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इस स्वदेशी कंपनी ने दिया था दुनिया को पहला वेजीटेरियन साबुन
आपको शायद यकीन न हो लेकिन नोबेल विजेता गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर 1920 के दशक की शुरूआत में इस साबुन का प्रचार करने के लिए तैयार हो गए थे। सिर्फ टैगोर ही नहीं बल्कि एनी बेसेंट और सी राजगोपालाचारी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने भी ‘गोदरेज नंबर 1’ साबुन का विज्ञापन किया था। इसका उद्देश्य पहले स्वदेशी और क्रूरता-रहित साबुन का प्रचार करना और भारत के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन को और मजबूत बनाना था। नेताओं ने अपने राजनीतिक बयानों से जनता से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर उपनिवेशवादियों के अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए अनुरोध किया। उन्होंने भारतीयों के लिए भारतीयों द्वारा बने सामानों का इस्तेमाल करने की अपील की। पेशे से व्यवसायी और देशभक्त अर्देशिर गोदरेज ने 1897 में इस स्वदेशी ब्रांड को शुरू किया। उनके छोटे भाई पिरोजशा भी इस व्यवसाय में शामिल हुए और उन्हें गोदरेज ब्रदर्स के नाम से जाना जाने लगा।
चार साल बाद, जब मैसूर (मैसूरु) और मद्रास (चेन्नई) की सरकारों ने भारत में साबुन बनाने का काम शुरू किया, तो अर्देशिर ने भी इसका प्रयोग करना शुरू कर दिया और इस तरह साबुन बनाने की यात्रा शुरू की।
इस साबुन के बारे में और जानें
अर्देशिर ने बताया कि “अगर लोगों को नंबर 2 इतना अच्छा लगता है, तो वे नंबर 1 को और भी बेहतर मानेंगे।”
उन्होंने 1918 में भारत और दुनिया का वनस्पति तेल से बना पहला स्वदेशी साबुन बाजार में उतारा जिसे ‘चावी’ (गुजराती में कुंजी) कहा जाता है। उस दौरान दुनिया भर में साबुन बनाने में एनिमल फैट का इस्तेमाल किया जाता था लेकिन अर्देशिर ही वह शख्स थे जिन्होंने साबुन बनाने के लिए एक वेजिटेरियन विकल्प ढूंढा।
“हमने चावी लॉन्च किया, जो दुनिया में जानवरों की चर्बी के बिना निर्मित पहला साबुन था। हम स्वदेशी और अहिंसा के पदचिह्नों पर चलते हैं,“ यह थी नंबर 2 ’साबुन की टैगलाइन। आर्देशिर को देश की नब्ज की पहचान थी, जहाँ अधिकांश लोग शाकाहारी थे और अहिंसा उपभोक्ताओं के केंद्र में थी। गोदरेज के विशाल साम्राज्य के निर्माण का इतिहास कुछ ऐसा है जो सभी मार्केटिंग मंत्रों के साथ बड़े पैमाने पर लिखा गया है, मार्केटिंग की तिकड़मबाजी के बिना भी आपका ध्यान खींचा जा सकता है। पारदर्शिता के जरिए अर्देशिर अपने ग्राहकों के बीच विश्वास कायम करना चाहते थे। उन्हें यह बताने में जरा भी संकोच नहीं हुआ कि साबुन बनाने में वेजिटेबल ऑयल को कैसे निकाला जाता है। यह शायद एक बहुत ही साहसिक कदम था। ज्यादातर कंपनियाँ ऐसी प्रक्रियाओं को गुप्त रखती हैं जब तक कि उनके पास पेटेंट न हो।
