देव पूजा विधि Part-10 नवरात्र में दुर्गा-पूजन की विधि

नवरात्र तिथि निर्णय – नवरात्र  शब्द से ही स्पष्ट है कि इसमें नौ दिनों से न होकर नौ (रात्री) तिथियाँ है। तिथियों का उल्लेख पञ्चाङ्ग स्पष्ट रूप से रहता है। नवरात्र की तिथि से तात्पर्य शक प्रतिपदा से नवमी-पर्यन्त होती हैं। कभी आठ दिन में ही नवरात्र पूर्ण हो जाती हैं तो कभी नौ दिनों में । कभी-कभी दस दिन में भी नौ तिथियाँ पूर्ण होती हैं; अतः पञ्चाङ्ग में दिये निर्देशानुसार नवरात्र की अवधि 8 दिन से लेकर 10 दिनों तक हो सकती है। यह प्रतिपदा से लेकर नवमी-पर्यन्त (तिथियों की क्षय-वृद्धि के कारण) सम्पन्न किया जाता है।

मुख्य नवरात्र- चैत्र शुक्ल तथा आश्विन शुक्ल में होने वाला नवरात्र मुख्य नवरात्र तथा प्रचलित नवरात्र हैं। स्कन्दपुराण के अनुसार

आश्विने मधुमासे वा तपोमासे शुचौ तथा।

चतुर्षु नवरात्रेषु विशेषात् फलदायकम्॥

 आषाढ़ शुक्ल तथा पौष शुक्ल में भी प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि-पर्यन्त नवरात्र होते हैं, उन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। इनमें आषाढ़ शुक्ल का नवरात्र तो निर्विवाद है, परन्तु पौष शुक्ल के नवरात्र के स्थान पर प्राचीन काल में ही विकल्प हो गया था; तदनुसार कुछ सम्प्रदाय मार्गशीर्ष मास में गुप्त नवरात्र की पूजा शुक्ल प्रतिपदा से नवमी-पर्यन्त करते रहे हैं। इसका उल्लेख श्रीमद्भागवत में आता है। मार्गशीर्ष (हेमन्त के प्रथम मास) में नन्द-व्रज की कुमारियाँ कात्यायनी देवी की पूजा करती थीं

हेमन्ते प्रथमे मासे नन्दव्रजकुमारिकाः ।

चेरुर्हविष्यं भुञ्जानः कात्यायन्यर्चितव्रतम्॥1॥

आप्लुत्यम्भसि कालिन्द्या जलान्ते चोदितेऽरुणे।

कृत्वा प्रतिकृतिं देवीं आनूचुर्नृपसैकतीन्॥2॥

गन्धमाल्यैः सुरभिर्बलिभिधूपदीपकैः ।

उच्चावचैश्चोपहारैः प्रवालफलतण्डुलैः ॥ 3॥

 कुछ माघ शुक्ल में प्रतिपदा लेकर नवमी पर्यन्त देवीपूजा करते हैं। शेष पौष शुक्ल में ही गुप्त नवरात्र मानते हैं ।

देवीभागवत में भी चैत्र-आषाढ़-आश्विन तथा माघ में होने वाले नवरात्र का उल्लेख हैं।

नवरात्र का आरंभ कब करें?

अनुष्ठानप्रकाश के मूल में ‘दशघटिका मध्येऽभिजिन्मुहूर्ते वा लिखा है, वह पुरुषार्थचिन्तामणि के अनुसार है। उसके अनुसार जिस शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा, अमावस्या की समाप्ति पर (अमावस्या वाले दिन) सूर्योदय से चार मुहूर्त (आठ घटी) अथवा पाँच मुहूर्त (दश घटी) के उपरान्त प्रारम्भ हो जाय तथा द्वितीय दिन (अमावस्या के अगले दिन) केवल दो मुहूर्त ही हो तो उसका क्षय होने से पूर्व दिन ही दश घटी के भीतर नवरात्र का आरम्भ (घटस्थापन) करना चाहिये, परन्तु जिस अमावस्या में दश घटी के भीतर प्रतिपदा का प्रवेश न हो तथा प्रतिपदा का क्षय हो तो उसमें अभिजित् मुहूर्त में घटस्थापन करना चाहिये; अन्यथा सूर्योदय के उपरान्त अगले दिन प्रतिपदा यदि तीन मुहूर्त से अधिक हो तो उसका क्षय न मानकर उसी दिन घटस्थापन कर नवरात्रारम्भ करना चाहिये।

