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80 रूपए के लोन से इन 7 महिलाओं ने बनाई 1600 करोड़ की कंपनी, पढ़ें ‘लिज्जत पापड़’
“मेहमानों को खुश कर जाए
खर्रम खुर्रम
मज़ेदार, लज़्ज़तदार
स्वाद स्वाद में लिज्जत पापड़
सेक के खाएं
तल के खाएं…
खुर्रम खर्रम”
90 के दशक में लिज्जत पापड़ का यह जिंगल (गीत) सबसे चर्चित विज्ञापनों में से एक था। उस वक्त देश आर्थिक उदारीकरण के दौर से गुजर रहा था और टेलीविजन सेट भारतीय परिवारों में अपनी पैठ बना रहे थे। इसी की मदद से लोगों के घरों तक पहुंच रहा था लिज्जत पापड़ का स्वाद। जन्मदिन की पार्टियों में, जहाँ माता-पिता अपने बच्चों से बॉलीवुड गीत पर डांस करने के लिए कहते थे, हम बड़े ही गर्व से इस जिंगल को सुनाते थे और खूब वाहवाहियाँ बटोरते थे। मुझे आज भी याद है वह जिंगल।
एक तरफ इस देशी जिंगल ने दर्शकों के मन में अपनी जगह बना ली, तो दूसरी ओर लिज्जत पापड़ ने लाखों लोगों का दिल जीत लिया। गुजरात में ऐसा माना जाता है कि लिज्जत पापड़ के बिना कोई भी भोजन अधूरा है, जो उड़द, लाल मिर्च, लहसुन, मूंग, पंजाबी मसाला, काली मिर्च और जीरा जैसे चटकदार चीजों से बना होता है। इस ब्रांड की स्थापना 7 गुजराती महिलाओं ने महज 80 रुपए लोन लेकर की थी। फेमिना की एक रिपोर्ट के अनुसार, आज इसका कारोबार 1,600 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है।
यह सब कैसे शुरू हुआ?
बात साल 1959 की है। बॉम्बे (अब, मुंबई) में गर्मी के मौसम में एक छत पर सात गुजराती महिलाएं अपने घर के वित्तीय तनाव को दूर करने के लिए आजीविका के साधन पर विचार कर रही थी। वे ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थीं और न ही उन्हें कंपनी चलाने का कोई अनुभव था। इसलिए, उन्होंने एक स्थिर आय अर्जित करने की उम्मीद से पापड़ बनाने का फैसला किया, जो उनका हुनर भी था। उन्होंने पापड़ बनाना शुरू किया और चार पैकेट के साथ छत से बाहर निकले।
इसके बाद, जसवंतीबेन पोपट, जयबेन विठलानी, पार्वतीबेन थोडानी, उजंबेन कुंडलिया, बानुबेन तन्ना, चुटादबेन गावड़े और लगुबेन गोकानी ने स्थानीय बाजार का रुख किया और अपने पापड़ बेचे।
इस कड़ी में जसवंतीबेन ने बीबीसी को एक इंटरव्यू के दौरान बताया, “हम सब ज़्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, जिस वजह से हमारे पास नौकरी के ज्यादा मौके नहीं थे। लेकिन, हमें अहसास हुआ कि हम अपने पापड़ बनाने के हुनर का इस्तेमाल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने में कर सकते हैं।”
इसके बाद, पुरुषोत्तम दामोदर दत्तानी ने इन महिलाओं को पापड़ बेचने में मदद की। वह पापड़ को लेकर एक दुकान से दूसरी दुकान पर गए और अंत में गिरगांव चौपाटी में आनंदजी प्रेमजी एंड कंपनी नामक एक स्थानीय स्टोर में बेच दिया।
