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डॉ. आंबेडकर ने हमारी पीढ़ी को क्या दिया है!
14 अप्रैल को भारत रत्न संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर की जयंती (Ambedkar Jayanti) है। एक सामाजिक-राजनीतिक सुधारक के रूप में आंबेडकर की विरासत का आधुनिक भारत पर गहरा असर हुआ है। स्वतंत्रता के बाद भारत में, आंबेडकर के सामाजिक-राजनैतिक विचारों को पूरे राजनीतिक स्पेक्ट्रम में सम्मानित किया जाता है। जीवन का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जो आंबेडकर के विचारों से प्रभावित न हों। भारत के सामाजिक, आर्थिक नीतियों और कानूनी ढांचों में अगर आज कहीं भी प्रगतिशील बदलाव दिख रहे हैं तो इसके पीछे कहीं न कहीं आंबेडकर के वो विचार हैं जो उन्होंने 60 से 75 साल पहले दिए थे।
अंबेडकर की शुरुआती शिक्षा दापोली और सतारा में हुई। वह पढ़ने में काफी होशियार थे। बालक अंबेडकर का पढ़ाई-लिखाई में दिमाग तेज तो था ही उनमें सीखने की ललक खूब थी। यही वजह है कि बंबई के प्रतिष्ठित एल्फिंस्टन काॅलेज में पहले दलित छात्र ने दाखिला लिया, जिसका नाम था भीम राव अंबेडकर। इसके बाद अंबेडकर ने अपने सपनों को पूरा करने के लिये खूब मेहनत की। आखिरकार मेहनत रंग लाई और उन्होंने तीन साल के लिये बड़ौदा स्टेट स्काॅलरशिप पास कर ली और न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया और 1915 में एमए की परीक्षा पास की। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनाॅमिक्स में दाखिला लिया। चार साल में दो डाॅक्टरेट की उपाधियां हासिल कीं। 5 के दशक में उन्हें दो और मानद डाॅक्टरेट की उपाधियां दी गईं।
समाज में प्रचलित भेदभाव से अंबेडकर दुखी थे। स्कूल के समय से ही उन्हें भेदभाव और अस्पृश्यता का सामना करना पड़ा था। अपनी जाति के दूसरे बच्चों की अपेक्षा अंबेडकर को अच्छे स्कूल में पढ़ाई का मौका जरूर मिला, लेकिन वहां उन्हें और उनके दलित दोस्तों को कक्षा के अंदर बैठने तक की इजाजत नहीं थी। न शिक्षक उनकी काॅपी छूते थे और न ही चपरासी उन्हें सम्मान से पानी देता। ऊंची जात का चपरासी उन लोगों को ऊंचाई से पानी पिलाता और जब वह न रहता तो उन्हें और उनके दोस्तों को प्यासा रहना पड़ता। यही वजह है कि पढ़ाई करने के बाद देश लौटकर उन्होंने इन सबके खिलाफ आंदोलन और अभियान चलाए। दलितों और दबे कुचलों को न्याय दिलवाने में वह आगे-आगे रहे।
उन्होंने 1928 में महाड़ सत्याग्रह, 1930 में नासिक सत्याग्रह और 1935 में येवला की गर्जना जैसे आंदोलन चलाए। 1927 से 1956 के बीच बहिष्कृत भारत समेत कई पत्र पत्रिकाओं का संपादन किया। उन्होंने कमजोर वर्ग के छात्रों के लिये काम किये। मुंबई में सि़द्घार्थ महाविद्यालय और औरंगाबाद में मिलिन्द महाविद्यालय स्थापित किये। लाइब्रेरी खोली।
दुनिया भर में जिस भारतीय लोकतंत्र की तारीफ की जाती है वह भी अंबेडकर के विचारों से ही संभव हुआ। अंबेडकर ने 2 साल 11 महीने 17 दिन में भारतीय संविधन (Indian Constitution) तैयार कर के दिया जो समता, समानता, बन्धुता और मानवता पर आधारित था, इस संविधान में उन्होंने हर किसी को बराबरी और पलने-बढ़ने का न्यायपूर्ण हक दिया। वह स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री बने। 6 दिसंबर 1956 को वो इस दुनिया को अलविदा कह गए। उन्हें मरणोपरांत 1990 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भात रत्न से नवाजा गया।
कहने में कोई गुरेज नहीं कि डॉ. आंबेडकर के वे विचार आज भी प्रासंगिक हैं। अगर आज की युवा पीढ़ी में अगर कहीं ये सवाल है कि आंबेडकर का उनकी पीढ़ी को क्या योगदान है तो जानिए उनके विचारों को जो आज भी मौके-बे-मौके लोगों द्वारा अपनाए जाते रहे हैं।
“मुझे वह धर्म पसंद है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाता है।”
“मैं एक समुदाय की प्रगति को उस डिग्री से मापता हूं जो महिलाओं ने हासिल की है।”
” वे इतिहास नहीं बना सकते जो इतिहास को भूल जाते हैं।”
“शिक्षित बनो, संगठित रहो और उत्तेजित बनो।”
“धर्म मनुष्य के लिए है न कि मनुष्य धर्म के लिए।”
“मनुष्य नश्वर है, उसी तरह विचार भी नश्वर हैं एक विचार को प्रचार-प्रसार की जरूरत होती है, जैसे कि एक पौधे को पानी की, नहीं तो दोनों मुरझाकर मर जाते हैं।”
“एक महान आदमी एक प्रतिष्ठित आदमी से इस तरह से अलग होता है कि वह समाज का नौकर बनने को तैयार रहता है।”
“समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा।”
“बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।”
“मानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा।”