नवरात्र व्रत की पारणा-

धर्मसिन्धुः के अनुसार ‘नवरात्रशब्दः आश्विनशुक्लप्रतिपदमारभ्य महानवमीपर्यन्तं क्रियमाणकर्मनामधेयम्। तत्र कर्मणि पूजैव प्रधानम्। उपवासादिकं स्तोत्रजपादिकं चाङ्गम्। तथा च यथा कुलाचारमुपवासैकभक्तनक्तायाचितान्यतमव्रतयुक्तं यथाकुलाचारं सप्तशतीलक्ष्मीहदयादिस्तोत्रजपसहितं प्रतिपदादिनवम्यन्तं नवतिथ्यधिकरणकपूजाख्यं कर्म नवरात्रशब्दवाच्यम्। पूजाप्राधान्योक्तेरेव। क्वचित् कुले जपोपवासादिनियमस्य व्यतिरेक उपलभ्यते। पूजायास्तु न क्वापि कुले नवरात्रकर्मण्यभावो दृश्यते।’ धर्मसिन्धुः।

 जिनके परिवार में नवरात्र में नित्य उपवास रखा जाता हो, वह उपवास महानवमी-पर्यन्त (नवरात्रोत्थापनपर्यन्त) करना चाहिये। उसके उपरान्त उसी दिन नवरात्र व्रत की पारणा भी करनी चाहिये। 

नवरात्र में दुर्गापूजा की विधि- 

नवरात्र में प्रतिपदा के दिन (प्रथम दिन) प्रात:काल शौचादि से निवृत्त होकर नवीन वस्त्र धारण करे। चन्दन, कस्तूरी तथा केसर को घिस कर ललाट पर उनका चन्दन लगाये। अपना नित्य पूजन कर्म करके प्रात:काल दश घटी के पूर्व (सूर्योदय से चार घण्टे के मध्य) में अथवा अभिजित् मुहूर्त (ठीक मध्याह्न समय) में कलशस्थापना के लिये शुद्ध मृत्तिका की वेदी (चौकोर चबूतरा) बनाकर अपने आसन पर पूर्व की ओर मुख करके बैठे अथवा देवी जी के मन्दिर में उनकी प्रतिमा के सम्मुख बैठकर आचमन तथा प्राणायाम करे। हाथ में पवित्री धारण करे।

शुद्ध मृत्तिका में यव रोपण कर उसपर कलश-स्थापन विधि से कलश स्थापन करें। आचमन, प्राणायाम करके संकल्प वाक्य के अन्त में ‘अमुकगोत्रोऽमुकशर्मा ममेह जन्मनि दुर्गाप्रीतिद्वारा सर्वपापक्षयपूर्वकदीर्घायुर्विपुलधनपुत्रपौत्राद्यविच्छिन्नसन्ततिवृद्धिस्थिरलक्ष्मीकीर्तिलाभशत्रुपराजयसदभीष्टप्रमुखचतुर्विधपुरुषार्थसिद्धयर्थं संवत्सरसुखप्राप्तिकामः शारदीयनवरात्रे प्रतिपदि विहितं कलशस्थापनं दुर्गापूजां कुमारीपूजादिकर्म करिष्ये, तदङ्गत्वेन निर्विघ्नतार्थं गणपतिपूजनं स्वस्तिपुण्याहवाचनं चण्डीसप्तशतीजपाद्यर्थं ब्राह्मणवरणं च करिष्ये’  इस संकल्प को करें। इसके आगे ॐ सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः । लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ॥1॥ धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः। द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि॥2॥ विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा। संग्रामे सङ्कटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते॥3॥ इत्यादि श्लोक से गणपति का ध्यान करे। पुनः नीचे लिखे संकल्प से ब्राह्मण का वरण करें।

