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देव पूजा विधि Part-4 षोडशमातृका आदि-पूजन
चित्रानुसार सोलह कोष्ठक बनायें। पश्चिम से पूर्व की ओर मातृकाओं का आवाहन और स्थापन करे। कोष्ठकों में रक्त चावल, गेहूँ या जौ रख दे एवं निम्नाङ्कित मन्त्रा पढ़ते हुए आवाहन करें।
षोडशमातृका-चक्र
पूर्व
आत्मनः कुलदेवता लोकमातारः देवसेना मेधा
16 12 8 4
तुष्टिः मातरः जया शची
15 11 7 3
पुष्टिः स्वाहा विजया पद्मा
14 10 6 2
धृतिः स्वधा सावित्री गौरी गणेश
13 9 4 1
ॐ गौर्ये नमः गौरीमावाहयामि स्थापयामि। ॐ पर्ािंयै नमः पर्मिंा.। ॐ शच्यै नमः शचीमा.। ॐ मेधायै नमः मेधामा0। ॐ सावित्रयै नमः सावित्रिमा.। ॐ विजयायै नमः विजयामा.। ॐ जयायै नमः जयामा.।
ॐ देवसेनायै नमः देवसेनामा। ॐ स्वधायै नमः स्वधामा। ॐ स्वाहायै नमः स्वाहामा। ॐ मातृभ्यो नमः मातृरावा.। ॐ लोकमातृभ्यो नमः लोकमातृरावा.। पुष्ट्यै नमः पुष्टिमा.। ॐ तुष्ट्यै नमः तुष्टिमा.। ॐ आत्मकुलदेवतायै नमः आत्मकुलदेवतामा.। प्राण प्रतिष्ठा-ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञं Ủ समिमं दधातु विश्वेदेवा स इह मादयन्नतामो3म्प्रतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीगौर्यादिषोडशमातरः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु। इस मन्त्रा से प्रतिष्ठा कर ओं गौर्यै नमः इत्यादि नाम-मन्त्रों से अथवा पृथक् . पृथक् ॐ गौर्यादिषोडशमातृभ्यो नमः इससे षोडशोपचार अथवा यथालब्धोपचार पूजन समाप्त कर, ॐ आयुरारोग्यमैश्वर्यं ददध्वं मातरो मम। निर्विध्नं सर्वकार्येषु कुरुध्वं सगणाधिपाः पढ़कर नारियल चढ़ायें। पुनः हाथ जोड़कर श्रीगौर्यादिषोडशमात¤णां पूजनकर्मणो यन्न्यूनमतिरिक्तं वा तत्सर्वं मात¤णां प्रसादात्परिपूर्णमस्तु ”गृहे वृद्धिशतानि भवन्तु“ उत्तरे कर्मण्यविघ्नमस्तु। यह बोले
इति मातृकापूजन।।
चतुःषष्टियोगिनीपूजन
(अग्निकोण में)-ओं आवाहयाम्यहं देवीं योगिनीं परमेश्वरीम्। योगाभ्यासेन संतुष्टा परं ध्यानसमन्विता।। दिव्यकुण्डलसंकाशा दिव्यज्वाला त्रिलोचना। मूर्तिमती ह्यमूत्र्ता च उग्रा चैवोग्ररूपिणी।। अनेक भावसंयुक्ता संसारार्णवतारिणी।। यज्ञे कुर्वन्तु निर्विध्नं श्रेयो यच्छन्तु मातरः।। दिव्ययोगी-महायोगी-सिद्धयोगी गणेश्वरी। प्रेताशी डाकिनी काली कालरात्राी निशाचरी।। हुङ्कारी सिद्धवेताली खर्परी भूतगामिनी।।
उध्र्वकेशी विरूपाक्षी शुष्कांगी मांसभोजिनी। फूत्कारी वीरभद्राक्षी धूम्राक्षी कलहप्रिया।। रक्ता च घोररक्ताक्षी विरूपाक्षी भयंकरी। चैरिका भारिका चण्डी वाराही मुण्डधारिणी। भैरवी चक्रिणी क्रोधा दुर्मुखी प्रेतवासिनी। कालाक्षी मोहिनी चक्री कंकाली भुवनेश्वरी। कुण्डला तालकौमारी यमदूती करालिनी।। कौशिकी यक्षिणी यक्षी कौमारी यन्त्रावाहिनी।। दुर्घटा विकटा घोरा कपाला विषलङ्घना। चतुःषष्टिः समाख्याता योगिन्यो हि वरप्रदाः।। त्रौलोक्यपूजिता नित्यं देवमानुषयोगिभिः।। इस प्रकार आवाहन कर ॐ चतुःषष्टियोगिनीभ्यो नमः इससे चन्दन पुष्प आदि द्वारा पूजन करें।