“आनंदजी ने अपेक्षाकृत अनुभवहीन महिलाओं पर भरोसा क्यों किया, उनके बेटे, हिम्मतभाई द बेटर इंडिया से इस विषय में कहते हैं, “मेरे पिता को इन महिलाओं की पहल बहुत वास्तविक और मेहनती लगी। दत्तानीजी ने एक आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने की मांग की और इससे मेरे पिता काफी प्रभावित हुए। दत्तानीजी ने खुद हमारी दुकान में पूरा दिन बिताया और कुछ ही घंटों में सारे पापड़ बेच डाले। हमारे संबंधों की शुरुआत सहकारिता के साथ हुई थी, और आज, हम रोजाना करीब 25 किलो लिज्जत पापड़ खरीदते हैं।”
जसवंतीबेन नेशनल जियोग्राफिक से कहती हैं, “उन्होंने पहले दिन एक किलो पापड़ बेचा और 50 पैसे कमाए। अगले दिन दो किलो का एक रुपया मिला। हमारे इलाके की महिलाओं ने इसे लाभ का सौदा पाया और इसके बाद हमने एक टीम बनानी शुरू की।”
अगले 3-4 महीनों में, इस सहकारी संस्था से 200 महिलाएं जुड़ गईं और इसके तहत वडाला में दूसरी शाखा खोली गई। इन महिलाओं ने साल 1959 में 6,000 से अधिक रुपए कमाए, जो एक बड़ी राशि थी। बाजार में अपने उत्पाद की माँग को देखते हुए इन सातों महिलाओं ने छगनलाल करमसी पारेख से उधार लिया, जो उनके गुरु भी बन गए। वह ‘छगन बप्पा‘ के नाम से जाने जाते थे और एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता थे, जिन्होंने 1950 के दशक में असम और कच्छ में भूकंप सहित कई अन्य राहत कार्यों में काम किया था। महिलाओं की इस टीम ने मार्केटिंग और प्रचार पर कोई खर्च न करते हुए अपनी सारी उर्जा को अपने उत्पादों की गुणवत्ता को और बेहतर करने पर लगाया।
जैसे ही, इस कंपनी से अधिक महिलाओं ने जुड़ने की इच्छा जताई, संस्थापकों को अहसास हुआ कि अब वैधानिक मान्यता प्राप्त करने का समय आ गया है और साल 1966 में, उन्होंने सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 और बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट्स एक्ट, 1950 के तहत एक सोसायटी के रूप में पंजीकरण किया। इसी वर्ष खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने इसे ‘ग्राम उद्योग‘ के रूप में नाम दिया। यह संस्थापकों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। लगभग 62 वर्षों के बाद, सात महिलाओं के साथ शुरू हुआ यह उद्योग अब भारत की सबसे पुरानी महिला सहकारी समिति के रूप में बदल गया है, जो करीब 45,000 महिलाओं को रोजगार देती है। साल 1968 में, लिज्जत ने महाराष्ट्र के बाहर, गुजरात के वलोद में अपनी पहली शाखा स्थापित की थी। वेबसाइट के अनुसार, वर्तमान समय में भारत में इसकी 82 शाखाएँ हैं और यह अपने उत्पादों को 15 देशों को निर्यात करती है। पापड़ के अलावा, इस संस्था के अन्य उत्पाद भी हैं, जैसे – मसाला, गेहूं का आटा, चपातियां, अप्पलाम, डिटर्जेंट पाउडर और कपड़े धोने का साबुन आदि।
“हमारा सिद्धांत बिना किसी समझौते के पापड़ के निर्माण के लिए उच्च गुणवत्ता की सामग्रियों का इस्तेमाल करना है और पिछले 60 वर्षों से यही हमारी सफलता का राज है। यह सिद्धांत भर्ती प्रक्रिया में भी परिलक्षित होता है। महिलाओं के लिए गुणवत्ता दिशानिर्देशों का दृढ़ता से पालन करने के अलावा कोई और शर्त नहीं है।” श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ की अध्यक्ष स्वाति पराड़कर इंटर-एक्शन से कहती हैं।
