NAI SUBEH
श्री बाला त्रिपुर-सुन्दरी
माँ श्री बाला त्रिपुर-सुन्दरी मां भगवती का बाला सुंदरी स्वरुप है. ‘दस महा-विद्याओ’ में तीसरी महा-विद्या भगवती षोडशी है, अतः इन्हें तृतीया भी कहते हैं । वास्तव में आदि-शक्ति एक ही हैं, उन्हीं का आदि रुप ‘काली’ है और उसी रुप का विकसित स्वरुप ‘षोडशी’ है, इसी से ‘षोडशी’ को ‘रक्त-काली’ नाम से भी स्मरण किया जाता है । भगवती तारा का रुप ‘काली’ और ‘षोडशी’ के मध्य का विकसित स्वरुप है । प्रधानता दो ही रुपों की मानी जाती है और तदनुसार ‘काली-कुल′ एवं ‘श्री-कुल′ इन दो विभागों में दशों महा-विद्यायें परिगणित होती हैं ।
भगवती षोडशी के मुख्यतः तीन रुप हैं –
(१) श्री बाला त्रिपुर-सुन्दरी या श्री बाला त्रिपुरा,
(२) श्री षोडशी या महा-त्रिपुर सुन्दरी तथा
(३) श्री ललिता त्रिपुर-सुन्दरी या श्री श्रीविद्या ।
आठ वर्षीया स्वरुप बाला त्रिपुर सुन्दरी का, षोडश-वर्षीय स्वरुप षोडशी स्वरुप तथा ललिता त्रिपुर सुन्दरी स्वरुप युवा अवस्था को माना है ।
श्री विद्या की प्रधान देवि ललिता त्रिपुर सुन्दरी है । यह धन, ऐश्वर्य भोग एवं मोक्ष की अधिष्ठातृ देवी है । अन्य विद्यायें को मोक्ष की विशेष फलदा है, तो कोई भोग की विशेष फलदा है परन्तु श्रीविद्या की उपासना से दोनों ही करतल-गत हैं ।
‘श्री बाला’ का मुख्य मन्त्र तीन अक्षरों का है और उनका पूजा-यन्त्र ‘नव-योन्यात्मक’ है । अतः उन्हें ‘त्रिपुरा’ या ‘त्र्यक्षरी’ नामों से भी अभिहित करते हैं ।
‘श्री ललिता’ या ‘श्री श्रीविद्या’ का मुख्य मन्त्र पन्द्रह अक्षरों का होने से उनका नामान्तर ‘पञ्च-दशी’ भी है । इनका पूजा-यन्त्र ‘श्री-चक्र’ या ‘श्री-यन्त्र’ नाम से प्रसिद्ध है । ‘श्री षोडशी’ या ‘महा-त्रिपुर-सुन्दरी’ का मुख्य मन्त्र सोलह अक्षरों का है, उसी के अनुरुप उनका नाम है । पूजा यन्त्र ‘श्रीललिता’ – जैसा ही है ।
‘श्री ललिता’ एवं श्री ‘षोडशी’ के मन्त्रों में तीन ‘कूटों’ का समावेश है, जो क्रमशः ‘वाक्-कूट’, काम-कूट’ तथा ‘शक्ति-कूट’ नामों से प्रसिद्ध हैं । यहाँ ज्ञातव्य है कि पञ्चदशी के कूट-त्रय ‘क’, ‘ह′ या ‘स’ से प्रारम्भ होते हैं । अतः विभिन्न ‘कादि’, ‘हादि’ और ‘सादि’ – विद्या नाम से जाने जाते हैं ।
भगवती षोडशी से सम्बन्धित पूजा-यन्त्र ‘श्री-चक्र’ या ‘श्री-यन्त्र’ की विशेष ख्याति है । इस तरह का जटिल पूजा-यन्त्र अन्य किसी देवता का नहीं है । वह पिण्ड और ब्रह्माण्ड के समस्त रहस्यों का बोधक है । इसी से उसे ‘यन्त्र-राज’ या ‘चक्र-राज’ भी कहते हैं ।
” श्रीबाला त्रिपुर-सुन्दरी नाम का अर्थ “
“त्रिपुरा शब्द का महत्व ” :-
बाला, बाला-त्रिपुरा, त्रिपुरा-बाला, बाला-सुंदरी, बाला-त्रिपुर-सुंदरी, पिण्डी-भूता त्रिपुरा, काम-त्रिपुरा, त्रिपुर-भैरवी, वाक-त्रिपुरा, महा-लक्ष्मी-त्रिपुरा, बाला-भैरवी, श्रीललिता राजराजेश्वरी, षोडशी, श्रीललिता महा-त्रिपुरा-सुंदरी, के अन्य भेद सभी श्री श्री विद्या के नाम से पुकारे जाते है | इन सभी विद्या की उपासना ऊधर्वाम्नाय से होती है |
बाला, बाला-त्रिपुरा और बाला-त्रिपुर-सुंदरी नामों से एक ही महा विद्या को सम्बोधित किया जाता है | किसी भी नाम से उपासना की जाये, उपासना तो जगन्माता की ही की जाती है | नारदीय संहिता मे लिखा है कि -‘वेद, धर्म-शास्त्र, पुराण, पञ्चरात्र आदि शास्त्रों मे एक ‘परमेश्वरी’ का वर्णन है, नाम चाहे भिन्न भिन्न हो|
