरणकायुःसुखसम्पद्रक्षादिसिद्धîर्थं श्रीब्रह्मादिपूजनरूपां कार्तिकस्त्राीप्रसूताशान्तिमहं करिष्ये। तदङ्भूतं गणपत्यादिपूजनझ् करिष्ये। इस प्रकार प्रतिज्ञा कर विधिपूर्वक गणेशादि सभी देवताओं की पूजा करे। पुनः पूर्व दिशा में अनाज के ऊपर कलश स्थापित कर उसके ऊपर ब्रह्मा की पूजा करें। आवाहन मंत्र-ॐ एह्îहि सर्वामरपूज्यपाद पितामहाधोक्षज पद्म जात।

चतुर्मुखध्यानरताष्टनेत्रा त्वां ब्रह्ममूर्ते भगवन्नमस्ते। आवाहन कर स्थापना करे। ॐ ब्रह्मजज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेन आवः। सु बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च वि वः।। इस मंत्र से ब्रह्मा की पूजा करे। पुनः वरण सामग्री लेकर-ॐ अद्येत्यादि पूर्वप्रतिज्ञातार्थसिद्धîर्थं क्रियमाणकार्तिकस्वस्त्राी- प्रसूताशान्त्यङ्त्वेन ब्रह्मजज्ञानमिति मन्त्रोण यथापरिमितं जपं कारयितुमेभिर्वरणद्रव्यैरमुकगोत्रममुकशर्माणं ब्राह्मणं जापकत्वेन त्वां वृणे। इस मंत्र से वरण करे। पुनः दक्षिण दिशा में गेहँू अन्न पर कलश रखकर श्री विष्णु भगवान की पूजा करे। ॐ एह्येहि नारायण चक्रपाणे लक्ष्मीपते दानववंशवÐ। सुवर्णपृष्ठासन पद्मनाभ जनार्दनस्त्वं भगवन्नमस्ते। इस प्रकार आवाहन कर ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रोधा निदधे पदं समूढमस्यपा Ủ सुरे स्वाहा इस मंत्र द्वारा विष्णु की पूजा करे और वरण द्रव्य लेकर संकल्प वाक्य पूर्ववत् पढ़ें। तदनन्तर पश्चिम दिशा में चावल पर कलश स्थापित कर रुद्र की पूजा करे। ॐ एह्येहि भो शंकर शूलपाणे गंगाधर श्रीकर नीलकण्ठ, उमापते भस्मविभूषितांग महेश्वर त्वं भगवन्नमस्ते। इस प्रकार आवाहन कर ॐ नमस्ते रुद्र मन्यव उतोत इषवे नमः बाहुभ्यामुत ते नमः इस मंत्र द्वारा पाद्यादि द्वारा रुद्र की पूजा करे। पुनः वरण सामग्री लेकर पूर्ववत् संकल्प करे। पुनः उत्तर दिशा में धान के ऊपर कलश रखकर उसके ऊपर श्री सूर्य की पूजा करे। आवाहन मन्त्र-ॐ दिवाकरं सहश्रांशुं ब्रह्माद्यैरमरैःस्तुतं। लोकनाथं जगच्चक्षुः सूर्यमावाहयाम्यहं। ॐ भूर्भुवः स्वः कलिङ्देशोद्भव काश्यपगोत्र श्रीसूर्य इहागच्छेत्यावाह्य स्थापयेत्।

ॐ आकृष्णेन0 मंत्र से पाद्यादि द्वारा सूर्य की पूजा करे।

पुनः वरण सामग्री लेकर ॐ अद्येत्यादि पूर्वप्रतिज्ञातार्थसिद्धîर्थं क्रियमाणकार्तिकस्वस्त्राीप्रसूताशान्त्यंगत्वेन ॐ आकृष्णेति मंत्रोण यथापरिमितं जपं कारयितुं एभिर्वरणद्रव्यैरमुकगोत्रममुकशर्माणं ब्राह्मणं जापकत्वेन त्वामहं वृणे।

