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इन 5 तरीकों से आपटेंशन और डिप्रेशन से बाहर निकलने में सफल हो सकते हैं
टेंशन (Tension) यानी तनाव या चिंता और डिप्रेशन (depression) यानी अवसाद। कोरोनावायरस जैसी महामारी के दौर में यह बहुत ज्यादा हो चला है। भय के कारण संकट उत्पन्न होता है और संकट उत्पन्न होने के कारण टेंशन और लगातार टेंशन रहने के कारण व्यक्ति डिप्रेशन में चला जाता है। ऐसे में कई बार व्यक्ति सेहतमंद होकर भी रोगग्रस्त हो जाता है या आत्महत्या करने की सोचने लगता है। यह स्थिति मन में घबराहट पैदा करती है। इससे बचने के 5 तरीके यहां दिए जा रहे हैं।
1. पॉजिटिव सोच के लोगों से बात करें : यदि आप टेंशन और डिप्रेशन से घिरे हैं तो सबसे पहले तो सोशल मीडिया से दूर हो जाएं और अपने किसी ऐसे व्यक्ति से मोबाइल पर बात करें जिसकी सोच पॉजिटिव है और जिनसे बात करने से खुशी मिलती हो।
2. रिलैक्सेशन संगीत सुनें : आप पॉजिटिव लेक्चर सुनें, भजन सुनें या रिलैक्सेशन का संगीत सुनें। आप खुश और शांत रहने के बारे में पढ़ भी सकते हैं परंतु शांतिदायक संगीत सुनना उससे भी बेहतर है क्योंकि यह हमारे दिमाग के तंतुओं को झंकृत कर शांत करता है।
3. ये तीन प्राणायाम करें : चंद्रभेदी, सूर्यभेदी और भ्रामरी प्राणायाम को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लें। इन्हें आसानी से सीखा जा सकता है। यह आपके टेंशन और डिप्रेशन को मिटा देंगे।
4. योग निद्रा : प्राणायाम में भ्रामरी और प्रतिदिन पांच मिनट का ध्यान करें। आप चाहें तो शवासन में लेटकर 20 मिनट की योग निद्रा लें जिसके दौरान रुचिकर संगीत पूरी तन्मयता से सुनें और उसका आनंद लें। यदि आप प्रतिदिन योग निद्रा ही करते हैं तो यह रामबाण साबित होगी। इसमें श्वासों के आवागमन को महसूस करते रहते हैं और पेट से या पेट तक श्वास लेते रहते हैं।
5. प्रार्थना करें : आपको यह समझना चाहिए कि जितना टेंशन या डिप्रेशन होगा लाइफ उतनी ही कठिन होती जाएगी। लाइफ को सरल बनाने के लिए ईश्वर पर भरोसा करें और उनसे प्रार्थना करें। प्रार्थना में शक्ति होती है। गीता का अध्ययन करेंगे तो आपका मन शांत हो जाएगा। श्रीमद्भागवत गीता हमें जीवन के हर क्षेत्र और हर संकट के समाधान का रास्ता बताती है। संकट काल में हमें धर्म की शरण में रहना चाहिए। हालांकि श्रीकृष्ण कहते हैं कि संकट को संकट नहीं एक अवसार माना जाए।
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥
अर्थात: आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।
(यहां भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा के अजर-अमर और शाश्वत होने की बात की है।)