क्यों समुद्र मंथन के लिए भगवान विष्णु को लेना पड़ा कूर्मा अवतार

कूर्मा जयंती प्रत्येक वर्ष वैशाख मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, इस वर्ष 29 अप्रैल को है।मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने कूर्मा अवतार लिया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कूर्मा अवतार को विष्णु का दूसरा अवतार माना जाता है।

पद्मपुराण के ब्रह्मखंड में यह वर्णन मिलता है कि देवराज इंद्र ने जब दुर्वासा ऋषि का अपमान किया, तो उन्होंने इंद्र को शाप दे दिया कि तुम्हारा वैभव समाप्त हो जाए। शाप के कारण मां लक्ष्मी समुद्र में लुप्त हो गई। तब भगवान विष्णु ने लक्ष्मी की पुन: प्राप्ति और दुर्वासा के शाप से मुक्ति के लिए देवताओं को समुद्र मंथन की सलाह दी।

मगर, देवता अकेले समुद्र मंथन करने में सक्षम नहीं थे। इस कारण असुरों से उन्होंने समुद्र मंथन के पश्चात निकलने वाले अमृत का लालच दिया। मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी बनाने का विकल्प सुझाया गया।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जैसे ही मंदराचल पर्वत को समुद्र में डाला गया, तो उसके लिये कोई आधार नहीं था। तब भगवान विष्णु ने कूर्मा अवतार धारण किया और मंदराचल पर्वत का आधार बने। कई चरणों में हुए इस समुद्र मंथन से 14 रत्न प्राप्त हुए अंत में मां लक्ष्मी और अमृत कलश लेकर धन्वतरि निकले। मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के पास चली गई।

समुद्र मंथन के दौरान देवताओं ने असुरों की प्रशंसा कर उन्हें वासुकी नाग को मुख की ओर से पकड़ने के लिए कहा। जब मंथन होने लगा तो वासुकी नाग की विषैली फुंफकार से कई असुर मर गए और कई असुर निशक्त हो गये।

उधर, असुरों ने अमृत अपने पास रख लिया। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारणकर असुरों को मोहपाश में बांध लिया और देवताओं को अमृतपान करवाकर अमर कर दिया।

वास्तु के लिए अहम दिन

इस दिन से निर्माण संबंधी कार्य शुरू किया जाना बेहद शुभ माना जाता है, क्योंकि योगमाया स्वरूपा बगलामुखी स्तम्भित शक्ति के साथ कूर्म में निवास करती है। कूर्म जयंती के अवसर पर वास्तु दोष दूर किए ज सकते हैं। नया घर भूमि आदि के पूजन के लिए यह सबसे उत्तम समय होता है तथा बुरे वास्तु को शुभ में बदला जा सकता है।