ॐ अद्य श्रीदुर्गापूजनपूर्वकं मार्कण्डेयपुराणान्तर्गत दुर्गासप्तशती- पाठकरणार्थम् एभिर्वरणद्रव्यैः अमुक गोत्रम् अमुक शर्माणं ब्राह्मणं त्वामहं वृणे।। ब्राह्मण वृतोस्मि कहें। इसके बाद गणेश पूजन,स्वस्तिवाचन,पुण्याहवाचन,कलश स्थापन, नवग्रह पूजन की विधि सम्पन्न करें। ये सभी विधियां इसी ब्लॉग में दिया हुआ है। विधि के नाम पर क्लिक करने पर भी पेज खुलेगा। इसके बाद प्रधान देवी/ देवता(दुर्गा) का पूजन करें।

(भगवती वाहन, भैरव, ध्वजा आदि का भी पूजन करें।)

भैरव-ध्यान-       ॐ करकलितकपालः कुण्डली दण्डपाणि-

                        स्तरुणतिमिरनीलो व्यालयज्ञोपवीती।

                        क्रतुसमयसपर्या विघ्नविच्छेदहेतु-

                        र्जयति बटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम्।।

देवी-ध्यान-        ॐ विद्युद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां

                        कन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेवितम्।

                        हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिखाँश्चापं गुणं तर्जनीं

                        विभ्राणमनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे।।

देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य ।

प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वामीश्वरी देवि चराचरस्य ॥

या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी: पापात्मनां कृतधियां ह्रदयेषु बुद्धिः ।

श्रद्धां सतां कुलजन प्रभवश्य लज्जा तां त्वां नतास्म परिपालय देवि विश्वम् ॥

आवाहन-ॐ आगच्छ वरदे देवि दैत्यदर्पनिषूदिनि।

                        पूजां गृहाण सुमुखि नमस्ते शङ्करप्रिये।। आवाहयामि।

आसन-  ॐ अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम्।

                        इदं हेममयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।। आसनं समर्पयामि

पाद्य-    ॐ गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्यो मया प्रार्थनयाहृतम्।