स्वाद और गुणवत्ता का रहस्य
मौसम की स्थिति, स्थलाकृति, पानी की गुणवत्ता आदि के कारण कच्चे माल का स्वाद हर राज्य में अलग होता है। इसलिए, सभी कच्चे माल एक स्थान से खरीदे जाते हैं और सभी शाखाओं में भेजे जाते हैं। इसी वजह से क्षेत्र अलग होने के बावजूद अंतिम उत्पाद का स्वाद और गुणवत्ता समान है। जैसे कि उड़द की दाल म्यांमार से आती है। जबकि, हींग अफगानिस्तान से और काली मिर्च केरल से आयात की जाती है। हींग, जो कि भारत के रसोई घरों का एक मुख्य घटक है, इसे ध्यान से छांटकर पाउडर बनाया जाता है। वहीं, काली मिर्च के पाउडर को एक छलनी के जरिए फिल्टर किया जाता है और एक टेबल फैन की मदद से यह प्रक्रिया दोहराई जाती है, ताकि पाउडर को पूरी तरह से फिल्टर किया जा सके। इसके तहत पाउडर को पंखे के सामने एक बर्तन से दूसरे में रखा जाता है, जिससे हल्की काली मिर्च की फली उड़ जाती है। यह प्रक्रिया केवल वाशी और नासिक में होती है। हींग और काली मिर्च के पाउडर को आटे में मिलाकर, अंतिम चरण में खारा पानी तैयार किया जाता है। इसके बाद, आटा तैयार कर कर्मचारियों को वितरित किया जाता है। हर क्षेत्र में पापड़ के आकार को सुनिश्चित करने के लिए सभी को एक मानक आधार और बेलन दिया जाता है। गुणवत्ता के संदर्भ में, शाखा सदस्य अपने कर्मचारियों के घर जाकर अक्सर यह जाँच करते हैं कि गुणवत्ता मानकों को उपयोग किया जा रहा है या नहीं। इसके बाद, उत्पादों का अंतिम परीक्षण और कूट उनके मुंबई स्थित लेबोरेटरी में किया जाता है।
महिला सशक्तिकरण
‘वर्क फ्रॉम होम’ को कार्य संस्कृति का एक स्वीकृत रूप बनने से वर्षों पहले ही लिज्जत पापड़ इस दिशा में अपने कदम बढ़ा चुका था। इसका सबसे बड़ा कारण है – महिलाओं को अपने घरों से बाहर कदम रखे बिना वित्तीय स्वतंत्रता देना। इस विकल्प ने महिलाओं को अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को संतुलित करने में मदद की। इसके तहत जिनके पास घर में पर्याप्त जगह नहीं थी, उन्हें अपनी शाखाओं में पापड़ की गुणवत्ता और पैकेजिंग की जांच करने के लिए कहा गया। संस्था में ‘बहन’ कहकर सम्बोधित की जाने वाली महिलाएं सुबह 4.30 बजे से अपना काम शुरू कर देती हैं। एक समूह द्वारा शाखा में आटा गूंथा जाता है और दूसरे समूह द्वारा इसे एकत्रित कर, घर में पापड़ बेला जाता है। इस दौरान आवाजाही के लिए एक मिनी-बस की मदद ली जाती है। इस पूरी संचालन प्रक्रिया की निगरानी, मुंबई की एक 21 सदस्यीय केंद्रीय प्रबंध समिति करती है। बेशक, मशीन-संचालित प्रणालियों के माध्यम से उत्पादन क्षमता को कई गुना बढ़ाया जा सकता है, लेकिन इतने वर्षों बाद भी यह संस्था महिलाओं के लिए एक स्थिर आजीविका सुनिश्चित करने के अपने मूल पर बनी हुई है। इस विषय में प्रख्यात वैज्ञानिक रघुनाथ माशेलकर कहते हैं, “केवल स्वरोजगार, आत्मनिर्भरता, आत्म-सशक्तिकरण और आत्म-गरिमा ही नहीं, श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ ने जिस आंदोलन की शुरुआत की वह भारतीय महिलाओं की वास्तविक शक्ति का प्रतिबिम्ब है। इससे जुड़ी महिलाएं पहले साक्षर नहीं थीं, लेकिन वे अब शिक्षा के महत्व को जानती हैं, खासकर अपने बच्चोंके लिए। यह अपने आप में एक बड़ा विकास है।”
