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भगवान शिव-पार्वती के सुखी दाम्पत्य जीवन की प्रमुख बातें
आदर्श दाम्पत्य जीवन की बात हो तो भगवान शंकर और भगवान राम को सर्वोच्च उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। भगवान शिव और पार्वती के बीच का संपूर्ण जीवन मानव समाज को प्रेरणा देता रहेगा। इस बात के लिए कि दाम्पत्य जीवन हो तो शिव और पार्वती की तरह का हो।
1. एक दूसरे से प्रेम : राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री दक्षा या दाक्षणी को कैलाश पर रहने वाले बैरागी शिव से प्रेम हो गया तो उन्होंने उनसे विवाह कर लिया। लेकिन पिता को यह मंजूर नहीं था। पिता ने जब एक बार उनके पति का अपमान किया तो अपने पति का अपमान सह नहीं पाई और उन्होंने पिता के ही यज्ञ में कूदकर खुद को भस्म कर लिया। यह सुनकर भगवान शिव को अपार दुख और क्रोध उत्पन्न हुआ। उन्होंने वीरभद्र को भेजकर राजा दक्ष के यहां विध्वंस मचा दिया। वीरभद्र ने दक्ष की गर्दन उतारकर शिव के समक्ष रख दी। शिव का क्रोध बाद में अपार दुख में बदल गया और वे अपनी पत्नी की शव को लेकर जगत में घूमते रहे। जहां-जहां माता सती के अंग या आभूषण गिरे वहां वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए। इसके बाद शिवजी अनंत काल के लिए समाधी में लीन हो गए।
2. विधिवत विवाह : भगवान शिव और माता पार्वती दोनों एक दूसरे से प्रेम करते थे लेकिन उन्होंने कभी भी गंधर्व विवाह या अन्य किसी प्रकार का विवाह नहीं किया। उन्होंने समाज में प्रचलित वैदिक रीति से ही विवाह किया था। पहली बार उनका विवाह माता सती से ब्रह्मजी ने विधिवत रूप से करवाया था और दूसरी बार माता सती का पार्वती रूप में दूसरा विवाह भी सभी की सहमति से विधिवत रूप से ही हुआ था। एक आदर्श दांपत्य जीवन में सामाजिक रीति और परिवार की सहमति भी जरूरी होती है।
3. प्रत्येक जन्मों का साथ : माता सती ने जब दूसरा जन्म हिमवान के यहां पार्वती के रूप में लिया तब उन्होंने पुन: शिव को पाने के लिए घोर तप और व्रत किया। उस दौरान तारकासुर का आतंक था। उसका वध शिवजी का पुत्र ही कर सकता था ऐसा उसे वरदान था। लेकिन शिवजी तो तपस्या में लीन थे। ऐसे में देवताओं ने शिवजी का विवाह पार्वतीजी से करने के लिए एक योजना बनाई। उसके तहत कामदेव को तपस्या भंग करने के लिए भेजा गया। कामदेव ने तपस्या तो भंग कर दी लेकिन वे खुद भस्म हो गए। बाद में शिवजी ने पार्वतीजी से विवाह किया। इस विवाह में शिवजी बरात लेकर पार्वतीजी के यहां पहुंचे। इस कथा का रोचक वर्णन पुराणों में मिलेगा।शिव को विश्वास था कि पार्वती के रूप में सती लौटेगी तो पार्वती ने भी शिव को पाने के लिए तपस्या के रूप में समर्पण का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया।
4. एक पत्नी व्रत : भगवान शिव और पार्वती ने एक दूसरे के अलावा अन्य किसी को भी अपना जीवनसाथी कभी नहीं बनाया। शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं। बात चाहे सृष्टि निर्माण और उसके संचालन की हो या परिवार की गाड़ी हांकने की, पुरुष और प्रकृति का समान रूप से योगदान देना जरूरी है।
5. आदर्श गृहस्थ जीवन : सांसारिक दृष्टि से शिव-पार्वती व शिव परिवार गृहस्थ जीवन का आदर्श है। पति-पत्नी के संबंधों में प्रेम, समर्पण और घनिष्ठता का श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करके उन्होंने अपनी संतानों को भी आदर्श बनाया और एक संपूर्ण पारिवारिक जीवन और उसके उत्तरदायित्व का निर्वाह किया।