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कालनिर्णय के अस्तित्व में आने की दिलचस्प कहानी
जयंतराव सलगांवकर ने 70 के दशक में ‘कालनिर्णय’ कैलेंडर की शुरुआत की थी। आज यह नौ भाषाओं (मराठी, अंग्रेजी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, तमिल और तेलुगु) में उपलब्ध हैं।
आज हम आपको दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशन कालनिर्णय (Kalnirnay Calendar) के बारे में बताने जा रहे हैं। जब जयंतराव सलगांवकर ने आम आदमी की सहुलियत के लिए पंचांग को कैलेंडर में बदलने का विचार सबके सामने जाहिर किया, तो सबने उनका खूब मजाक उड़ाया। लेकिन, जयंतराव अपने विचार पर अड़े रहे। वह वित्तीय जोखिम उठाने के लिए तैयार थे। हालांकि, वे जानते थे कि कैलेंडर बेचना एक अलग और अनोखा विचार था, क्योंकि 1970 के दशक में ये मुफ्त मिलते थे।
मुंबई में रहने वाले जयंतराव सलगांवकर 10वीं पास थे। उन्होंने ज्योतिष ज्ञान और प्रिंटिंग में अपने हुनर का इस्तेमाल करते हुए 2,600 रुपये की राशि का निवेश किया और 1973 में अपने कैलेंडर की प्रतियां बनाईं। एक अडिग दृष्टिकोण और दृढ़ विश्वास के साथ, वह अपने कैलेंडर बेचने के लिए विक्रेताओं के पास गए, पर किसी ने उन्हें एडवांस नहीं दिया। पर जयंतराव कहाँ रुकने वाले थे, उन्होंने तो भारत के कैलेंडर सिस्टम में क्रांति का पहले ही अंदाजा लगा लिया था।
आज अगर 2021 की बात करें, तो पूरे भारत में 1.8 करोड़ घरों में जयंतराव के ‘कालनिर्णय’ कैलेंडर का इस्तेमाल होता है, जो सात भाषाओं – मराठी, अंग्रेजी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, तमिल और तेलुगु में उपलब्ध हैं।
दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाशन होने के अलावा एक और चीज़ कालनिर्णय को अलग बनाती है और वह यह है कि आप इस कैलेंडर से एक साथ कई जानकारियां हासिल कर सकते हैं। गृहणी, किसान, छात्र से लेकर कसाई की दुकानों तक, हर कोई इस कैलेंडर का उपयोग करता है। 1996 में, इस कैलेंडर का ब्रेल संस्करण भी पेश किया गया था।
नासिक में, दो बच्चों की माँ, अर्चना इस कैलेंडर का इस्तेमाल हर महीने आने वाले शुभ दिनों, त्योहारों, उपवास की तारीखें, आदि देखने के लिए करती हैं। इससे उन्हें पहले से भोजन तैयार करने में मदद मिलती है। वह उन तारीखों को भी चिन्हित कर लेती हैं, जब उनका दूधवाला और घरेलू सहायिका छुट्टी करती है। वहीं उनके पति दिलीप, लाल रंग की स्याही में रिश्तेदारों की जन्मतिथि पर निशान लगाते हैं। इनकी बेटी को स्वास्थ्य संबंधी लेख पढ़ना पसंद है, जो कैलेंडर के उल्टी तरफ प्रकाशित होता है।
यह महाराष्ट्रीयन परिवार 30 से अधिक वर्षों से कालनिर्णय कैलेंडर का इस्तेमाल कर रहा है, और आज भी, स्मार्टफ़ोन के मुकाबले वह इसे ज्यादा पसंद करते हैं। उनका कहना है कि उन्हें इससे अच्छा विकल्प अब तक नहीं मिला।
“चाहे एक बाइक खरीदना हो, नए घर या नौकरी पर जाना हो, पैसे निवेश करना हो, किसी नवजात का नाम तय करना हो या किसी दुल्हन का स्वागत करना हो, ज़्यादातर भारतीय परिवार, शुभ तिथियों के अनुसार ही जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं। मेरे पिता पंचांग का महत्व जानते थे, लेकिन उन्होंने देखा कि संस्कृत ग्रंथों को समझने का एकाधिकार केवल पंडितों या ब्राह्मण समुदाय के पास था। आज की तारीख में कैलेंडर में शुभ मुहूर्त और मिनटों का उल्लेख बड़ी बात नहीं हो सकती है, लेकिन उस समय यह कोई नहीं कर रहा था। यही कारण है कि कालनिर्णय (काल + समय; निर्णय = फैसला) अस्तित्व में आया। “
