अण्डा मांसाहार या शाकाहार?

जन साधारण में इस बात का अच्छा प्रचार कर रखा है कि अण्डा मांसाहार में नहीं आता और यह प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। प्रोटीन का बढ़िया स्रोत है, इसलिए बच्चों और खिलाड़ियों के लिये अण्डा बहुत उपयोगी है, ऐसा प्रायः डाॅक्टर महानुभाव भी कहते रहते हैं। सरकारें भी मुर्गी पालन को खूब बढ़ावा देती हैं। जहाँ तक प्रोटीन का सम्बन्ध है, इस तथ्य का बहुत कम प्रचार है कि सभी दालों में मांस, मछली व अण्डे से अधिक प्रोटीन होती है और यह भी बहुत कम लोगों को पता है कि संतुलित आहार में जहाँ प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवण, विटामिन्स और रेशातत्व अनिवार्य हैं, वहाँ मांसाहार में केवल प्रोटीन व वसा ही होते हैं, तो छः अनिवार्य पदार्थों में से मांसाहार (मांस, मछली व अण्डा) में केवल दो ही होते हैं, तो मांसाहार पौष्ठिक आहार तो हो ही नहीं सकता।

अण्डे को प्रोटीन का अच्छा स्रोत होने के साथ मांसाहार नहीं माना जाता, क्योंकि तर्क दिया जाता है कि वर्तमान में ऐसे अण्डे मुर्गियां देती हैं, जिनसे चूजा नहीं निकलता। पहले तो बिना चूजा देने वाले अण्डों के बारे में विचार कर लेना चाहिए। कोई भी शरीर, जो भोजन ग्रहण करता है, उससे तीन प्रकार के पदार्थ बनते हैं। भोजन का एक भाग उन पदार्थों में बदल जाता है, जो शरीर की वृद्धि करते हैं, ऊर्जा देते हैं और शरीर का संरक्षण करते हैं। दूसरे प्रकार के वे पदार्थ बनते हैं, जो सन्तान वृद्धि के काम आते हैं। तीसरे प्रकार के वे पदार्थ बनते हैं, जो शरीर के लिये उपयोगी नहीं होते और शरीर मल के रूप में ऐसे पदार्थों को बाहर फैंक देता है। अब मुर्गी के पेट में जो अण्डा बना, जो चूजा नहीं देगा अर्थात् यह अण्डा सन्तान वृद्धि करने वाला पदार्थ नहीं है और न ही यह शरीर को बढ़ाने वाला या संरक्षण देने वाला है, तो तीसरी प्रकार का पदार्थ हुआ अर्थात् मुर्गी के शरीर का मल हुआ, तो अण्डे को उत्तम कहने का अभिप्राय मुर्गी के मल को उत्तम कह रहे हैं। यहाँ कुछ लोग कह सकते हैं कि दूध भी इसी श्रेणी में माना जाये। दूध शरीर के मल के रूप में इसलिए नहीं माना जा सकता, क्योंकि दूध सन्तान वृद्धि का पदार्थ है। दूध मादा के शरीर में तभी बनेगा, जब बच्चा पैदा होता है। अण्डे को मल कहने का एक कारण यह भी है कि अण्डे में बहुत से हानिकारक पदार्थ भी पाये जाते हैं, जैसे डी.डी.टी., काॅलेस्ट्राॅल, सालमोनेला, एवीडिन आदि।

मान लेते हैं कि ऐसे अण्डे होते हैं, जिनसे चूजा नहीं निकलता, तो क्या ऐसे अण्डों को शाकाहार मान लें? नहीं, बिना चूजों वाले अण्डे भी शाकाहार की श्रेणी में नहीं आते। इसका कारण यह है कि शाकाहार के सभी पदार्थों – दूध, अन्न, दालें, फल, सब्जियाँ इन सब में कार्बोहाइड्रेट अनिवार्य रूप में पाया जाता है। अण्डे, मांस व मछली में कार्बोहाइड्रेट बिल्कुल नहीं होता। वास्तव में मांस, मछली व अण्डे में कार्बोहाइड्रेट के साथ विटामिन्स, रेशातत्व भी नहीं होते। खनिज लवण भी नगण्य होते हैं, तो मांसाहार से शरीर को केवल प्रोटीन व वसा के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता, तो अण्डे में कार्बोहाइड्रेट नहीं होने के कारण अण्डा मांसाहार में आयेगा, न कि शाकाहार में। मांस, मछली व अण्डे में रेशातत्व बिल्कुल नहीं होता और मनुष्य के पाचन संस्थान की लम्बाई काफी ज्यादा होने के कारण मांस-मछली-अण्डा पाचन संस्थान में काफी देर तक पड़े रहते हैं और आंतों में दुर्गन्ध पैदा करते हैं। मांसाहार की प्रोटीन व वसा शीघ्र हजम नहीं होते। मांस व अण्डे में काॅलेस्ट्राॅल भी अधिक होता है, तो मांसाहार से पेट व हृदय रोग बहुत अधिक बढ़ जाते हैं, मांस व अण्डे की प्रोटीन से यूरिया व यूरिक अम्ल अधिक मात्रा में बनने से जोड़ों में दर्द भी काफी मात्रा में बढ़ जाता है। इसलिए मांस-मछली-अण्डे का सेवन शरीर को लाभ कम, हानि बहुत ज्यादा पहुँचाता है।

वर्तमान में सरकारें मांसाहार को बढ़ावा देने के लिए मांस का उत्पादन बढ़ा रही हैं और अण्डों के सेवन को बढ़ाने के लिए पोल्ट्री को बढ़ावा दे रही हैं। कोरोना वायरस के प्रभाव ने विश्व स्तर पर यह स्पष्ट कर दिया है कि मांसाहार व शराब का सेवन (मांसाहार के साथ शराब का चोली-दामन का साथ है) शरीर को कमजोर करता है और बीमारियों को निमन्त्रण देता है। सरकारों को चाहिए कि जनहित के लिये शराब व मांसाहार को बन्द करके डेयरी उत्पादों, फलों की खेती, सब्जी उत्पादन को प्रोत्साहित करें। आमजन के स्वास्थ्य के साथ मांसाहार से पर्यावरण को होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकता है। प्रबुद्ध लोगों (डाॅक्टर, वैज्ञानिक आदि) का नैतिक दायित्व बनता है कि आमजन को तथ्यों से अवगत करवायें। सरकार अण्डे-मांस आदि के प्रयोग को बढ़ावा देने वाले संचार माध्यमों पर रोक लगाये। आमजन का अच्छा स्वास्थ्य बहुमुल्य राष्ट्रीय सम्पत्ति है, इसकी सुरक्षा हम सबका दायित्व है। दायित्व को ठीक से निभाना ही देशभक्ति है।