पुनः त्रयम्बक0 इस मंत्र का जप ब्राह्मण द्वारा यथाशक्ति कराये।

संकल्प-ॐ अद्येत्यादि पूर्वंप्रतिज्ञातार्थसिद्धîर्थं क्रियमाणकार्तिकमास- स्त्राीप्रसूताशान्त्यङ्त्वेन त्रयम्बकमिति मन्त्रास्य लक्षं वा पञ्चाशत् सहश्रं अयुतं वा जपं कारयितुमेभिर्वरणद्रव्यैरमुकगोत्रन् अमुकामुकशर्मणो ब्राह्मणान्जापकत्वेन युष्मानहं वृणे। इस प्रकार वरण करे। इस प्रकार ली गयी वरण सामग्रियों से चार ही ब्राह्मण यथादिष्ट दिशाओं में जाकर जप करें। जप के बाद बैठे हुए आचार्यों में प्रमुख आचार्य विधिवत् अग्निस्थापन, कुशकण्डिका कर हवन करे (देखें विशिष्ट देव पूजन विधि/कुशकण्डिका /होम) ॐप्रजापतये स्वाहा इत्यारभ्य ॐउदुत्तमं वरुण पाशमित्यन्तं हुत्वा ॐ सूर्याय स्वाहा।।1।। ॐ ब्रह्मणे स्वाहा।।2।। ॐ विष्णवे स्वाहा।।3।। ॐ रुद्राय स्वाहा।।4।। ॐ शंभवे स्वाहा।।5।। ॐ ईशाय स्वाहा।।6।। ॐ पशुपतये स्वाहा।।7।। ॐ शिवाय स्वाहा।।8।। ॐ शूलिने स्वाहा ।।9।। ॐ महेश्वराय स्वाहा।।10।। ॐ ईश्वराय स्वाहा।। 11।। ॐ सर्वाय स्वापहा।।12।। ॐ ईशानाय स्वाहा।।13।। ॐ शंकराय स्वाहा।।14।। ॐ चन्द्रशेखराय स्वाहा।।15।। ॐ भूतेशाय स्वाहा।।16।। ॐ खण्डपरशवे स्वाहा।। 17।। ॐ गिरीशाय स्वाहा।।18।। ॐ मृडाय स्वाहा।।19।। ॐमृत्युंजयाय स्वाहा।।20।। ॐ कृत्त्विाससे स्वाहा।।21।। ॐ पिनाकिने स्वाहा।।22।। प्रमथाधिपाय स्वाहा।।23।। ॐ उग्राय स्वाहा।।24।। ॐ कपर्दिने स्वाहा।।25।। ॐ श्रीकण्ठाय स्वाहा।।26।।

ॐ शितिकंठाय स्वाहा।।27।। ॐ कपालभृते स्वाहा।।28।। ॐ वामदेवाय स्वाहा।।29।। ॐ विरूपाक्षाय स्वाहा।।30।। ॐ त्रिलोचनाय स्वाहा।।31।। ॐ कृशानुरेतसे स्वाहा।।32।। ॐ सर्वज्ञाय स्वाहा।।33।। ॐ धूर्जटये स्वाहा।।34।। ॐ नीललोहिताय स्वाहा।।35।। ॐ स्मरहराय स्वाहा।।36।। ॐ भर्गाय स्वाहा।।37।। ॐ त्रयम्बकाय स्वाहा।।38।। ॐ त्रिपुरान्तकाय स्वाहा।।39।। गंगाधराय स्वाहा।।40।।

इस प्रकार ‘त्रयम्बकम्’0 मंत्र के द्वारा घी युक्त विल्वपत्रा से दशांश हवन करे। उसके बाद सपत्नीक यजमान शिशु को गोद में लेकर बैठे। आचार्य वेदोक्त मंत्रों तथा पुराणोक्त मंत्रों द्वारा तीन कुश से अभिषेक करे।

मन्त्र-सुरास्त्वामभिषिझ्न्तु0 इत्यादि अग्नितो मे भयं मास्तु रोगाच्च

व्याधिवंधनात्। सशस्त्राविषतोयौघात् भयं नाशय मे सदा। योऽसौ पशुपतिर्देवः पिनाकी वृषवाहनः कार्तिकस्त्राीप्रसूतायाः दोषमाशु व्यपोहतु। अभिषेक के बाद प्रार्थना-रक्ष मां पुत्रपौत्रांश्च रक्ष मां पशुबन्धनात्। रक्ष पत्नीं पतिं चैव पितरं मातरं धनम्।।

तदनन्तर छायापात्र दान, आवाहित देवताओं की उत्तर पूजा, सूर्याघ्र्यदान आदि कृत्य कर प्रमादात्0 इस श्लोक को पढ़ें।

इति कार्तिकस्त्राीप्रसूताशान्ति।।

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