कालनिर्णय को लॉन्च करना एक कठिन काम था, लेकिन दशकों से इसे बनाए रखना भी उतना ही चुनौतीपूर्ण था, खासकर तब जब देश में इंटरनेट का आगमन हुआ। कैलेंडर आसानी से लुप्त हो सकता था, लेकिन सालगांवकर परिवार ने इसे जारी रखने के लिए टेक्नोलोजी और नवाचारों का उपयोग किया।
जयराज के साथ अब उनकी बेटी, शक्ति (तीसरी पीढ़ी ) इस काम में साथ दे रही हैं। इन्होंने कालनिर्णय के इतिहास के बारे में बताया, जो एक कैलेंडर से कहीं ज़्यादा है। यह बिजनेस स्कूलों में एक प्रभावशाली केस स्टडी बना सकता है – एक व्यक्ति जिसने प्राचीन एकाधिकार प्रथाओं को तोड़ने की हिम्मत की और आधुनिक समाधानों के साथ पंचांग के सार को बनाए रखा।
जयंतराव, एक क्षेत्रीय अखबार, लोकसत्ता के साथ क्रॉसवर्ड संकलक के रूप में काम करते थे, और कालनिर्णय शुरू करने से पहले वह एक लॉटरी व्यवसाय में लगे हुए थे, जो सफल नहीं हो रहा था। पत्रकारों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के कारण उन्हें कालनिर्णय के बारे में जानकारी फैलाने में मदद मिली।
जयंतराव के अनुसार, यह पहली कंपनी थी, जिसने टाइपोग्राफर नियुक्त किया था। साथ ही, 70 के दशक में राज्य में रंगीन स्कैनर प्राप्त करने वाली भी यह पहली कंपनी थी। सामग्री के अलावा, संस्थापक कागज की गुणवत्ता के बारे में भी बहुत सजग थे। प्रिंटिंग के लिए जाने से पहले कागज एक महीने के लिए हवा में रखे जाते थे। उन्होंने कागज छेदने और इसे फटने से बचाने के लिए विशेष मशीनों को डिजाइन किया। रिबन के लिए एक पेटेंट रंग का उपयोग किया जाता है, जिसके सहारे दीवार पर इसे लटकाया जाता था।
उन्होंने पांच लोगों के साथ इस काम की शुरुआत की जो डिजाइनिंग, प्रिंटिंग से लेकर वितरण तक, सबकुछ करते थे। कालनिर्णय ग्रेगोरियन और भारतीय कैलेंडर का एक मिश्रण था। इसे और अधिक आकर्षक बनाने के लिए उन्होंने पूर्वानुमान, साहित्यिक लेख, व्यंजनों और और काफी कुछ जोड़ा।
जब कालनिर्णय शुरु किया गया, तब जयराव की उम्र केवल 17 वर्ष थी। वह कहते हैं, “संस्कृत में पंचांग का अर्थ है ‘पांच अंग’ – तिथि, नक्षत्र, राशि, योग और करण। पंचांग समय को मापता है और पाँच अंगों के बीच घटिका और पाली नामक अंतराल को चिह्नित करता है। स्कॉलर इन विभाजनों को घंटों और मिनटों में परिवर्तित करते हैं। 2,000 साल पुरानी प्रणाली को कक्षा 8 के छात्र के स्तर तक सरल बनाया गया था। हालांकि, पेज को केवल तारीखों से नहीं भरा जा सकता था, इसलिए मेरे पिता ने व्यंजनों और लेखों को जोड़ने का फैसला किया।”
जयराज जल्द ही संपादक बन गए और दुर्गा भागवत और पीएल देशपांडे जैसे प्रसिद्ध लेखकों के लेखों की व्यवस्था की।
पिता-पुत्र की जोड़ी ने कई विक्रेताओं के चक्कर लगाए और कैलेंडरों के नमूने छोड़े। उन्होंने न बिक पाने वाले कैलेंडरों का भुगतान न लेने की बात स्वीकार की। जब योजना के अनुसार प्रारंभिक बिक्री नहीं हुई, तब जयंतराव ने समीक्षा लिखने के लिए अपने पत्रकार मित्रों से संपर्क किया। इन्हीं समीक्षाओं ने बाद में बिक्री को बढ़ाया। इतना ही नहीं, उन्हें अपने ब्रांड की मार्केटिंग करने के लिए विज्ञापनदाता भी मिले।
जयराज कहते हैं, “हमने दूसरे वर्ष, 1974 में 25,000 प्रतियां बेचीं, और आज हम सालाना 1.5 करोड़ से अधिक प्रतियां बेचते हैं। हमारे पास अब 150 लोगों की टीम है। हमारी टीम हर संस्करण के लिए, मिनी-एनसाइक्लोपीडिया जैसे कैलेंडर बनाने के लिए महीनों तक सामग्री पर गहन शोध करती है। हम किसी भी धर्म का प्रचार नहीं करते हैं और ना ही अवांछित सलाह देते हैं।”
