दूरदर्शन के ‘टर्निंग पॉइंट’ प्रोग्राम से विज्ञान को गाँव-गाँव तक पहुँचाने वाले वैज्ञानिक

मशहूर वैज्ञानिक प्रोफेसर यश पाल को जितना विज्ञान के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए याद किया जाता है, उतना ही विज्ञान को आम नागरिकों तक पहुंचाने के लिए। इसलिए उन्हें ‘द पीपल्स साइंटिस्ट’ कहा जाता है। प्रोफेसर पाल, एक वैज्ञानिक, मैनेजर, एजुकेटर, कम्यूनिकेटर थे, और सबसे महत्वपूर्ण, उन्होंने विज्ञान को बहुत ही आम बोल-चाल की भाषा में लोगों को समझाने का काम किया।

26 नवम्बर 1926 को ब्रिटिश भारत के झांग (अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक शहर) में उनका जन्म हुआ। पर बाद में, उनके पिता अपनी नौकरी के सिलसिले में पूरे परिवार को लेकर मध्य-प्रदेश के जबलपुर आ गए। यहाँ पर यश पाल की दिलचस्पी गणित और विज्ञान के प्रति काफी बढ़ी क्योंकि यहाँ पर वह लगभग एक साल तक स्कूल नहीं जा पाए। ऐसे में, उन्होंने खुद पढ़ाई की।

गणित में जियोमेट्रिकल सवालों को हल करने के लॉजिक उन्हें बहुत पसंद थे। उन्होंने अपनी बायोग्राफी में भी लिखा है कि अगर उन्हें खुद यह सब पढ़ने का मौका न मिलता तो शायद उन्हें इतना मजा कभी नहीं आता।

स्कूल के दिनों में उनके पवार नाम के एक टीचर हुआ करते थे, जो गणित, जियोग्राफी और फिजिक्स पढ़ाते थे। उन्होंने हमेशा उनसे कहा कि किसी भी चीज़ को बस याद रख लेने की बजाय, उसे समझने पर ध्यान लगाओ। उनकी यह बात यश पाल का गुण बन गयी और ताउम्र उन्होंने इस सिद्धांत का पालन किया।

बाद में, कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उन्हें किताबें पढ़ने का शौक लगा। उन्होंने गाँधी जी, जवाहर लाल नेहरु, रस्किन बांड, लियो टॉलस्टॉय, टैगोर आदि पर लिखी किताबें पढ़ीं। यहीं से उनके आत्म-विश्लेषण का सफ़र शुरू हुआ। वह खुद से पूछने लगे कि वह खुद क्या करना चाहते हैं?

साल 1947 में बंटवारे के लिए देश में जंग छिड़ गयी। उसी साल यश पाल ग्रेजुएशन की पढ़ाई खत्म करके दिल्ली में एमएससी करने चले गए। यहाँ पर मास्टर्स करने के बाद उन्होंने टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) में अप्लाई किया। यहीं से रिसर्च के क्षेत्र में उनके लम्बे करियर की शुरुआत हुई।

वह मुंबई गये और उन्होंने न्यूक्लियर इमल्शन तकनीक पर पढ़ाई की। इसके बाद, TIFR में उनकी रूचि कॉस्मिक रेज़ की तरफ बढ़ी और यहाँ पर उन्होंने बलून फ्लाइट्स पर काफी एक्सपेरिमेंट किये, जोकि पहले कभी इस इंस्टिट्यूट में नहीं हुए थे। उन्होंने आगे इसी विषय पर MIT से पीएचडी भी की।

भारत वापिस लौटने पर उन्होंने अपने रिसर्चर और छात्रों के साथ मिलकर TIFR में न्यूक्लियर इमल्शन पर काम करना शुरू किया। साल 1972 में प्रोफेसर सतीश धवन ने उनसे अहमदाबाद में स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (SAC) बनाने का कार्यभार सम्भालने के लिए कहा। इस काम को पूरा करने के लिए यश ने TIFR से पाँच सालों के लिए नियुक्ति ली।

इस काम में उन्होंने दिन-रात एक कर दिया। “मैंने कभी भी इतनी मेहनत नहीं की थी; मुझे नहीं पता कि क्या हो गया था? सबसे पहले सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविज़न प्रोग्राम (SITE) में बहुत देर हुई। मुझे याद है, जब मैं वहां पहुंचा तो तुरंत कुछ लोग मुझे देखने आये और मुझे बताया कि लोग कह रहे हैं कि जो भी SITE की टीम में हैं, उन्हें यह प्रोजेक्ट फेल होने से पहले ही पीछे हट जाना चाहिए,” पाल ने बताया।