संस्था के हर सदस्य एक-दूसरे को अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं, और वे कई लाभों का आनंद लेते हैं। उदाहरण के लिए, हर महिला को अपने कार्य क्षेत्र को चुनने की आजादी है। कोई भी कर्मचारी चुनाव की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से प्रबंध समिति का हिस्सा बन सकता है। इसके साथ ही उन्हें ऋण, बच्चों के लिए छात्रवृत्ति और हर शाखा में बुनियादी साक्षरता कार्यक्रम का भी लाभ मिलता है। कर्मचारियों के प्रयासों को कंपनी द्वारा सराहा और पुरस्कृत भी किया जाता है। जैसे – साल 2002 में, राजकोट में कर्मचारियों को 4,000 रुपये का प्रोत्साहन मिला। इस बीच, मुंबई और ठाणे में 5 ग्राम सोने के सिक्के दिए गए।
सफलता की कहानियाँ
श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ पर आधारित एक इम्पावरमेंट केस स्टडी के अनुसार, “लिज्जत घरेलू गतिविधियों के माध्यम से आर्थिक अवसर प्रदान करता है। एक बार इससे जुड़ने के बाद, महिलाओं का आत्मविश्वास और प्रतिष्ठा, दोनों बढ़ती है, क्योंकि वे सम्मानजनक ढंग से पैसे कमाती हैं। अधिक उद्यमी, जिम्मेदार और अनुभवी महिलाएं प्रशासनिक सीढ़ी पर चढ़ती हैं। यह महिलाओं में नेतृत्व क्षमता का विकास करने के लिए एक बेहतरीन संस्था है।”
यदि आप लिज्जत पापड़ के विज्ञापन पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि इसमें कोई बड़ी हस्ती नहीं हैं, जो आपसे पापड़ खरीदने का आग्रह कर रहे हैं। यह एक बेहद ही साधारण विज्ञापन है, जो आपको यह बताता है कि एक पापड़ कैसे दिन के किसी भी समय आपके खाने का हिस्सा हो सकता है। इसी तरह, कंपनी ने खुद को ब्रांडिग, सोशल मीडिया पर उपस्थिति और समारोहों से भी खुद को दूर रखा। उनका पूरा ध्यान बस अपने उपभोक्ताओं और कर्मचारियों को खुश रखने पर है।
विश्वास की भावना
क्या आपने कभी सोचा है कि कई प्रतिस्पर्धियों के बावजूद लिज्जत पापड़ का अपने क्षेत्र में एकाधिकार क्यों है? इसकी वजह है – एक विश्वास की भावना है। यह हमें याद दिलाता है कि भले ही विकास के लिए परिवर्तन आवश्यक है, लेकिन कुछ चीजों के प्रति हमें हमेशा आभारी होना चाहिए। लिज्जत पापड़ एक ऐसा खाद्य पदार्थ है, जो कभी निराश नहीं करता है। इसी कड़ी में मुंबई की रहने वाली निर्मला नायर कहती हैं, “लिज्जत पापड़ मेरा पसंदीदा नाश्ता है, क्योंकि व्यस्तता के कारण मुझे खाना बनाने का समय हमेशा नहीं मिलता है। तो, मैं सलाद काटती हूँ और उन्हें पापड़ पर रखती हूँ। इस स्वादिष्ट और सेहतमंद नाश्ते को तैयार करने में मुश्किल से पाँच मिनट लगते हैं।”
अंत में, अपने उपभोक्ताओं के अलावा, लिज्जत पापड़ ने एक अभिमानी स्वदेशी कंपनी के रूप में अपनी चिरस्थायी छाप छोड़ी है, जिसने हजारों लोगों को सशक्त बनाया है। यह पापड़ किसी न किसी तरीके से हम सबके के जीवन का हिस्सा रहा है।