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रत्नों की उत्पत्ति के बारे में एक पौराणिक कथा
महर्षि पराशर ने राजा अमरीश के उत्तर में बताया कि दैत्य राजबली का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया राजा बलि के दंभ को चूर चूर किया तब भगवान विष्णु के तीसरे पद को उसके शरीर से स्पर्श करने पर सारा शरीर रत्नों का बन गया तब देवराज इंद्र ने उस पर अपने शक्तिशाली वज्र की चोट की जिस से टूटकर बिखरे हुए बली के रतन में खंडो को भगवान शिव ने अपने त्रिशूल पर धारण किया और उन्हें परसों पर गिरा दिया जिससे 21 रत्नों की उत्पत्ति हुई.ll
1) हीरा– राजा बलि के कपाल खंडों से है रतन उत्पन्न हुआ
2) मोती– बली के मन से मोती का जन्म हुआ
3) माणिक– इसकी उत्पत्ति बली के रुधिर से हुई
4) पन्ना– इसकी उत्पत्ति बली का पित्त प्रमुख कारण रहा
5) प्रवाल– बली के समुंद्र में गिरे हुए रक्त से यह निर्मित हुआ
6) पुखराज– यह बली के मांस से उत्पन्न रतन है
7) नीलम– बली के नेत्रों की पुतलियों से नीलम का उत्पन्न हुआ
8)चंद्रकांत मणि– इसकी उत्पत्ति बली की आंखों से हुई
9) गोमेद– बली के मेद से गोमेद की रचना हुई
10) फिरोजा– राजा बलि की नसों से फिरोजा उत्पन्न हुआ
11) भीष्म पाषाण इसकी रचना बली के वीर्य से हुई
12) मासर मणि यह मलभेद से उत्पन्न हुआ
13) लाजाव्रत इस रतन का जन्म बली के बालों ं से हुआ
14) उलूक मणि राजा की जीभ ने इस रतन को उत्पन्न किया
15) लहसुनिया– इस रत्न का निर्माण राजा के यज्ञोपवित से उस समय हुआ जब वह देवताओं के द्वारा छीन कर दिया गया
16) पारस– राजा बलि का वक्त फट जाने पर उनका हृदय भूमि पर गिरा उससे पारस मणि का जन्म हुआ
17) स्फटिक मणि राजा बलि के स्वेद का यह दूसरा रूप है
18) उपलक मणि यह रतन बली के कब से पैदा हुआ
19) भिस्मक– राजा का सिर कट जाने पर उसके अगले भाग के मस्तिक से यह रत्न निकला था
20) तैल मणि त्वचा भाग से इसकी उत्पत्ति हुई
21) घ्रत मणि यह रतन राजा बलि की कुक्षी भाग से उत्पन्न हुआ था.ll
कुछ रत्न में महर्षि दधीचि की हड्डियों से उत्पन्न हुए देवताओं पर जब संकट आने पर दधीचि ने अपने शरीर की हड्डियों का त्याग किया विश्वकर्मा ने दधीचि ऋषि की हड्डियों से व्रज बनाकर उन्हें दिया अस्त्र निर्माण करते समय पृथ्वी पर गिरे अस्थि खंडों से हीरे की खाने व अन्य रत्न बने..ll
पुराणों के अनुसार में समुद्र मंथन हुआ 14 रतन प्रकट हुए जो कि अब देवताओं के पास हैं जिनमें कौस्तुभ मणि नामक एक रतन जिसे भगवान विष्णु ने धारण किया था अंत में अमृत निकला और देव राक्षसों में भीषण संघर्ष में अमृत की बूंदें पृथ्वी पर जहां-तहां गिरी वहां वहां पृथ्वी से मिलकर विभिन्न रतन प्रकट हुए…ll
प्राचीनतम महान ग्रंथ ऋग्वेद के सबसे पहले मंत्र में रतन शब्द का प्रयोग हुआ सूर्य की किरणें होती हैं उसमें सात रंगों का प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है.ll
जन्म के समय पर ब्रह्मांड में जो ग्रह सबसे ज्यादा कमजोर होता है उस ग्रह से संबंधित हमारे शरीर के हिस्से के ऊपर नेगेटिव प्रभाव पड़ता है ll
10 ग्रह की महादशा अंतर्दशा होती है तो वह गृह में बहुत अधिक प्रभावित करता है इसीलिए हम उस ग्रह की नेगेटिव एनर्जी को कम करने के लिए नद का धारण करते है यह रत्न ब्रह्मांड से उस ग्रह का रंग लेकर हमारे शरीर के अंदर समाहित कर देता है जिससे कि हमारे शरीर में उस रंग की वृद्धि हो जाती है तो था हमारा शरीर स्वस्थ बन जाता है ll
अर्थात रत्न का हमारे जीवन पर काफी प्रभाव पड़ता है यदि प्रभाव नहीं होता तो रतन इस दुनिया में होते ही नहीं.ll