लेकिन उनके हौसलों और दृढ़-संकल्प ने उन्हें कभी पीछे हटने नहीं दिया। उनकी लगातार मेहनत और प्रयासों से SAC पूरा बन गया। साथ ही, विक्रम साराभाई का ड्रीम प्रोजेक्ट- SITE भी उनके योगदान से सफलता पूर्वक पूरा हुआ। SITE का मुख्य उद्देश्य था शिक्षा और वह भी जनसाधारण को शिक्षित करना। इसके लिए उन्होंने सर्वे भी किया कि कैसे इस प्रोजेक्ट से लोगों को फायदा हुआ। इसके डॉक्यूमेंटेशन के लिए वे गाँव-गाँव जाकर लोगों से बात करते।

इस दौरान यश को लगा कि आम नागरिकों तक विज्ञान को पहुँचाना ज़रूरी है। उन्हें दूरदर्शन के साथ बच्चों के लिए साइंस प्रोग्राम बनाने का मौका मिला। इस बारे में वे उत्साहित तो थे, लेकिन साथ ही, वो सोच रहे थे कि वह इस प्रोग्राम को कैसे स्क्रीन पर लेकर आयेंगे।

अपनी आत्मकथा में उन्होंने बताया, “मैं गाँवों में गया था, और उस वक़्त तक मैं मानने लगा था कि विज्ञान को सिर्फ एक्सपेरिमेंट करके ही समझा जा सकता है। लेकिन गाँवों में जहाँ एक या दो कमरे के स्कूल थे, कोई उपकरण नहीं, कहीं कहीं तो ब्लैकबोर्ड तक नहीं थे। अगर हम उनके लिए साइंस प्रोग्राम बनाते, तब भी वे कहाँ एक्सपेरिमेंट करते।”

इस काम में उन्होंने TIFR और MIT से मदद मांगी और उनकी प्रतिक्रिया काफी उत्साहवर्धक थी। जल्द ही, ‘टर्निंग पॉइंट’ शो का निर्माण शुरू हुआ और यह शो लोगों के बीच काफी सफल रहा।

इस शो का उद्देश्य काफी स्पष्ट था कि विज्ञान हर जगह है। और बच्चों के सीखने के लिए उनके आस-पास के वातावरण को ही वैज्ञानिक तरीकों से सवाल किया जाये, समझा जाये, और फिर समझाया जाये। और सबसे ज्यादा, वैज्ञानिक तरीकों पर जोर दिए जाये ताकी सिर्फ जानकारी ही न मिले, बल्कि किसी भी विषय पर बच्चों की समझ बढ़े।

इस प्रोग्राम के साथ, यश पाल दर्शकों के भी चहेते बन गये। वह हर हफ्ते लोगों के सवालों का उत्तर देते, इस तरह से बताते कि लोगों की और ज्यादा जानने के लिए जिज्ञासा बढ़े और यह ज्ञानवर्धक हो। उनके मार्गदर्शन ने बहुत से इनोवेटर्स को प्रभावित किया।

इस प्रोग्राम में 150 एपिसोड थे और नसीरुद्दीन शाह जैसे अभिनेताओं ने यह शो होस्ट किया था।

साल 1976 में उनके विज्ञान और स्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण से नवाज़ा गया। साल 1980 में ग्रामीण भारत तक विज्ञान जैसे विषय कोआसान शब्दों में पहुँचाने के लिए उन्हें मार्कोनी फैलोशिप से सम्मानित किया गया था।

यश, हमेशा ही भारत में शिक्षा के लिए कार्यरत रहे। उनके मुताबिक, यह सिर्फ ज्ञान देने तक सीमित नहीं है, बल्कि ज्ञान लेने, उसे समझने और फिर उसके आधार पर कुछ नया करना है।

प्रोफेसर यश पाल का 24 जुलाई, 2017 को 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया। लेकिन आज भी वह हर उस भारतीय की सोच में बसते हैं जो शिक्षा को सिर्फ डीग्री में नहीं आंकते बल्कि इस दौरान उन्होंने जो भी ज्ञान पाया है, उसे अपने देश की उन्नति के लिए काम में लगाते हैं।