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कभी विवादों में रहा, तो कभी इस पर रोक लगायी गयी; जानिये ‘भारत रत्न’ का इतिहास
हमारे देश में असाधारण राष्ट्रीय सेवा के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है, ‘भारत रत्न’! इसकी स्थापना 2 जनवरी 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गयी थी। शुरुआत में यह सम्मान कला, साहित्य, विज्ञान तथा सामाजिक सेवा के क्षेत्र में दिया जाता था। लेकिन अब इसे किसी भी क्षेत्र के व्यक्ति को उसके अभूतपूर्व योगदान और उपलब्धियों के लिए दिया जा सकता है।
‘भारत रत्न’ कोई पदवी नहीं बल्कि सिर्फ़ एक सम्मान है। कोई भी व्यक्ति इसे अपने नाम के साथ पदवी के तौर पर नहीं लगा सकता है। यह सम्मान भारत के किसी भी नागरिक को दिया जा सकता है, चाहे वह किसी भी जाति, व्यवसाय, पद और लिंग से सम्बंधित हो। आईये देश इस सर्वोच्च सम्मान के बारे में थोड़ा और जाने-
स्थापना :
‘भारत रत्न’ की स्थापना का उद्देश्य उन सभी लोगों को सम्मानित करना था, जिन्होंने निःस्वार्थ भाव से हर एक चुनौती को पार करते हुए, इस देश के विकास में अपना योगदान दिया। हर साल केवल तीन व्यक्तियों को ही इस सम्मान से नवाज़ा जा सकता है।
हालांकि, यह बिलकुल भी ज़रूरी नहीं कि हर साल यह सम्मान दिया जाये।
शुरुआत में मरणोपरांत किसी भी व्यक्ति को भारत रत्न से नवाज़े जाने का कोई प्रावधान नहीं था। लेकिन बाद में इस प्रावधान को भी शामिल किया गया।
भारत रत्न जिन भी लोगों को मिलना चाहिए, उनके नामों का सुझाव प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति को भेजा जाता है। लेकिन किसे भारत रत्न देना है और किसे नहीं, इसका फ़ैसला केवल राष्ट्रपति करते हैं। हर साल 26 जनवरी को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत व्यक्ति को भारत रत्न से सम्मानित किया जाता है। इस सम्मान के साथ कोई भी धनराशि नहीं दी जाती है।
बदलाव :
भारत रत्न पदक के डिजाईन में भी पहले से कई बदलाव किये गये हैं। शुरूआती दौर में यह एक 35 मिलीमीटर का गोलाकार स्वर्ण पदक हुआ करता था; जिस पर सामने की तरफ़ सूर्य-चिन्ह बना हुआ होता था, ऊपर ‘भारत रत्न’ लिखा होता था और नीचे एक पुष्प हार बना होता था। पदक के पिछले हिस्से पर राष्ट्रीय चिन्ह के नीचे ‘सत्यमेव जयते’ लिखा जाता था।
समय के साथ ‘भारत रत्न’ का रंग-रूप भी बदल गया। पश्चिम बंगाल के अलीपुर में बनाया जाने वाला यह पदक अब पीपल के पत्ते के आकार में बनता है। यह तांबे का होता है और इस पर प्लैटिनम का सूर्य-चिन्ह बना होता है। इसके नीचे चाँदी से ‘भारत रत्न’ लिखा जाता है। इसे सफ़ेद फ़ीते के साथ गले में पहनाया जाता है।
देश के सबसे पहले भारत रत्न :
भारत रत्न की स्थापना वर्ष में यह सम्मान सबसे पहले राजनीतिज्ञ सी. राजागोपालाचारी, सर्वेपल्ली राधाकृष्णन (जो बाद में भारत के दुसरे राष्ट्रपति बने), और वैज्ञानिक सी.वी रमन को दिया गया था।
सम्मानित हुए भारतीय और विदेशी भी :
साल 2018 तक 45 लोगों को भारत सरकार द्वारा भारत रत्न से नवाज़ा जा चूका है।
इन 45 में से 12 लोगों को मरणोपरान्त यह सम्मान दिया गया। लाल बहादुर शास्त्री प्रथम व्यक्ति थे, जिन्हें मरणोपरान्त भारत रत्न मिला। दिलचस्प बात यह है कि ‘भारत रत्न’ न सिर्फ़ भारतीय नागरिकों को बल्कि दो बार विदेशी नागरिकों को भी दिया गया।
पाकिस्तानी नागरिक अब्दुल ग़फ़्फ़ार खान और साउथ अफ्रीका के राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला को भी भारत सरकार ने इस सम्मान से नवाज़ा। ग़फ़्फ़ार खान को यह सम्मान स्वतंत्रता के लिए उनके बलिदान और योगदान के लिए मिला, वही मंडेला को उनके असाधारण मानवीय कार्यों से प्रभावित होकर भारत रत्न दिया गया।
विवादों में घिरा रहा यह सम्मान :
भारत रत्न को लेकर देश में कई बार विवाद होते रहे हैं। बहुत बार बीच में इस सम्मान को स्थगित भी किया गया है।जुलाई 1977 से जनवरी 1980 तक और अगस्त 1992 से दिसंबर 1995 तक भारत रत्न पर रोक लगाई गयी थी। साल 1977 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने सभी व्यक्तिगत सम्मानों पर प्रतिबन्ध लगाया था। लेकिन भारत की अगली प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने 25 जनवरी 1980 को यह प्रतिबंध हटा दिया।
देश के सर्वोच्च सम्मान माने जाने वाले ‘भारत रत्न’ और विवादों का सिलसिला यही ख़त्म नहीं हुआ। साल 1992 में भारत रत्न के खिलाफ़ कोर्ट में याचिका दायर कर, इसकी वैधता पर सवाल उठाये गए। ये याचिकाएं केरल और मध्य-प्रदेश में की गयीं थी। इन याचिकाओं पर कार्यवाही के दौरान तीन साल तक किसी को भी भारत रत्न नहीं दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद दिसंबर 1995 में इसे फिर से शुरू किया गया।
चाहे कैसा भी इतिहास रहा हो इस सम्मान का, एक बात तो तय है कि देश का हर ‘भारत रत्न’, देश का गौरव है!