                        तोयमेतत् सुखस्पर्शं पाद्यार्थं प्रतिगृह्यताम्।। पाद्यं समर्पयामि।

अर्घ्य-ॐ गन्धपुष्पाक्षतैर्युक्तमघ्र्यं सम्पादितं मया।

                        गृहाण त्वं महादेवि प्रसन्ना भव सर्वदा।। अघ्र्यं समर्पयामि।

आचमन-ॐ आचम्यतां त्वया देवि! भक्तिं मे ह्यचलां कुरु।

                        ईप्सितं मे वरं देहि परत्र च पराङ्गतिम्।। आचमनं समर्पयामि।

स्नान-ॐ जाह्नवीतोयमानीतं शुभं कर्पूरसंयुतम्।

            स्नापयामि सुरश्रेष्ठे! त्वां पुत्रादिफलप्रदाम्।। स्नानं समर्पयामि।

पञ्चामृतस्नान-ॐ पयो दधि घृतं क्षौद्रं सितया च समन्वितम्।

                        पञ्चामृतमनेनाद्य कुरु स्नानं दयानिधे।। पञ्चामृतस्नान सॉ।

शुद्धोदकस्नान-ॐ परमानन्दबोधाब्धिनिमग्ननिजमूर्तये।

                  साङ्गोपाङ्मिदं स्नानं कल्पयाम्यहमीशिते।। शुद्धोदकस्नानं समर्पॉ।

वस्त्र-ॐ वस्त्रं च सोमदेवत्यं लज्जायास्तु निवारणम्।

                        मया निवेदितं भक्त्या गृहाण परमेश्वरि।। वस्त्रं समर्पयामि।

उपवस्त्र-ॐ यामाश्रित्य महामाया जगत्सम्मोहिनीं सदा।

                        तस्यै ते परमेशायै कल्पयाम्युत्तरीयकम्।। उपवस्त्रं समर्पयामि।

मधुपर्क-ॐ दधिमध्वाज्यसंयुक्तपात्रयुग्मसमन्वितम्।

                    मधुपर्कं गृहाण त्वं वरदा भव शोभने!।। मधुपर्कं समर्पयामि।

गन्ध-ॐ परमानन्दसौभाग्यपरिपूर्णदिगन्तरे।

                        गृहाण परमं गन्ध कृपया परमेश्वरि।। गन्धं समर्पयामि।

कुङ्कुम-ॐ कुङ्कुमं कान्तिदं दिव्यं कामिनीकामसंभवम्।

                        कुङ्कुमेनार्चितं देवि! प्रसीद परमेश्वरि।। कुङ्कुमं समर्पयामि।

आभूषण-ॐ हारकङ्कणकेयूरमेखलाकुण्डलादिभिः।

            रत्नाढ्यं कुण्डलोपेतं भूषणं प्रतिगृह्यताम्।। आभूषणं समर्पयामि।

सिन्दूर-ॐ सिन्दूरमरुणाभासं जपाकुसुमसन्निभम्।

                        पूजितासि मया देवि! प्रसीद परमेश्वरि।। सिन्दूरं समर्पयामि।

कज्जल-ॐ चक्षुभ्यां कज्जलं रम्यं सुभगे! शान्तिकारिके!

                        कर्पूरज्योतिरुत्पन्नं गृहाण परमेश्वरि।। कज्जलं समर्पयामि।

सौभाग्यद्रव्य-ॐ सौभाग्यसूत्र वरदे! सुवर्णमणिसंयुते।

               कण्ठे बध्नामि देवेशि! सौभाग्यं देहि मे सदा।। सौभाग्यद्रव्यं समर्पयामि।

सुगन्धतैल-(अतर) ॐ चन्दनागरुकर्पूरैः संयुतं कुङ्कुमं तथा।

                        कस्तूर्यादिसुगन्धांश्च सर्वाङ्गेषु विलेपनम्।। सुगन्धतैलं सम0।

परिमलद्रव्य-ॐ हरिद्रारंजिते देवि! सुखसौभाग्यदायिनि!।

                   तस्मात्त्वां पूजयाम्यत्रा सुखशान्तिं प्रयच्छ मे।। परिमलद्रव्यं समर्पयामि।

अक्षत-ॐ रंजिताः कुङ्कुमौघेन अक्षताश्चातिशोभनाः।

                        ममैषां देवि दानेन प्रसन्ना भव शोभने।। अक्षतं समर्पयामि।

पुष्प-ॐ मन्दारपारिजातादि पाटलीकेतकानि च।

                        जातीचम्पकपुष्पाणि गृहाणेमानि शोभने।। पुष्पं समर्पयामि।

पुष्पमाला-ॐ सुरभिपुष्पनिचयैः ग्रथितां शुभमालिकाम्।

            ददामि तव शोभार्थं गृहाण परमेश्वरि!।। पुष्पमाल्यां समर्पयामि।

विल्वपत्रा-ॐ अमृतोद्भवः श्रीवृक्षो महादेवि प्रियः सदा।

            विल्वपत्रां प्रयच्छामि पवित्रां ते सुरेश्वरि!।। विल्वपत्रं समर्पयामि।

धूप-ॐ दशाङ्गुग्गुलं धूपं चन्दनागरुसंयुतम्।

            समर्पितं मया भक्त्या महादेवि! प्रगृह्यताम्।। धूपमाघ्रापयामि।

दीप-ॐ घृतवर्तिसमायुक्तं महातेजो महोज्वलम्।

          दीपं दास्यामि देवेशि! सुप्रीता भव सर्वदा।। दीपं दर्शयामि। (हाथ धो लें)