किन्तु महा शक्ति एक ही है | कहीं मन्त्रोध्दार भेद से, कहीं आसन भेद से, कहीं सम्प्रदाय भेद से, कहीं पूजा भेद से, कहीं स्वरूप भेद से, कहीं ध्यान भेद से, “त्रिपुरा’ के बहुत प्रकार है | कहीं त्रिपुरा भैरवी, कहीं त्रिपुरा ललिता, कहीं त्रिपुर सुंदरी, कहीं इन नामों से पृथक, कहीं मात्र त्रिपुरा या बाला ही कही जाती है |
त्रिपुरा अर्थात तीन पुरों की अधीश्वरी | तीन पुरियों में जाने के मार्ग भी तीन है | ” मुक्ति’ के पञ्च प्रकार १. सालोक्य २. सामीप्य ३.सारूप्य ४.सायुज्य और ५. कैवल्य है | इनमे से सालोक्य का एक मार्ग है और कैवल्य का एक | शेष तीन सायुज्य, सारुप्य, और सामीप्य का एक अलग मार्ग है | इस प्रकार कुल तीन मार्ग हुए | त्रिविध मार्ग होने से पुरियां भी तीन है | तीन पुरियों की प्राप्ति अभीष्ट होने से पर-देवता को त्रिपुरा (त्रिपुर सुंदरी ) कहा गया है |
त्रिमूर्ति १. ब्रम्हा २. विष्णु ३. महेश्वर की सृष्टि से पूर्व जो विधमान थी तथा जो वेद त्रयी १.ऋग २.यजु: और ३. साम-वेद से पूर्व विद्यमान थी एवं त्रि-लोकों १. स्वर्ग २. पृथ्वी ३. पाताल के लय होने पर भी पुन: उनको ज्यो का त्यों बना देने वाली भगवती के नाम त्रिपुरा है |
विश्व भर मे तीन-तीन वस्तुओं के जितने भी समुदाय है वे सब भगवती बाला त्रिपुर सुंदरी के त्रिपुरा नाम में समाविष्ट है | अर्थात संसार में त्रि-संख्यात्मक जो कुछ है वे सभी वस्तुएं त्रिपुरा के तीन अक्षरों वाले नाम से ही उत्पन्न हुई है |
श्रीलघ्वाचार्य ने त्रि-संख्यात्मक वस्तुओं में कतिपय त्रि-वर्गात्मक वस्तुओं के नाम भी गिनायें है जैसे तीन देवता १. ब्रह्मा २. विष्णु ३. महेश | देवता का अर्थ भी गुरु भी है | तीन गुरु १. गुरु २.परम गुरु ३. परमेष्ठी गुरु | तीन अग्नि १. गाहर्पत्य २. दक्षिनाग्नि ३. आहवनीय | अग्नि या ज्योति, अत: तीन ज्योतियां १. ह्रदय-ज्योति २. ललाट-ज्योति ३. शिरो-ज्योति | तीन शक्ति १. इच्छा शक्ति २. ज्ञान शक्ति ३. क्रिया शक्ति | शक्ति से तीन देवियों का भी बोध होता है १. ब्रह्माणी २. वैष्णवी ३. रुद्राणी | तीन स्वर १. उदात्त २. अनुदात्त ३. त्वरित अर्थात १. ‘अ’-कार २. ‘उ’-कार ३. बिन्दु | तीन लोक १. स्वर्ग २. मृत्यु ३. पाताल | लोक शब्द से देहस्थ चक्र का अर्थ भी लिया जाता है , तीन चक्र १. आज्ञा २. शीर्ष ३. ब्रह्म-ज्ञान |
त्रि-पदी ( तीन स्थान ) १. जालन्धर-पीठ २. काम-रूप-पीठ ३. उड्डियान-पीठ | पद शब्द से नाद शब्द का भी बोध होता है , तीन नाद १. गगनानंद २. परमानन्द ३. कमलानन्द | त्रिपदी से तीन पदों वाली गायत्री भी ली जाती है | त्रि-पुष्कर ( तीन तीर्थ ) १. शिर २. ह्रदय ३. नाभि अथवा १. ज्येष्ठ पुष्कर २. मध्यम पुष्कर ३. कनिष्ठ पुष्कर |
त्रि-ब्रह्म ( तीन ब्रह्म ) १. इड़ा २. पिंगला ३. सुषुम्ना अर्थात १. अतीत २. अनागत ३. वर्तमान जैसे १. ह्रदय २. व्योम ३. ब्रह्म-रंध्र | त्रयी वर्ण ( तीन वर्ण ) १. ब्राह्मण २. क्षत्रिय ३. वैश्य अथवा वर्ण शब्द से बीजाक्षरो का ग्रहण होता है १. वाग-बीज २. काम-बीज ३. शक्ति-बीज |
बाला शब्द का महत्व:-