कैसे कालनिर्णय बन गया हर घर का हिस्सा
हर साल, नवरात्रि के पहले दिन कैलेंडर जारी किया जाता है और वे इसके तुरंत बाद अगले साल के लिए काम शुरू करते हैं। महीनों तक, टीम यह जानने के लिए लोगों के बीच सर्वेक्षण करती है कि वे कैलेंडर में क्या चाहते हैं। वे नवीनतम रुझानों को भी शामिल करते हैं।
जयराज एक विशेष घटना को याद करते हैं, जब एक प्रोफेसर ने उन्हें महत्वपूर्ण अवसरों को रंगों में या प्रतीकों के साथ चिह्नित करने का विचार दिया। वे कहते हैं, “80 के दशक में मैं एक प्रोफेसर से मिलने गया था और मैंने उसे पीले रंग में श्रवण (उपवास) की तारीखों को चिह्नित करते हुए देखा था। अब, हम एक वारकरी ध्वज के साथ दिनों का प्रतीक प्रस्तुत करते हैं। एक अन्य उदाहरण में, एक अख़बार वाले ने हमारे प्रसिद्ध जिंगल ‘कालनिर्णय घ्या ना’ (कालनिर्णय लीजिये ना) के विचार को प्रेरित किया। हमारी वेबसाइट 1996 में शुरू की गई थी, जब विदेश में रहने वाले भारतीयों ने भी कैलेंडर में दिलचस्पी दिखाई थी। लॉन्च के पहले महीने में ही हमने दुनिया भर के NRIs से सैकड़ों प्रतिक्रियाएं प्राप्त की।”
हालाँकि, लोगों की सलाह सुनना और उनके अनुसार परिवर्तनों को शामिल करना हमेशा उनके पक्ष में नहीं रहा। उन्होंने इन वर्षों में कई मुकदमों का सामना किया है। एक व्यक्ति ने कंपनी के खिलाफ एक मामला दायर किया था, क्योंकि उसे अपने घर के मंदिर के ठीक बगल में लटके हुए कैलेंडर में चिकन की रेसिपी लिखा होना ठीक नहीं लगा था।
सलगांवकर परिवार ने कैलेंडर की विश्वसनीयता का उपयोग सामाजिक वर्जनाओं और मुद्दों के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए भी किया है। 1980 के संस्करणों में से एक में, दूध के बारे में लिखा और बताया था कि कैसे शिशुओं के लिए माँ का दूध सबसे अच्छा होता है। एक साल एड्स से जुड़े मिथकों के बारे में बताया था। हाल ही में, कैलेंडर में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बताया गया है।
शक्ति, 2016 में इस बिजनेस से जुड़ी हैं। वह कहती हैं, “हम वे सारी चीज़ें शामिल करते हैं, जिनमें लोगों की रुचि है, स्वास्थ्य, बीमा घोटाले, जैविक खेती से लेकर पोषण तक। जब सब कुछ डिजिटल होने लगा, तो हमने जल्द ही एप्लिकेशन और वेबसाइट लॉन्च किया। कई लोगों ने हमें बताया कि इंटरनेट कैलेंडर की जगह लेंगे, लेकिन हम एक कदम आगे थे।“
उन्होंने अपने लाभ के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का उपयोग किया और ग्राहकों से सीधे जुड़े, प्रश्नों का उत्तर दिया और उनकी प्रतिक्रिया ली। उन्होंने वेबसाइट को सरल रखा, और सबसे महत्वपूर्ण बात उन्होंने सामग्री सटीक और सरल रखी। टीम नियमित रूप से अपने हैंडल पर कंटेंट अपडेट करती है।
सलगांवकर परिवार में जयराजऔर शक्ति के अलावा जयराज के भाई जयेंद्र और उनके भतीजे समर्थ ने भी नए समाधानों के साथ साल-दर-साल कंपनी के विकास में योगदान दिया है। उनके राजस्व की वार्षिक वृद्धि दर 10-12% के बीच है और पिछले साल उन्होंने महामारी के बावजूद 50 करोड़ रुपये का राजस्व कमाया है।
2013 में जयंतराव की मृत्यु हो गई। जयराज और शक्ति ने विरासत में मिले इस बिजनेस को पूरे लगन के साथ आगे बढ़ाया है और महामारी के सबसे मुश्किल समय में भी मिलकर बेहतर तरीके से काम कर रहे हैं।