1920 के दशक में साबुन बेचने के साथ कंपनी ने ‘वाचो ऐने सीखो ’(पढ़ें और सीखें) शीर्षक से गुजराती में पर्चे बाँटे, जिसमें लिखा था “गोदरेज साबुन रिफाइंड ऑयल से बनाया जाता है। तेल की प्राकृतिक बनावट में कुछ पदार्थ होते हैं जो साबुन में मौजूद रहते हैं और शरीर के लिए अच्छे नहीं होते हैं। तेल से ऐसे पदार्थ निकालने के बाद जो बचता है उसके उपयोग से गोदरेज साबुन बनता है।”
1926 में एक तुर्की बाथ सोप लॉन्च किया गया था। हालाँकि, यह वतनी (वतन या मातृभूमि) वैरिएंट था जो 1930 के दशक की शुरुआत में आया था जब स्वदेशी आंदोलन अपने चरम पर था, जिसने भारतीयों को अपने देशभक्ति के उत्साह के साथ मंत्रमुग्ध कर दिया। यह ‘सुपीरियर और स्वदेशी’ साबुन हरे और सफेद रैपर में था जिस पर अविभाजित भारत का मानचित्र बना था। विभाजन के बाद भी कुछ सालों तक मानचित्र को नहीं हटाया गया।
1950 के दशक में प्रसिद्ध अभिनेत्री मधुबाला, जो कि पहले से ही हर घर का एक जाना माना नाम बन चुकी थीं, अब वतनी का चेहरा बन गईं। यह कुछ ब्रांडों में से पहला था जिसका किसी सेलिब्रिटी से विज्ञापन कराया गया था। दो साल बाद भारत के स्वतंत्रता दिवस पर कंपनी ने पिरोजशा के बेटे बुर्जोर गोदरेज के आगमन के साथ सिंथोल लॉन्च किया।
“कंपनी ने कम कीमत पर साबुन की गुणवत्ता में सुधार करने पर जोर दिया। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में भारत में G-11 या हेक्साक्लोरोफेन (साबुन में एक कीटाणुनाशक के रूप में इस्तेमाल किया जाने वाला पाउडर एजेंट) युक्त प्रसाधनों की शुरूआत थी। उन्होंने साबुन और अन्य टॉयलेट उत्पादों के लिए भारत में जी -11 के इस्तेमाल के लिए लाइसेंस प्राप्त किया। इस तरह 1952 में सिंथोल लांच किया गया, ” – गोदरेज अर्काइव से प्राप्त जानकारी।
’सिंथोल’ साबुन के नाम के पीछे की कहानी के बारे नादिर गोदरेज ने इकोनॉमिक टाइम्स को बताया कि कीटाणुनाशक साबुन एक अच्छे डियोड्रेंट साबुन साबित हुए और सिंथोल उसी का परिणाम था। सिंथेटिक और फिनोल के कॉम्बिनेशन में गोदरेज ने सिंथेटिक के पहले अक्षर एस और अंतिम अक्षर सी से एक जेंटलर ब्रांड नाम बना दिया। ब्रांड ने अन्य उत्पादों जैसे टैल्कम पाउडर, डियोड्रेंट और शॉवर जेल भी बाजार में उतारा।
1936 में अर्देशिर की मृत्यु हो गई जिसके बाद पिरोजशा ने पदभार संभाला और सालों तक विभिन्न क्षेत्रों में कंपनी का विस्तार करते रहे। हालांकि कंपनी के पास इंटीग्रेटेड टेक्नोलॉजी है और इसने साबुन के कई वर्जन विकसित किए हैं, लेकिन इसकी गुणवत्ता और ग्राहकों का विश्वास आज भी कायम है। सिंथोल और गोदरेज नंबर 1 इतनी प्रतिस्पर्धाओं के बावजूद बाजार पर हावी है। गोदरेज बंधु उन कुछ व्यवसायियों में से एक थे जिन्होंने लगातार समग्र विकास के बारे में सोचा, जिससे न केवल कंपनी को बल्कि उपभोक्ताओं को भी फायदा हुआ। सस्ती कीमतें और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान इसका प्रमाण हैं।