इन्द्र-बाली (समुद्र मंथन)

इन्द्र-बाली (समुद्र मंथन) : समुद्र मंथन की कथा सभी जानते हैं। राजा बाली के हाथ से जब वामन के दान के कारण स्वर्ग का राज्य चला गया, तब कुछ काल बाद एक घटना घटी। दुर्वासा ऋषि की पारिजात पुष्पमाला का इंद्र ने उचित सम्मान नहीं किया तो इससे रुष्ट होकर उन्होंने इंद्र को श्रीहीन होकर स्वर्ग से वंचित होने का श्राप दे डाला। यह समाचार लेकर लेकर शुक्राचार्य दैत्यराज बाली के दरबार में पहुंचते हैं। वे दैत्यराज बाली को कहते हैं कि इस अवसर का लाभ उठाकर असुरों को तुरंत आक्रमण करके स्वर्ग पर अधिकार कर लेना चाहिए। ऐसा ही होता है। दैत्यराज बाली स्वर्ग पर आक्रमण का देवताओं को वहां से खदेड़ देता है।
 
 
इधर, असुरों से पराजित देवताओं की दुर्दशा का समाचार लेकर नारद ब्रह्मा के पास जाते हैं और फिर नारद सहित सभी देवतागण भगवान विष्णु के पास पहुंच जाते हैं। भगवान विष्णु सभी को लेकर देवादिदेव महादेव के पास पहुंच जाते हैं। सभी निर्णय लेते हैं कि समुद्र का मंथन कर अमृत प्राप्त किया जाए और वह अमृत देवताओं को पिलाया जाए जिससे कि वे अमर हो जाएं और फिर वे दैत्यों से युद्ध लड़ें।