नैवेद्य-ॐ अन्नं चतुर्विधं स्वादु रसैः षड्भिः समन्वितम्।

            नैवेद्यं गृह्यतां देवि! भक्तिं मे ह्यचलां कुरु।। नैवेद्यं निवेदयामि।

मध्येपानीयं जलं समर्पयामि।

ऋतुफल-ॐ द्राक्षाखर्जूरकदलीपनसाम्रकपित्थकम्।

            नारिकेलेक्षुजम्ब्वादि फलानि प्रतिगृह्यताम्।। ऋतृफलं समर्पयामि।

आचमन-ॐ कामारिवल्लभे देवि! कुर्वाचमनमम्बिके!।

            निरन्तरमहं वन्दे चरणौ तव चण्डिके!।। आचमनं समर्पयामि।

ऋतुफल-ॐ नारिकेलं च नारंगं कलिंगं मंजिरं तथा।

        उर्वारुकं च देवेशि-फलान्येतानि गृह्यताम्।। अखण्ड ऋतुफलं समर्प0।

ताम्बूलपूगीफल-ॐ एलालवङ्गकस्तूरीकर्पूरैः पुष्पवासिताम्।

            वीटिकां मुखवासार्थमर्पयामि सुरेश्वरि!।। ताम्बूलपूगीफलं समर्पयामि।

दक्षिणा-ॐ पूजाफलसमृद्ध्यर्थं तवाग्रे द्रव्यमीश्वरि!।

          स्थापितं तेन मे प्रीता पूर्णान् कुरु मनोरथान्।। द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि।

पुस्तक-पूजन (जल से न करें)

                                    ॐनमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।

                                    नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्।।

ज्योति-पूजन  (पूजन करके प्रार्थना करें)

                                    ॐ शुभं भवतु कल्याणमारोग्यं पुष्टिवर्धनम्।

                                        आत्मतत्त्वप्रबोधाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते।।

इस प्रकार पूजा करने के उपरान्त नवार्ण मंत्र में जिस प्रकार आवरण देवताओं की पूजा कही गयी है, वैसे पूजा  करके फिर देवी की अङ्गपूजा करे। 

अथाङ्गपूजा। 

ॐ दुर्गायै नमः पादौ पूजयामि। ॐ महाकाल्यै नमः गुल्फो पूजयामि। ॐ मङ्गलायै नमः जाननी । पूजयामि। ॐ कात्यायन्यै नमः ऊरू पूजयामि । ॐ भद्रकाल्यै नमः कटिं पूजयामि। ॐ कमलायै नमः नाभिं पूजयामि। ॐ । शिवायै नमः उदरं पूजयामि। ॐ क्षमायै नमः हृदयं पूजयामि। ॐ स्कन्दाय नमः कण्ठं पूजयामि।। ॐ महिषासुरमर्दिन्यै नमः नेत्रे पूजयामि। ॐ उमायै नमः शिरः पूजयामि। ॐ विन्ध्यनवासिन्यै नमः सर्वाङ्गं पूजयामि नमः।। देव्या दक्षिणे सिंहं पूजयामि। वामे महिषं पूजयामि। इस प्रकार अङ्गपूजा करे।।

दशाङ्गं गुग्गुलुं धूपं चन्दनागुरुसंयुतम्। मया निवेदितं भक्त्या गृहाण परमेश्वरि॥ 

ॐ कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भवकर्दम। श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्॥२०॥ इति धूपम्।

आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया। दीपं गृहाण देवि त्वं त्रैलोक्यतिमिरापहम्॥ 

ॐ आपः स्रजन्तु स्निग्धानि चिक्लीतवस मे गृहे। निच देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले॥२१॥ इति दीपम्।

