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जब दो रिश्तेदारों में विवाद हो जाए तब हमें मौन रहना चाहिए, रिश्ते टूट सकते हैं
संबंध कैसे निभाए जाते हैं, ये हम श्रीकृष्ण से सीख सकते हैं। श्रीकृष्ण के पौते अनिरुद्ध के विवाह की घटना है। उस समय यदुवंशी बारात लेकर भोजकट नगर गए थे। विवाह के समय श्रीकृष्ण के साले यानी रुक्मिणी के भाई रुक्मी ने बलराम को जुआ खेलने के लिए बुला लिया।
बलराम को जुआ खेलना ठीक से नहीं आता था, लेकिन उन्हें खेलना अच्छा लगता था। वे भी चौसर खेलने बैठ गए। बलराम शुरू-शुरू में हार रहे थे। इस वजह से रुक्मी बलराम का मजाक बना रहा था।
कुछ देर बाद खेल में बलराम जीत गए। तब रुक्मी ने मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘तुम ग्वाले क्या जीतोगे।’
रुक्मी अपनी हार मानने को तैयार नहीं था। वहां मौजूद दूसरे राजा भी रुक्मी के पक्ष में ही थे। सभी बलराम का ही अपमान कर रहे थे। श्रीकृष्ण दूर से ही ये सब देख रहे थे।
अपनी जीत को अपमानित होता देख बलराम को गुस्सा आ गया। उन्होंने मुद्गर उठाया और रुक्मी के सिर पर एक वार कर दिया। मुद्गर लगते ही रुक्मी मर गया।
विवाह उत्सव में हत्या हो गई। वहां मौजूद सभी लोग परेशान होने लगे कि अब क्या होगा? किसी तरह सभी ने एक-दूसरे को समझाया। हालात को सामान्य करने की कोशिश की।
उस समय सबसे बड़ी परेशानी श्रीकृष्ण के सामने थी। उनके भाई ने पत्नी के भाई की हत्या कर दी थी। अगर वे भाई के पक्ष में बोलते हैं तो रुक्मिणी को बुरा लगेगा। और अगर वे पत्नी के भाई की पक्ष में बोलते हैं तो बलराम को बुरा लगेगा। उस समय श्रीकृष्ण मौन रह गए। किसी के पक्ष-विपक्ष में कुछ नहीं कहा।
श्रीकृष्ण जानते थे कि परिवार में कभी इस तरह की घटना घट जाए तो समय बीतना चाहिए। समय ही इस तरह के घाव भर सकता है। कुछ ही दिनों में जब सबकुछ शांत हुआ, तब श्रीकृष्ण ने बलराम से बात की।
श्रीकृष्ण बोले, ‘जब विवाह का मांगलिक अवसर था, तब भैया आपको गलत काम नहीं करना था। आप जुआ खेलने बैठ गए। विवाह के समय इस तरह के गलत काम नहीं करना चाहिए।’
इसके बाद उन्होंने पत्नी रुक्मिणी से कहा, ‘हम बारात लेकर आपके भाई के घर आए थे। आपके भाई ने मेहमानों का अपमान किया। हमें मेहमानों का सम्मान करना चाहिए।’
सीख– यहां श्रीकृष्ण ने हमें यही समझाया है कि घर-परिवार में मतभेद होते हैं तो समझदारी से काम लेना चाहिए। जब मामला एकदम गर्म हो तब शांति से काम लेना चाहिए। समय के साथ सब ठीक हो सकता है।