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चक्रव्यूह (Chakraview)
नि:संदेह कुरुक्षेत्र की धरती पर 48×120 किलोमीटर क्षेत्रफल में लड़ा गया महाभारत का भीषण युद्ध विश्व का सबसे बड़ा युद्ध था जिसमें भाग लेने वाले सैनिकों की संख्या 1.8 मिलियन थी। परमाणु हथियारों समेत इतना भयंकर युद्ध इतिहास में केवल एक बार ही घटित हुआ है और इसमें सबसे भयंकर रचा गया रणतंत्र था ‘चक्रव्यूह’
‘चक्र यानी पहिया’ और ‘व्यूह यानी गठन’। पहिए की तरह लगातार घूमने वाले व्यूह को चक्रव्यूह कहते हैं और इस युद्ध का सबसे खतरनाक रणतंत्र यह चक्रव्यूह ही था। आज का आधुनिक जगत भी चक्रव्यूह जैसे रणतंत्र से अनभिज्ञ है। चक्रव्यूह या पद्मव्यूह को बेधना असंभव था। द्वापर काल में केवल सात लोग (भगवान कृष्ण, अर्जुन, भीष्म, द्रॊणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा और प्रद्युम्न) ही इस व्यूह को बेधना जानते थे। अभिमन्यु केवल चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश करना ही जानता था।
सात परतों वाले इस चक्रव्यूह की सबसे अंदरूनी परत में शौर्यवान सैनिक तैनात होते थे। यह परत इस प्रकार बनायी जाती थी कि बाहरी परत के सैनिकों से अंदर की परत के सैनिक शारीरिक और मानसिक रूप से ज्यादा बलशाली होते थे। सबसे बाहरी परत में पैदल सैन्य के सैनिक तैनात हुआ करते थे। अंदरूनी परत में अस्र शस्त्र से सुसज्जित हाथियों की सेना हुआ करती थी। चक्रव्यूह की रचना एक भूल भुलैय्या जैसी हॊती थी जिसमें एक बार शत्रु फंस गया तो घनचक्कर बनकर रह जाता था। चक्रव्यूह में हर परत की सेना घड़ी के कांटे के जैसे हर पल घूमती रहती थी। इससे व्यूह के अंदर प्रवेश करने वाला व्यक्ति अंदर ही खॊ जाता और बाहर जाने का रास्ता भूल जाता था।
महाभारत में व्यूह की रचना गुरु द्रॊणाचार्य ही करते थे। चक्रव्यूह को युग का सबसे सर्वेष्ठ सैन्य दलदल माना जाता था। इस व्यूह का गठन युधिष्टिर को बंदी बनाने के लिए किया गया था।
चक्रव्यूह को घूमता हुआ मौत का पहिया भी कहा जाता था। क्योंकि एक बार जो इस व्यूह के अंदर गया वह कभी बाहर नहीं आ सकता था। यह पृथ्वी की तरह अपने अक्स में ही घूमता रहता था। चूंकि साथ साथ परिक्रमा करती हुई हर परत भी घूम जाती थी इस कारण बाहर जाने का द्वार हर वक्त अलग दिशा में बदल जाता था जो शत्रु को भ्रमित करता था। अद्भुत और अकल्पनीय युद्ध तंत्र था ‘चक्रव्यूह। आज का जगत इतना आधुनिक होते हुए भी इस उलझे हुए और असामान्य रणतंत्र को युद्ध में नहीं अपना सकता है।