अन्नं चतुर्विधं स्वादु रसैः षड्भिः समन्वितम्। भक्ष्यभोज्यसमायुक्तं प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम्॥ 

ॐ आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्। 

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥२२॥ इति । नैवेद्यम्। 

नैवेद्यमध्ये पानीयम् उत्तरापोशनं हस्तप्रक्षालनं मुखप्रक्षालनम् आचमनीयं च समर्पयामि।

मलयाचलसम्भूतं कस्तूर्या च समन्वितम्। करोद्वर्तनकं देवि गृहाण परमेश्वरि ।।इति करोद्वर्तनम्। 

इदं फलं मया देवि स्थापितं पुरतस्तव। तेन मे सफलावाप्तिर्भवेजन्मनि जन्मनि॥ 

ॐ आर्द्रा यः करिणी यष्टीं सुवर्णां हेममालिनीम्। सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।।२३।। इति ऋतुफलम्।

पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्ल्या दलैर्युतम्। कर्पूरैलासमायुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्॥ 

ॐ याः फलिनीर्याऽअफलाऽअपुष्पायाश्चपुष्प्पिणीः। बृहस्पतिष्प्रसूतास्तानोमुञ्चन्त्व र्ठ० हसः ॥२४॥ इति ।

ताम्बूलम्।

हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः। अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे॥

ॐ तामऽआवहजातवेदोलक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यप्रभूतंगावोदास्योश्वान् विन्देयं पुरुषाहम्॥२५॥ इति । दक्षिणाम्। 

कर्पूरार्तिक्यम्

कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं च प्रदीपितम्। आरार्तिक्यमहं कुर्वे पश्य मे वरदा भव॥ 

ॐ इदर्ठ०हविः प्रजननम्मेऽअस्तुदशवीर र्ठ०सर्वगण र्ठ०स्वस्तये। 

आत्मसनिप्रजासनिपशुसनिलोकसन्यभयसनि। अग्निः प्रजाम्बहुलाम्मैकरोत्त्वन्नम्पयोरेतोऽअम्मासुधत्त॥२६॥ इति कर्पूरार्तिक्यम्।

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च। तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदेपदे॥

ॐ यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुर्यादाज्यमन्वहम्। सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत्॥२७॥ इति प्रदक्षिणा।

नानासुगन्धपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च। पुष्पाञ्जलि मया दत्तं गृहाण परमेश्वरि॥१॥ ततः श्रीसूक्तं सम्पूर्ण प्राकृतनीराजनार्तिं च यथाचारं पठित्वा पुष्पाञ्जलिं निवेदयेत्॥२८॥ ततः साष्टाङ्गं प्रणामं कृत्वा प्रार्थयेत्ॐ  मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि। यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे॥ 

महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनि। यशो देहि धनं देहि सर्वान्कामांश्च देहि मे। 

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥ 

दुर्गमे दुस्तरे कार्ये भवदुःखविनाशिनीम्। पूजयामि सदा भक्त्या दुर्गा दुर्गार्तिनाशिनीम्॥ 

भूतप्रेतपिशाचेभ्यो रक्षोभ्यश्च महेश्वरि। देवेभ्यो मानुषेभ्यश्च भयेभ्यो रक्ष मां सदा॥ 

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥ रूपं देहि यशो देहि भगं भवति देहि मे। पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान्कामांश्च देहि मे।।

इति सम्प्रार्थ्य कुमारीपूजां कुर्यात् । ततः (प्रत्यहं बलिदानपक्षे माषभक्तेन कूष्माण्डेन वा इक्षुदण्डेन बलिदानं कार्यम्। ततः अखण्डदीपकं प्रतिष्ठापयेत्)

धृतव्रतः।। अखण्डदीपके देव्याः प्रीतये नवरात्रकम्। उज्ज्वालयेदहोरात्रमेकचित्तो एवं देवीं सम्पूज्य चण्डीपाठं कुर्यात्।

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