तुलसी विवाह – महत्व, पूजन विधि, पौराणिक कथा

हम लोग दीपावली बहुत हर्ष से मनाते हैं, उसी प्रकार दीपावली के बाद कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री हरि अपने चार माह की निंद्रा से जागते हैं। और इसी दिन तुलसी विवाह किया जाता हैं। इसी दिन से सभी मांगलिक व शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।
इस दिन का महत्व व लाभ: ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूरी विधि – विधान से तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराने से वैवाहिक जीवन मे आ रही समस्याओ से छुटकारा मिलता हैं। जिन युवक/ युवतियों का विवाह नही हो रहा हैं। वे भी विधि- विधान व श्रद्धा से पूजन करे तो उनके रिश्ते भी पक्के हो जाएंगे।

पूजन विधि: शुभ मुहूर्त में आँगन में चौकी लगाये रंगोली बनाये उस पर तुलसीजी स्थापित करे, 4 गन्ने का मंडप बनाये, मण्डप को आम के पत्तों व फूलो से सजाये। तुलसी जी के समीप शालिग्राम बैठाये, दीप जलाये सर्वप्रथम गणेशजी का पूजन करे। फिर तुलसी और शालिग्राम की हल्दी लागये, पंचामृत व शुद्ध जल से स्नान कराये, कुमकुम हल्दी चंदन लगाइये फूल अर्पित करे। वस्त्र व श्रृंगार सामान भेट करे। भोग लागये, शंख , घंटा आदि वाद्य यंत्र बजाकर फेरे ले और श्री हरि को निंद्रा से उठाने के लिए आह्वान करे…
“बोर भाजी आंवला उठो देव सांवरा”…
ततपश्चात पूरे परिवार के साथ पीले चावल ले कर मंगलाष्टक बोले व आरती करें।

महत्व: ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार श्री कृष्ण जन्म खंड में लिखा है, कि घर मे लगाई गई तुलसी मनुष्यो के लिए कल्याणकारी, धन पुत्र प्रदान करने वाली, पुण्यदायिनी तथा हरिभक्ति देने वाली होती हैं।

तुलसी विवाह की पौराणिक कथा: प्राचीन काल मे जालन्धर नाम का राक्षस था। वह बड़ा ही वीर औऱ पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पतिव्रता पत्नी वृन्दा। उसी के प्रभाव से वह सर्वविजयी बना। जालन्धर के उपद्रवों से परेशान होकर सभी देवता श्री हरि के पास पहुचे। तथा रक्षा के लिए गुहार की। तब श्री हरि ने काफी सोच विचारकर वृन्दा का पतिव्रता धर्म भँग करने का निश्चय किया, उन्होंने योगमाया द्वारा एक मृत शरीर वृन्दा के घर के आंगन में फिकवा दिया। योगमाया के प्रभाव से वृन्दा को वह शव अपने पति का नजर आया , अपने पति को मृत देखकर वह विलाप करने लगी ,उसी समय एक साधु आया और कहने लगा ,बेटी विलाप मत करो मैं इस मृत शरीर मे जान डाल दूँगा। साधू ने मृत शरीर मे जान डाल दी, भावभिवोर में वृन्दा ने उस शरीर का आलिंगन कर लिया , जिसके कारण उसका पतिव्रत घर्म नष्ट हो गया, बाद में वृन्दा को भगवान का यह छल कपट ज्ञात हुआ। उधर उसका पति जालन्धर देवताओं से युद्ध कर रहा था, वृन्दा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया । जब वृन्दा को इस बात का पता चला तो क्रोधित होकर उसने श्री हरि को शाप दे दिया। जिस प्रकार छल से मुझेपति वियोग दिया हैं, उसी प्रकार तुम भी अपनी स्त्री का छल पूर्वक हरण होने पर स्त्री वियोग सहने के लिए मृत्यु लोक में जन्म लोगे। और शाप दिया कि तुम पत्थर के हो जाओगे। यह कहकर वृन्दा अपने पति के साथ सती हो गयी, श्री हरि अब अपने छल पर बड़े लज्जित हुए। पार्वती मैया ने वृन्दा की चिता भस्म में आंवला, मालती और तुलसी के पौघे लगाएं।
श्री हरि ने तुलसी को ही वृन्दा का रूप समझा । श्री हरि बोले-वृन्दा तुम मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो। यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल हैं। कि तुम तुलसी बनकर हमेशा मेरे साथ रहोगी, जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परमधाम को प्राप्त होगा। इसी वजह से श्री हरि की पूजन तुलसी के बिना अधूरी हैं। इसी वजह से तुलसी विवाह बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं।