ब्रह्मा, विष्णु, महेश, स्वयम्भुव मनु का काल

हालांकि ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कथा को शिव के भक्तों ने शिव को आधार बनाकर लिखा तो विष्‍णु के भक्तों ने विष्णु को आधार बनाकर। कहा जाता है कि एक बार जब भगवान शिव से जब पूछा गया कि आपके पिता कौन तो उन्होंने ब्रह्मा का नाम लिया और फिर पूछा गया कि ब्रह्मा के पिता कौन तो उन्होंने विष्णु का नाम लिया और जब उनसे पूछा गया कि विष्णु के पिता कौन? तो उन्होंने कहा कि मैं स्वयं।
 
जब सब कुछ प्रलय के कारण नष्ट हो गया तो धरती लाखों वर्ष तक अंधकार में रही। फिर सूखी धरती पर जलावृष्टि हुई और यह धरती पूर्ण रूप से जल से भर गई। संपूर्ण धरती जलमग्न हो गई। जल में भगवान विष्णु की उत्पत्ति हुई। जब उन्होंने आंखें खोलीं तो नेत्रों से सूर्य की और हृदय से चंद्रमा की उत्पत्ति हुई। जल से विष्णु की उत्पत्ति होने के कारण उन्हें हिरण्याभ भी कहते हैं। हिरण्य अर्थात जल और नाभ अर्थात नाभि यानी जल की नाभि। इस नाभि से कमल की उत्पत्ति हुई और कमल जब जल के ऊपर खिला तो उसमें से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई।
 
फिर उनके माथे से ही एक ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ, जो टूटकर जब बिखरा तो उसमें से महेश की उत्पत्ति हुई। दोनों ने पूछा- मैं कौन हूं। तब विष्णु ने उनको सृष्टि के विस्तार का आदेश दिया। इस काल में एक और जहां जल में एकइंद्रिय और एकरंगी जीवों की उत्पत्ति हुई वहीं असंख्य पौधों और लताओं की उत्पत्ति होती गई। इसी तरह मेरू पर्वत से जब कुछ जल हटा तो यही एकइंद्रिय जीव वहां फैलकर तरह-तरह के रूप धरने लगे। ये जीवन क्रम विकास के क्रम में शामिल हो गए। यह सब ब्रह्मा की घोर तपस्या और अथक प्रयास से संभव हुआ। 
 
तब ब्रह्मा ने एक ऐसे जीव की उत्पत्ति करने की सोची, जो अन्य जलचर, थलचर और नभचर जीवों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान हो अर्थात खुद ब्रह्मा की तरह हो। यह सोचकर उन्होंने पहले 4 सनतकुमारों को जन्म दिया, लेकिन वे कुछ नहीं कर पाए और वे चारों भी ब्रह्मा की तरह तपस्या में लीन हो गए। तब ब्रह्मा ने 10 मानस पुत्रों को उत्पन्न किया (वशिष्ठ, कृ‍तु, पुलह, पुलस्य, अंगिरा, अत्रि और मरीचि आदि) और उनसे कहा कि आप मानव जीवन की उत्पत्ति करें, उनको शिक्षा दें और परमेश्वर का मार्ग बताएं। बहुत काल तक जब ये ऋषि तपस्या में ही लीन रहे तो यह देखकर स्वयं ब्रह्मा ने मानव रूप में स्वयम्भुव मनु और स्त्री रूप में शतरूपा को जन्म दिया। उन्होंने तब उन दोनों से मानव जाति के विस्तार का आदेश दिया और कहा कि आप सभी धर्मसम्मत वेदवाणी का ज्ञान दें।
 
वेद ईश्वर की वाणी है। इस वाणी को सर्वप्रथम 4 क्रमश: ऋषियों ने सुना- 1. अग्नि, 2. वायु, 3. अंगिरा और 4. आदित्य। परंपरागत रूप से इस ज्ञान को स्वयम्भुव मनु ने अपने कुल के लोगों को सुनाया, फिर स्वरोचिष, फिर औत्तमी, फिर तामस मनु, फिर रैवत और फिर चाक्षुष मनु ने इस ज्ञान को अपने कुल और समाज के लोगों को सुनाया। बाद में इस ज्ञान को वैवश्वत मनु ने अपने पुत्रों को दिया। इस तरह परंपरा से प्राप्त यह ज्ञान श्रीकृष्ण तक पहुंचा।
 
हिन्दू धर्म की शुरुआत की कहानी में सबसे पहले ब्रह्मा और उनके पुत्रों की कहानी का अधिक महत्व है उसके बाद विष्णु और महेश के शिष्यों और भक्तों की कहानी का अधिक महत्व है। महेश ने ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की बेटी सती से विवाह किया और विष्णु ने ब्रह्मा के पुत्र भृगु की बेटी लक्ष्मी से विवाह किया। इस तरह ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने संपूर्ण धरती पर देव, दैत्य, दानव, राक्षस, मानव, किन्नर, वानर, नाग, मल्ल आदि हजारों तरह के जीवों की रचना की।
 
उल्लेखनीय है कि स्वयम्भुव मनु के कुल में भगवान ऋषभदेव हुए। ऋषभदेव स्वयम्भुव मनु से 5वीं पीढ़ी में इस क्रम में हुए- स्वयम्भुव मनु, प्रियव्रत, अग्नीघ्र, नाभि और फिर ऋषभ। ऋषभदेव ने प्रजा को जीवन के निर्वाह हेतु असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, विद्या, शिल्प आदि की शिक्षा दी। इनका नंदा व सुनंदा से विवाह हुआ। इनके भरत व बाहुबली आदि 100 पुत्र हुए। भरत के नाम पर ही इस अजनाभखंड का नाम भारतवर्ष रखा गया।