NAI SUBEH
दशहरा विजय प्रस्थान का प्रतीक है
दशहरा विजय प्रस्थान का प्रतीक है
भगवान राम के समय से यह दिन विजय प्रस्थान का प्रतीक निश्चित है। भगवान राम ने रावण से युद्ध हेतु इसी दिन प्रस्थान किया था और कई दिनों बाद रावण से युद्ध के लिए इसी दिन को चुना।
राम एवं रावण के युध्य में एक दिन ऐसा आया था जब राम की सेना पराजित हो गयी थी।रावण ने तोड़ फोड़ मचा दी थी।सुग्रीव वेहोश हो गए , सौमित्र बेहोश हो गए, लक्समन बेहोश हो गए।राम लौटे तो राम बहुत दुखी थे।
चूकि जामवंत सेना में सबसे उम्रदराज थे अतः उन्होंने राम जी को समझाया।उन्होंने कहा क्यों परेशान हो रहे हैं उसके भी वही हाँथ हैं, वही पैर है, वही तुड़ीर है।उसे भी मार लेंगे।किसी किसी दिन होता है उस दिन उसका होता है।किसी दिन नहीं होता।
राम जी कहते है “नहीं ऐसी बात नहीं है.” जब मैं युद्ध लड़ रहा था तो एक बात देखी। रावण अकेले नहीं लड़ रहा था। रावण के साथ सक्ति लड़ रहीं थी। दुर्गा लड़ रहीं थी। देवी लड़ रही थी।
यह अजीब बात है की मैं धर्म के साथ हूँ पर वो मेरे साथ नहीं लड़ रही हैं वो रावण के साथ लड़ रही है।
इस पर राम जी से जामवंत जी ने कहा की यदि ऐसी बात है तो युद्ध हम संभाल लेंगे आप जाकर पूजा कीजिये।
108 नील कमल मगाये गये। 09 दिन राम जी ने ध्यान धारण किया। एवं एक एक करके माता के चरणों में कमल वो चढ़ाते थे। त्रिकुटी में ध्यान साधते हुए माता का प्रतिबिम्ब बनाते थे एवं पूजन करते थे। जैसे साधु जान ईश्वर का ध्यान लगाते है। राम जी ध्यान में चढ़ते चले गए। आखिरी दिन जब वो दिन आया जिस दिन उन्हें सक्ति माँ का वर मिलना था। 107 कमल जब उन्होंने चढ़ा दिये। तो देवी माँ ने विचार किया क्यों न इनकी परीक्षा ली जाये। माँ ने आखरी नील कमल उठा कर ले गई।
राम जी ने थाली में हाँथ घुमाया तो कमल नहीं मिला। तो राम जी ध्यान से नीचे उतरे और देखा की थाल में कमल नहीं है। राम जी ने सोचा अब तो साधना भंग हो जाएगी। राम जी की ऑंखें भीग गयी।
महा कवि निराला जी ने भी कहा है कि:
दिग जीवन जो सदा ही सहता आया है विरोध,
दिग साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध।
जानकी हाय उद्धार प्रिया का हो न सका ,
पर एक ओर रहा मन राम का जो न थका।।
राम जी ने विचार किया कि ऐसे ही हार नहीं मानूँगा। ऐसे ही पूजा नहीं छोडूंगा। राम जी ने याद किया की मेरी माँ मुझे राजीव नयन कहती थी। वो कहती थी कि कमल के जैसे नयन वाला है मेरा पुत्र। अतः मेरे पास तो अभी दो कमल है. मैं इन्हे ही माँ को समर्पित कर दूंगा। राम जी ने अपने तरकश से तीर निकला और जैसे ही अपनी एक आँख निकालने ही वाले थे कि मेरी आँख रहे या न रहे युद्ध में मेरी जीत होनी चाहिये धर्म की जीत होनी चाहिए , तो माँ सक्ति ने उनके हाँथ रोक दिये और कहा।
जा राम तेरी ही जीत होगी मैं तेरी भक्ति एवं पूजा से प्रसन्न हूँ।
इस प्रकार विजय प्राप्त करने के लिए राम जी ने पहले 09 दिन तक माँ सक्ति की उपासना एवं भक्ति कर सक्ति प्राप्त की फिर युध्य के लिए गये एवं विजय प्राप्त की।
विष्णु धर्मोत्तर पुराण में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि श्रीराम ने युद्ध के लिए विजयादशमी पर यात्रा शुरू की थी।
दशहरे का व्यावहारिक महत्व भी है हमारे जीवन में
अश्विन माह के शुक्लपक्ष के शुरुआती 9 दिनों तक माँ शक्ति कि पूजा की जाती है। यानी अपने अंदर की सकारात्मक ऊर्जा को पहचान कर देवी रूप में उसका पूजन किया जाता है। इन 9 दिनों तक शक्ति पूजा करने के बाद दसवें दिन शस्त्रों की पूजा की जाती है। इसी दिन अपनी सकारात्मक शक्तियों से नकारात्मक शक्तियों पर जीत प्राप्त की जाती है मतलब खुद की बुराई पर जीत हासिल करना ही इस विजय पर्व को मानाने का मुख्य उद्देश्य है।