गुरु नानक देव (551 वां प्रकाश पर्व )

अकालपुरख की व्यवस्था दुनिया के सुधार के लिए इस धरती पर हमारे ही बीच से ऐसे महामानव पैदा करती है जो प्रभु की बंदगी कायम करते हैं और सामाजिक कुरीतियों को खत्म करते हैं।
इस संबंध में हिन्दुस्तान की धरती को हजारों पीरों, पैगम्बरों, संतों और तपस्वियों की दैव्य धरती होने का सम्मान प्राप्त है।

गुरुनानक पातशाह परमपिता के वरदान के रूप में इस दुनिया में आए। वे हमेशा वंचितों के साथ खड़े रहे, अछूत समझे जाने वालों के यहां रुके और उनके साथ खानपान साझा किया।

गुरु नानक देव जी का जन्म सन् 1469 में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को हुआ। आज उनके आगमन के 551वें प्रकाश पर्व पर गुरुनानक देव जी की शख्सियत और उनके द्वारा पीड़ित मानवता के ह्रदय पर रखे गए मरहम हमें बरबस ही उस बर्बर युग से परिचित कराते हैं कि कैसे उन्होंने समाज को विभाजित करती क्रूर जात-पात, अमीर-गरीब के भेद को मिटाया। उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं।

गुरु साहब फरमाते हैं:

नीचा अंदर नीच जाति नीच हो अति नीच
नानक तिनके संग साथ वडयां सयों क्या रीस।।

यानी-नीचों में भी जो नीच जाति के हैं, उनमें भी जो सबसे नीचे हैं, मैं उनके साथ हूं। खुद को बड़ा मानने वालों से मेरा नाता नहीं है।

गुरु नानक देव जी की 3 सबसे बड़ी शिक्षाएं-
नाम जपो, किरत करो और वंड छको

आज यही तीन सिद्धांत सिक्ख धर्म का मूल हैं।
ये शिक्षाएँ कर्म से जुड़ी हुई हैं। कर्म में श्रेष्ठता लाने की ओर ले जाती हैं। मन को मजबूत, कर्म को ईमानदार और कर्मफल के सही इस्तेमाल की सीख देती हैं। यह एकाग्रता-परोपकार की ओर भी ले जाती हैं। नाम जपाे, क्योंकि इसी से आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति मिलती है, तेज बढ़ता है:

गुरु नानक जी ने कहा है-
‘सोचै सोचि न होवई, जो सोची लख वार।
चुपै चुपि न होवई, जे लाई रहा लिवतार।’
यानी ईश्वर का रहस्य सिर्फ सोचने से नहीं जाना जा सकता है, इसलिए नाम जपाे। नाम जपना यानी ईश्वर का नाम बार-बार सुनना और दोहराना। नानक जी ने इसके दो तरीके बताए हैं- संगत में रहकर जप किया जाए। संगत यानी पवित्र संतों की मंडली। या एकांत में जप किया जाए। जप से चित्त एकाग्र हो जाता है और आध्यात्मिक-मानसिक शक्ति मिलती है। मनुष्य का तेज बढ़ जाता है।

ईमानदारी से श्रम करो, आजीविका वही सही:
किरत करो– यानी ईमानदार श्रम से आजीविका कमाना। श्रम की भावना सिक्ख अवधारणा का केंद्र है। इसे स्थापित करने के लिए नानक जी ने अमीर जमींदार के शानदार भोजन की तुलना में कठिन श्रम के माध्यम से अर्जित मोटे भोजन को प्राथमिकता दी थी।

वंड छको अर्थात जो मिले, वो साझा करो और विश्वास करो…इसी सीख पर सिक्ख अपनी आय का दसवां हिस्सा गुरुद्वारा साहिब में दान करते हैं जिसे दसवंध कहते हैं।
इसी से लंगर और परमार्थ के सभी कार्य संपादित किये जाते हैं।

नानक जी ने अंधविश्वास में फंसे लोगों को निकालने के लिए एक ओंकार नाम दिया और संदेश दिया कि ईश्वर एक है। उसे न तो बांटा जा सकता है और न ही वह किसी का हिस्सा है। वह सर्वोच्च है। मध्यकाल में नारी सम्मान स्थापित करने में गुरुनानक देव जी ने महती भूमिका निभाई।

उन्होंने कहा —

सो क्यों मन्दा आखियै जित जम्मै राजान।।

हम उन्हें बुरा क्यों कहें जिन्होंने राजाओं तक को पैदा किया।

सिक्ख महिला….
1.गुरुद्वारे की मुख्य ग्रन्थी हो सकती है
2.गुरुद्वारा प्रबंधन की अध्यक्षा हो सकती है
3. सिक्ख मर्यादा के अनुसार अमृत संस्कार ग्रहण कर सकती है
4.सिक्ख संबंधी पाँचों ककार केश,कच्छ,कड़ा,कंघा,कृपाण धारण कर सकती है
5.स्वास्थ्यगत कारणों से भी गुरुद्वारे आने पर कोई रोक नहीं है
6. किसी भी तरह की सामाजिक बंदिशें नहीं हैं

गुरुनानक देव जी की सबसे महत्वपूर्ण देन यह है कि उन्होंने ऐसी जीवन शैली का निर्माण और प्रस्तुतिकरण किया जो सत्य के अनुकूल है।
उन्होंने कहा – सत्य सर्वोपरि है किन्तु “सत्य आचरण” उससे भी ऊपर है । गुरुनानक जी ने परम सत्य को “अकाल मूरत” और “करता पुरख ” का नाम दिया और उसे जीवन का पथ प्रदर्शक स्थापित किया ।
” इक ओंकार सतिनाम करता पुरख निरभव निरवैर अकाल मूरत अजूनी सैभंग गुरुप्रसादि।।
अर्थात्
एक ही ईश्वर है, चिरंतन सत्य जिसका नाम, पूर्ण निर्माता है, वह निर्भय है, उसका किसी से वैर (दुश्मनी) नहीं, उसका रूप अनंत है, अजन्मा और स्वजन्मा है,
गुरु की कृपा हो वह प्राप्त होता है….
गुरुनानक देव जी के विचार और उनकी जीवन शैली बार-बार मनुष्य जाति को जीवन मनोरथ के उत्तरदायित्वों और कर्तव्यों की स्मृति कराते हैं। गुरुनानक देव जी की विरासत हमेशा मानवता को प्रेरित और उसकी सेवा करती रहेगी और गुरुनानक देव जी की असाधारण शख्सियत के समक्ष समस्त जगत हमेशा नतमस्तक रहेगा। गुरुनानक देव जी के आगमन के 551वें प्रकाश पर्व की सभी मित्रों को सपरिवार हार्दिक बधाई और अशेष शुभकामनाएं, गुरु महाराज का आशीर्वाद आप सभी के साथ हमेशा बना रहे।

वाहेगुरु जी का खालसा
वाहेगुरु जी की फतेह