अधिक मास की एकादशी : इसको करने से मिलता है सभी यज्ञों का फल

अधिक मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को पुरुषोत्तमी एकादशी कहते हैं। काशी के ज्योतिषाचार्य और धर्म ग्रंथों के जानकार पं. गणेश मिश्र का कहना है कि 3 साल में आने वाली ये एकादशी बहुत ही खास होती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत-उपवास करने से ही हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। इस व्रत से सालभर की एकादशियों का पुण्य मिल जाता है। हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक पुरुषोत्तमी एकादशी व्रत अधिक मास में आता है। भगवान विष्णु के महीने में होने से ये व्रत और भी खास हो जाता है।

 ग्रंथों में इस व्रत को सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण बताया गया है। ब्रह्मांड पुराण में कहा गया है कि मलमास की एकादशी पर उपवास और भगवान विष्णु की पूजा करने के साथ ही नियम और संयम से रहने पर भगवान विष्णु खुश होते हैं। अन्य पुराणों में कहा गया है कि इस व्रत से बढ़कर कोई यज्ञ, तप या दान नहीं है। इस एकादशी का व्रत करने वाले इंसान को सभी तीर्थों और यज्ञों का फल मिल जाता है। जो इंसान इस एकादशी पर भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की पूजा और व्रत करता है। उसके जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। ऐसा इंसान हर तरह के सुख भोगकर भगवान विष्णु के धाम को प्राप्त करता है।

  1. एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ स्नान करना चाहिए
  2. तीर्थ स्नान न कर सकें तो घर में ही पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें डालकर नहा सकते हैं।
  3. पानी में तिल, कुश और आंवले का थोड़ा सा चूर्ण डालकर नहाना चाहिए।
  4. नहाने के बाद साफ कपड़े पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करें और मंदिर में दर्शन करें।
  5. भगवान के भजन या मंत्रों का पाठ करना चाहिए और कथा सुनें।
  6. भगवान को नैवेद्य लगाकर सब में बांट दें और ब्राह्मण भोजन करवाएं।
  7. इस एकादशी से बढ़कर कोई यज्ञ या तप नहीं

व्रत की कथा

पुराने समय में महिष्मती नगर का राजा कृतवीर्य था। उसकी कोई संतान नहीं थी। राजा ने कई व्रत-उपवास और यज्ञ किए, लेकिन फायदा नहीं हुआ। इससे दुखी हो राजा जंगल में जाकर तपस्या करने लगा। कई साल तप में बीते, लेकिन उसे भगवान के दर्शन नहीं हुए। तब उसकी एक रानी प्रमदा ने अत्रि ऋषि की पत्नी सती अनुसूया से पुत्र पाने का उपाय पूछा। उन्होंने पुरुषोत्तमी एकादशी व्रत करने को कहा। इस व्रत को करने से भगवान राजा के सामने प्रकट हुए और उसे वरदान दिया कि तुझे ऐसा पुत्र मिलेगा जिसे हर जगह जीत मिलेगी। देव और दानव भी उसे नहीं हरा पाएंगे। उसके हजारों हाथ होंगे। यानी वो अपनी इच्छा से अपने हाथ बढ़ा सकेगा। इसके बाद राजा के घर पुत्र हुआ। जिसने तीनों लोक को जीतकर रावण को भी हराया और बंदी बना लिया। रावण के हर सिर पर दीपक जलाकर उसे खड़ा रखा। उस महाबली को ही सहस्त्रार्जुन कहा जाता है।