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ध्यान विधि: दिव्य ध्यान क्रिया योग
ध्यान हिन्दू धर्म, भारत की प्राचीन शैली और विद्या के सन्दर्भ में महर्षि पतंजलि द्वारा विरचित योगसूत्र में वर्णित अष्टांगयोग का एक अंग है। ये आठ अंग यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि है। ध्यान का अर्थ किसी भी एक विषय की धारण करके उसमें मन को एकाग्र करना होता है। मानसिक शांति, एकाग्रता, दृढ़ मनोबल, ईश्वर का अनुसंधान, मन को निर्विचार करना, मन पर काबू पाना जैसे कई उद्दयेशों के साथ ध्यान किया जाता है। ध्यान का प्रयोग भारत में प्राचीनकाल से किया जाता है।
मुख्य पद्धति:
ध्यान करने के लिए स्वच्छ जगह पर स्वच्छ आसन पे बैठकर साधक अपनी आँखे बंध करके अपने मन को दूसरे सभी संकल्प-विकल्पो से हटाकर शांत कर देता है। और ईश्वर, गुरु, मूर्ति, आत्मा, निराकार परब्रह्म या किसी की भी धारणा करके उसमे अपने मन को स्थिर करके उसमें ही लीन हो जाता है। जिसमें ईश्वर या किसीकी धारणा की जाती है उसे साकार ध्यान और किसी की भी धारणा का आधार लिए बिना ही कुशल साधक अपने मन को स्थिर करके लीन होता है उसे योग की भाषा में निराकार ध्यान कहा जाता है।
ध्यान करने के लिए पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन अथवा सुखासन में बैठा जा सकता है। शांत और चित्त को प्रसन्न करने वाला स्थल ध्यान के लिए अनुकूल है। रात्रि, प्रात:काल या संध्या का समय भी ध्यान के लिए अनुकूल है। ध्यान के साथ मन को एकाग्र करने के लिए प्राणायाम, नामस्मरण (जप), त्राटक का भी सहारा लिया जा सकता है। ध्यान में ह्रदय पर ध्यान केन्द्रित करना, ललाट के बीच अग्र भाग में ध्यान केन्द्रित करना, स्वास-उच्छवास की क्रिया पे ध्यान केन्द्रित करना, इष्टदेव या गुरु की धारणा करके उसमे ध्यान केन्द्रित करना, मन को निर्विचार करना, आत्मा पे ध्यान केन्द्रित करना जैसी कई पद्धतियाँ है। ध्यान के साथ प्रार्थना भी कर सकते है। साधक अपने गुरु के मार्गदर्शन और अपनी रुचि के अनुसार कोई भी पद्धति अपनाकर ध्यान कर सकता है।
ध्यान के अभ्यास के प्रारंभ में मन की अस्थिरता और एक ही स्थान पर एकांत में लंबे समय तक बैठने की अक्षमता जैसी परेशानीयों का सामना करना पड़ता है। निरंतर अभ्यास के बाद मन को स्थिर किया जा सकता है और एक ही आसन में बैठने के अभ्यास से ये समस्या का समाधान हो जाता है। सदाचार, सद्विचार, यम, नियम का पालन और सात्विक भोजन से भी ध्यान में सरलता प्राप्त होती है।
ध्यान का अभ्यास आगे बढ़ने के साथ मन शांत हो जाता है जिसको योग की भाषा में चित्तशुद्धि कहा जाता है। ध्यान में साधक अपने शरीर, वातावरण को भी भूल जाता है और समय का भान भी नहीं रहता। उसके बाद समाधिदशा की प्राप्ति होती है। योगग्रंथो के अनुसार ध्यान से कुंडलिनी शक्ति को जागृत किया जा सकता है और साधक को कई प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त होती है।
इस ध्यान को करने की विधि:
- ध्यान को करने के पहले थोड़ा ब्रीथ एक्सेरसाइज करे . साँसों को थोड़ा जल्दी जल्दी और पूरा अंदर तक ले. दोनों हाथो को ऊपर निचे करते हुए साँसे भरे और छोड़े. पांच मिनट करते हुए वार्म अप करें.
- सुखासन आसान में बैठ जाए.
- आखे बंद कर सांसो पर ध्यान दे.
- थोड़ी देर में साँसों को ऑटो मोड़ पर चलने दो.
- अपना ध्यान आँखों के पीछे लेकर आये.
- अब पूरा ध्यान आँखों के बीच में फोकस करें
- वंही ध्यान देकर देखते रहे. पूरी तल्लीनता से.
- पूरी एकाग्रता से, आपको अपने होने का एहसास होगा, अनुभव होगा.
- इसी ध्यान में कुछ समय रहना है. इसी क्रिया योग में रहना है.
- जलता हुआ दिया आपको दिखाई देगा.
- या कुछ चिंगारी दिखाई देगा. बस उसे देखते रहे.
- यह अवस्था में रहे. पूर्ण समर्पण भाव में.
- लम्बी सांस ले, बहार आने का प्रयास करे. यह अवस्था के बाद खुद को रिलैक्स महसूस करे
- दोनों हाथो को रगड़ कर हाथो से एनर्जी लेकर चहरे पर लगाए.
यह क्रिया एक साधारण ध्यान क्रिया है जिसके लाभ:
१- एकाग्रता बढ़ाता है
२- नयी क्रिएटिविटी आती है
३- नयी सोच का निर्माण होता है
४- रिलैक्स महसूस कराता है
५- हेल्थ को स्वस्थ करता है
६- अच्छा महसूस कराता है .
७- जाग्रत अवस्था में जीने के लिए प्रेरित करता है