इति योगिनीपूजन
सप्तघृतमातृका (वसोद्र्धारा) पूजन
आग्नेयकोण में किसी वेदी अथवा काष्ठपीठ (पाटा) पर प्रादेशमात्रा स्थान में पहले रोली या सिन्दूर से स्वस्तिक बनाकर ‘श्रीः’ लिखे। इसके नीचे एक बिन्दु और इसके नीचे दो बिन्दु दक्षिण से करके उत्तर की ओर दे। इसी प्रकार सात बिन्दु क्रम से बनाना चाहिये।
इसके बाद नीचे वाले सात बिन्दुओं पर घी या दूध से प्रादेश मात्रा सात धाराएँ निम्नलिखित मन्त्रा से दें-
ॐ वसोः पवित्रामसि शतधारं वसोः पवित्रामसि सहश्रधारं देवस्त्वा सविता पुनातु। वसोः पवित्रोण शतधारेण सुप्वा कामधुक्षः। उस पर दही छोड़कर लाल सूत्रा लपेट दें। पुनः उपर्युक्त वसोः इस मंत्र को पढ़कर गुड़ के द्वारा बिन्दुओं की रेखाओं को क्रमशः ऊपर से परस्पर मिला दें। पुनः उन सात बिन्दुओं में क्रमशः देवता का आवाहन करें। ॐ भूर्भुवः स्वः श्रियै नमः श्रियमावाहयामि स्थापयामि। ॐ भूर्भुवः स्वः लक्ष्म्यै नमः लक्ष्मीमा0 स्था.। ॐ भूर्भुवः स्वः
धृत्यै नमः घृतिमा. स्था.। ॐ भूर्भुवः स्वः मेधायै नमः मेधामा0 स्था.।
ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहायै नमः स्वाहामा. स्था.। ॐ भूर्भुव. स्व. प्रज्ञायै नमः प्रज्ञामा. स्था.। ॐ भूर्भुवः स्वः सरस्वत्यै नमः सरस्वतीमा. स्था.।
ॐ मनोजूतिः. यह मंत्र एक बार पढ़कर वसोर्धारादेवताः सुप्रतिष्ठिताः वरदा भवन्तु। इस मंत्र से प्रतिष्ठा करें। तदनन्तर-ॐ वसोर्धारादेवताभ्यो नमः गन्धं समर्पयामि। पुष्पाणि समर्पयामि। धूपं समर्पयामि। दीपं सम.। नैवेद्य स.। प्रार्थना-यदङ्गत्वेन भो देव्यः पूजिता विधिमार्गतः। कुर्वन्तु कार्यमखिलं निर्विघ्नेन क्रतूद्भवम्।।
आयुष्य मंत्र जप
यजमान अञ्जलि में पुष्प रखें तथा ब्राह्मण आयुष्य मन्त्रा का पाठ करें। ॐ आयुष्यं वर्चस्य Ủ रायस्पोषमौद्भिदम्। इद Ủ हिरण्यं वर्चस्वज्जैत्राया विशतादुमाम्।।1।। नतद्रक्षा Ủ सि न पिशाचास्तरन्ति देवानामोजः प्रथमज Ủ ह्येतत्। यो विभत्र्ति दाक्षायण ँ हिरण्य ँ स देवेषु कृणुते दीर्घमायुः स मनुष्येषु कृणुते दीर्घमायुः।।2।। यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्य ँ शतानीकाय समनस्यमानाः। यन्म आबध्नामि शतशारदायायुष्मान् जरदष्टिर्यथासम्।।3।।
पौराणिक श्लोक-यदायुष्यं चिरं देवाः सप्तकल्पान्तजीविषु। ददुस्तेनायुषा सम्यक् जीवन्तु शरदः शतम्।। दीर्घा नागा नगा नद्योऽन्तस्सप्तार्णवा दिशः। अनन्तेनायुषा तेन जीवन्तु शरदः शतम्।। सत्यानि पञ्च भूतानि विनाशरहितानि च। अविनाश्यायुषा तद्वज्जीवन्तु शरदः शतम्।।
(इति आयुष्यमन्त्र जप)