जो अपने पुत्रों को तथा संसार को बल प्रदान करती है उसे बाला कहते है | सीधे-सादे अर्थ में यह समझना चाहियें की जो संसार के प्राणियों को बल प्रदान करती है वह “बाला” है बाला वही है जो हमारें समस्त अंगों को बल प्रदान करती है | नख से शिखा तक, रक्त से ओज तक, बुद्धि से बल तक जो प्राणी को बल प्रदान करती है वह शक्ति-मति अवश्य है , जिसके बिना प्राणी अपने को निस्सहाय समझता है |
” बाला ” अर्थात सर्व-शक्ति संपन्न, आदि माता | बाला का काम ही वृद्धि करना है | वह मानव या किसी प्राणी-विशेष को ही बल प्रदान करती हो, ऐसा नहीं- आदि-युग से ही यह जगन्माता इस संसार को बढाती चली आ रही है | आदि माता द्वारा निर्मित सृष्टि को जननी से मिला रही है | बल-वर्धिनी माता की अद्बुत शक्ति से जो परिचित हो गया, उसका जन्म तो सफल हो ही जाता है, उसके सामने त्रिभुवन की सम्पति भी तृण के सामान तुच्छ हो जाती है, क्योंकि जिस पुत्र पर माता-पिता का स्नेह हाथ फिर जाता है वह धन्य हो जाता है | “बाला’ ( बल-वर्धिनी ) का सेवक कभी निर्बल नहीं रह सकता और विश्वासी पर किसकी दया नहीं होती | बाला पहले अपने पुत्र को बल देती है और फिर बुद्धि | इन सब की प्राप्ति तभी होगी, जब संसार के लोग माता बाला की शरण में आयेंगें |
विश्वात्मिका शक्ति ” श्री बाला ” :-
शिव और शक्ति- तत्व सृष्टी के आदि कारण है, वे जब ही कल्पना करते है , तभी सृष्टी होने लगती है | महा प्रलय के बाद जब “एकोहम बहु स्याम प्रजाये” की कल्पना होती है, तभी शक्ति-तत्व-शिव-तत्व से अलग होता है |
उसके पहले वे एक ही रहते है | उस एक रहने का नाम नाद है अर्थात सृष्टी की कल्पना होने के समय निष्क्रिय शिव और सक्रिय शक्ति की जो विपरीत रति होती है उसे ही नाद कहते है और इसी विपरीत रति द्वारा बिन्दु की उत्पति होती है | शक्ति जब निष्कल शिव से युक्त होती है, तब वे चिद-रूपिणी और विश्वोत्तीर्णा अर्थात विश्व के बाहर रहती है और जब वे सकल शिव के साथ होती है तब वे विश्वात्मिका होती है परा शक्ति वे है, जो चैतन्य के साथ विश्रमावस्था में रहती है | इनको ही कादी-विद्या में “महा-काली” कहा जाता है और हादी विद्या में “महा-त्रिपुर-सुंदरी.
नाद से जो बिन्दु उत्पन्न होता है वही श्रीबाला-त्रिपुर-सुंदरी है अर्थात महा-त्रिपुर-सुंदरी नाद है और श्रीबाला-त्रिपुर-सुंदरी बिन्दु है जो शक्ति विश्वोत्तीर्णा है, वही महा-त्रिपुर-सुंदरी है और जो विश्वात्मिका है वे ही श्रीबाला है .
दुसरे प्रकार से विचार करे तो उपनिषद के अनुसार जाग्रत, स्वप्न और सुशुप्ताभिमानी विश्व “तैजस और प्राज्ञ पुरुष है . इन त्रि-मात्राओं के दर्शन से पता चलता है कि शक्ति ही जगत-रूप में अभिव्यक्त है
वाक्य द्वारा इसका वर्णन नहीं किया जा सकता | अत: यह सिद्धांत निकलता है की नाद को बिन्दु में युक्त करना चाहिए | उक्त व्याख्या से स्पष्ट है की महा-त्रिपुर-सुंदरी से श्रीबाला-त्रिपुर-सुंदरी को युक्त समझना आवश्यक है | वास्तव में नामान्तर से दो भेद “शक्ति” के प्रतीत होते है, जो वस्तुतः एक ही है, कोई भेद नहीं है | जो नाद है वही बिन्दु है | जो महा-त्रिपुर-सुंदरी है वही श्रीबाला-त्रिपुर-सुंदरी है |
** श्रीबाला गायत्री मंत्र **
बालाशक्तयै च विद्महे त्र्यक्षर्यै च धीमहि तन्नः शक्तिः प्रचोदयात् |
ऐं वाकऐश्वर्ये विद्महे क्लीं कामेश्वर्ये धीमहि तन्नः शक्ति प्रचोदयात् |