NAI SUBEH
रंगपंचमी पर हवा में उड़ाए रंगों का मतलब है देव तत्व की पूजा
होली के बाद चैत्र महीने के कृष्णपक्ष की पांचवी तिथि को रंग पंचमी पर्व मनाया जाता है। पौराणिक परंपरा के मुताबिक इस दिन आसमान में रंग उड़ाकर देवताओं का स्वागत करना चाहिए। इससे देवी-देवता भी प्रसन्न होते हैं। रंग पंचमी को अनिष्टकारी शक्तियों पर जीत हासिल करने वाला त्योहार माना जाता है।
इस पर्व के लिए ये भी कहा जाता है कि इस दिन श्रीकृष्ण ने राधाजी पर रंग डाला था। इसी याद में रंग पंचमी मनाई जाती है। इस दिन राधारानी और श्रीकृष्ण की आराधना की जाती है। राधारानी के बरसाने में इस दिन उनके मंदिर में विशेष पूजा और दर्शन लाभ होते हैं। ये भी कहा जाता है कि इस दिन श्रीकृष्ण ने गोपियों संग रासलीला की थी और दूसरे दिन रंग खेलने का उत्सव मनाया था।
राधा-कृष्ण को चढ़ाया जाता है अबीर-गुलाल
ये त्योहार खासतौर से मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस त्योहार को बड़ी धूमधाम के साथ अबीर और गुलाल के रंगों को बिखेरते हुए मनाया जाता है। इसमें राधा-कृष्ण को भी अबीर और गुलाल चढ़ाया जाता है। कई जगह शोभायात्रा भी निकलती है, जिसमें लोग एक-दूसरे पर अबीर-गुलाल डालते हैं और हवा में उड़ाते हैं।
देवताओं का स्वागत
रंग पंचमी पर एक-दूसरे को छू कर रंग लगाकर नहीं बल्कि हवा में खुशी से रंगों को उड़ाकर मनाना चाहिए। ऐसा करके रंगों के जरीये से देवताओं का आह्वान किया जाता है। ऐसा करते समय ये भाव रखना चाहिए कि हम देवताओं का स्वागत करने के लिए रंगकणों को बिछा रहे हैं। इस दिन धरती के चारों ओर मौजूद नकारात्मक ताकतों पर दैवीय शक्ति का असर ज्यादा होता है। रंग पंचमी पर उड़ाए गए रंगों से इकट्ठा हुए शक्ति के कण बुरी ताकतों को कमजोर करते हैं। वायुमंडल में रंग उड़ाना यानी ब्रह्मांड में मौजूद देवता तत्व की पूजा करना है।
सात देवताओं के सात रंग
इस दिन होली की तरह रंग खेले जाते हैं। यह दिन देवताओं को समर्पित माना जाता है। ब्रह्मांड में मौजूद गणपति, श्रीराम, हनुमान, शिव, श्रीदुर्गा, दत्त भगवान एवं कृष्ण ये सात देवता सात रंगों से जुड़े हैं। उसी तरह इंसान के शरीर में मौजूद कुंडलिनी के सात चक्र सात रंगों और सात देवताओं से संबंधित हैं। रंग पंचमी मनाने का मतलब है रंगों की मदद से सातों देवताओं को जागृत कर खुद को उनसे जोड़ना।