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कैसे हेमा, रेखा, जया और सुषमा समेत करोड़ों भारतीयों का फेवरेट बना स्वदेशी ‘निरमा’
हो सकता है कि आज आप अपने कपड़ों को धोने के लिए निरमा डिटर्जेंट पाउडर का इस्तेमाल न भी करते हों, लेकिन ऐसा शायद ही संभव हो कि आपने यह जिंगल न सुना हो या सफेद फ्रॉक पहने गोल-गोल घूमती लड़की का यह विज्ञापन न देखा हो।
आकर्षक जिंगल और विज्ञापन के ज़रिए ही निरमा ब्रांड के संस्थापक करसनभाई पटेल, 1980 के दशक की शुरुआत में पूरे देश का ध्यान खींचने और बाजार में बड़े नामों से आगे निकलने में सफल रहे थे। यह करसनभाई पटेल की कहानी है, जिन्होंने अपने आँगन में एक डिटर्जेंट बनाया और उसे भारत के हर मध्यम-वर्गीय घर तक पहुँचाया। साल था 1969, उस समय पूरे देश में हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड (अब हिंदुस्तान यूनिलीवर) का एक ब्रांड, ‘सर्फ’ का डिटर्जेंट बाजार में एकाधिकार था। इस डिटर्जेंट की कीमत 10 रुपये से 15 रुपये के बीच थी। यह हाथों को नुकसान पहुँचाए बिना कपड़ों से दाग हटाता था और कपड़ों के लिए अन्य साबुन की तुलना में बेहतर था। हालाँकि, मध्यम-वर्गीय परिवारों के लिए इस डिटर्जेंट की कीमत ज्यादा थी। ज़्यादातर लोगों के लिए यह उनके बजट से बाहर था। इसलिए उन्होंने साबुन का ही इस्तेमाल जारी रखा। करसनभाई पटेल गुजरात सरकार के खनन और भूविज्ञान विभाग में केमिस्ट थे। वह इस बाजार में प्रवेश करना चाहते थे और अपने जैसे मध्यम वर्गीय परिवारों को कुछ राहत दिलाना चाहते थे। उन्होंने गुजरात के अहमदाबाद में अपने घर के आँगन में एक डिटर्जेंट बनाने का फैसला किया। वह चाहते थे कि उत्पादन की लागत और उत्पाद की कीमत, दोनों ही कम हो। उन्होंने एक फॉर्मूला विकसित किया और एक पीले रंग के डिटर्जेंट पाउडर का निर्माण किया। इस डिटर्जेंट को उन्होंने 3 रुपये में बेचना शुरु किया। निरमा ब्रांड का नाम, पटेल की बेटी निरुपमा पर रखा गया था, जिसकी मौत एक दुर्घटना में हुई थी।
करसनभाई पटेल घर-घर जा कर, यह वॉशिंग पाउडर बेचा करते थे और काम न करने पर पैसे वापस देने की गारंटी भी देते थे। एक गुणवत्ता वाला उत्पाद, निरमा उस समय का सबसे कम कीमत वाला ब्रांडेड वाशिंग पाउडर भी था। कुछ ही दिनों में यह अहमदाबाद में बेहद लोकप्रिय हो गया। जल्द ही, पटेल ने अपनी नौकरी छोड़ दी और इस बिजनेस को आगे बढ़ाने और बाजार में बड़े खिलाड़ियों के साथ आने का फैसला किया। उस समय छोटे व्यपारियों का ज़्यादातर काम क्रेडिट पर होता था। यदि पटेल ऐसा करते तो उन्हें भारी नकदी संकट का सामना करना पड़ सकता था। वह जोखिम नहीं उठाना चाहते थे। इससे बचने के लिए, उन्होंने एक शानदार योजना तैयार की। एक ऐसी योजना जिसने निरमा नाम को देश के घर-घर तक पहुंचाया। वाशिंग पाउडर अहमदाबाद में काफी अच्छा काम कर रहा था। पटेल ने एक टेलीविजन विज्ञापन में थोड़ा पैसा लगाया। ज़ुबान पर फौरन चढ़ने वाला जिंगल, जिसमें कहा गया था- सबकी पसंद निरमा और सफेद पोशाक पहने लड़की तुरंत मशहूर हो गई।
इस प्रोडक्ट को खरीदने के लिए स्थानीय बाजारों में ग्राहकों की भीड़ लग गई। हालाँकि, पटेल ने यहाँ थोड़ी चालाकी दिखाई। मांग बढ़ाने के लिए उन्होंने 90 फीसदी स्टॉक वापस ले लिया।लगभग एक महीने तक, ग्राहक विज्ञापन देखते रहे, लेकिन जब वे वॉशिंग पाउडर खरीदने के लिए बाहर जाते, तो खाली हाथ ही घर वापस लौटते। खुदरा विक्रेताओं ने आपूर्ति के लिए पटेल से अनुरोध किया और एक महीने बाद पटेल बाज़ार में प्रॉडक्ट ले कर आए। प्रॉडक्ट की मांग आसमान छू रही थी। मांग इतनी ज़्यादा थी कि निरमा ने बड़े अंतर से सर्फ की खरीद को पछाड़ दिया और उस साल सबसे अधिक बिकने वाला डिटर्जेंट बन गया। दरअसल, इस शानदार कदम के बाद, यह एक दशक तक अपने उत्पादन और बिक्री को बनाए रखने में कामयाब रहा। हालाँकि जब भी प्रॉडक्ट बाज़ार के उतार-चढ़ाव से प्रभावित होता पटेल इसे लेकर बहुत ज़्यादा फिक्रमंद नहीं होते क्योंकि उन्होंने केवल एक डिटर्जेंट के निर्माण से आगे जाने का फैसला किया था। जल्द ही, उन्होंने टॉयलेट सोप, सौंदर्य साबुन, शैंपू और टूथपेस्ट लॉन्च किए। कुछ उत्पाद सफल रहे, तो कुछ ज्यादा सफल नहीं रहे। लेकिन ब्रांड निरमा ने बाजार पर अपनी मजबूत पकड़ कभी नहीं खोई। आज, इसकी साबुन में 20% और डिटर्जेंट में लगभग 35% की बाजार हिस्सेदारी है।
1995 में, पटेल ने अहमदाबाद में निरमा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की स्थापना कीऔर 2003 में उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट और निरमा यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की स्थापना की। वह कहते हैं कि व्यापार को बनाए रखने और बाजारों में इसका विस्तार करने के जुनून के पीछे की ताकत उनकी दिवंगत बेटी के लिए प्यार है। पटेल को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों के साथ सम्मानित किया जा चुका है है, जिनमें 2010 में पद्मश्री भी शामिल है। उनका नाम फोर्ब्स की भारत के सबसे धनी लोगों की सूची (2009 और 2017) में भी शामिल किया गया था। पटेल के पास मैनेजमेंट डिग्री नहीं थी लेकिन वह बड़े नाम के सामने खड़े होने से डरे नहीं। बेहतरीन व्यावसायिक समझ और तेज़ दिमाग वाले करसनभाई उद्यमी बिरादरी में एक दिग्गज नाम हैं।उन्होंने साबित कर दिया है कि यह सिर्फ उनका ब्रांड नहीं है, बल्कि उनकी प्रतिभा है जो भारत में “सबकी पसंद” है।